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‘फाइव आइज़’ की निगहबानी में शामिल जापान

पुष्परंजन हिन्द-प्रशांत में फाइव आइज़ को अपना व्यूह कैसे मज़बूत करना है, बुधवार को इसी सवाल पर एक महत्वपूर्ण बैठक टोक्यो में आयोजित हुई। जापान फाइव आइज़ का सदस्य देश नहीं है। इस बैठक के हवाले से चर्चा शुरू हो...

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पुष्परंजन

हिन्द-प्रशांत में फाइव आइज़ को अपना व्यूह कैसे मज़बूत करना है, बुधवार को इसी सवाल पर एक महत्वपूर्ण बैठक टोक्यो में आयोजित हुई। जापान फाइव आइज़ का सदस्य देश नहीं है। इस बैठक के हवाले से चर्चा शुरू हो चुकी है, कि ‘फाइव आइज़’ को, ‘सिक्स आइज़’ बनाया जाये। क्या कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं?

बुधवार की बैठक में यूएस ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ, इंडो-पैसिफिक कमांड और यूएस फोर्सेज (जापान) के वरिष्ठ सलाहकारों ने भाग लिया था। इसमें जापान के सेल्फ डिफेंस फोर्सेज (एसडीएफ) का प्रतिनिधित्व, ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के सलाहकार काई ओसामू ने किया था। यह दूसरी बार है, जब जापान ने ‘फाइव आbज’ की बैठक में भाग लिया है। इसी साल अक्तूबर में, ‘एसडीएफ’ ने पहली बार कनाडा में एक बैठक में शिरकत की थी, जिसमें जमीनी स्तर पर परिचालन व इंटेलिजेंस सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया था।

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फाइव आइज़ गठबंधन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच स्थापित एक खुफिया नेटवर्क है। इसकी उत्पत्ति 1946 में यूके-यूएसए समझौते के बाद हुई, जिसका उद्देश्य सिग्नल इंटेलिजेंस (सिगनिट) को साझा करने के लिए एक सहकारी व्यवस्था के रूप में था। समय के साथ इस साझेदारी ने अपनी पहुंच बढ़ाई है, जो वैश्विक खुफिया और सुरक्षा संचालन का एक अभिन्न अंग बन गया है।

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जापान, पश्चिमी क्लब से कैसे तालमेल बैठाता है, यह सवाल चीन में बैठे रणनीतिकार करने लगे हैं। चीनी विशेषज्ञों ने गठबंधन में शामिल होने के लिए जापान की उत्सुकता के बारे में चेतावनी दी, लेकिन सुझाव दिया कि चूंकि फाइव आइज के सभी देश एंग्लो-सैक्सन मूल के हैं, इसलिए जापान ‘एक बाहरी व्यक्ति’ लगेगा। विश्लेषकों ने कहा कि यह समूह केवल अपने वर्चस्ववादी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए जापान के अति उत्साह का उपयोग कर रहा है।

‘चाइना फॉरेन अफेयर्स यूनिवर्सिटी’ में जापानी अध्ययन केंद्र के उप निदेशक ज़ोउ योंगशेंग ने कहा कि फाइव आइज़ केवल खुफिया जानकारी साझा करने वाला समूह नहीं है, यह जातीय विरासत और सांस्कृतिक संबंधों को भी साझा करता है। लेकिन इसके विपरीत, जापान इन देशों के साथ समान जातीय और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि साझा नहीं करता है, जो इसे इस संदर्भ में ‘बाहरी’ बना देगा।

लू चाओ लिआओनिंग, ‘अकादमी ऑफ़ सोशल साइंसेज़’ में रिसर्च फेलो हैं, उनका कहना है कि फिर से चुने गए जापानी प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा चीन के साथ नए सिरे से इंगेज हो रहे हैं, जो रियो डी जनेरो में भी दिख रहा था, लेकिन टोक्यो में फाइव आइज़ की बैठक के बाद जो कुछ शुरू होने जा रहा है, वह लीडरशिप के स्तर पर अविश्वास का सबब बन सकता है।

इस तरह के रिएक्शंस, चीनी घबराहट को दर्शा रहे हैं। हिन्द-प्रशांत में आस्ट्रेलिया-न्यूज़ीलैंड की सक्रियता से चीन को कोई फ़र्क़ पड़ता नहीं दिख रहा था। ऑस्ट्रेलिया, जो चीन से 2,400 मील से अधिक दूर है, जापान, फिलीपींस और ताइवान जैसे इंडो-पैसिफिक ताक़तों के बरक्स कम असरदार है। चीन के बढ़ते मिसाइल शस्त्रागार, ग्रे ज़ोन आक्रामकता में वृद्धि और प्रशांत जलमार्गों में चीनी दादागीरी, फाइव आइज़ देशों के लिए चिंताजनक है। ये चिंताएं केवल सैद्धांतिक नहीं हैं। ऑस्ट्रेलिया, चीनी आर्थिक दबाव का शिकार रहा है। चीन ने अप्रैल 2020 और मई 2024 के बीच ऑस्ट्रेलिया के विभिन्न आयातों को प्रतिबंधित कर दिया था। लेकिन इससे पहले, ऑस्ट्रेलिया ने चीन से पन्गा लिया था। कोविड में चीन ने जो गड़बड़ियां की थीं, उसकी जांच की मांग ऑस्ट्रेलिया ने ही की थी, जिसे अमेरिका ने बड़ा मुद्दा बना दिया था।

ऑस्ट्रेलियाई रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्लेस ने इस बात पर जोर दिया है, कि ऑस्ट्रेलिया की रक्षा का तब तक कोई मतलब नहीं है, जबतक हम क्षेत्र की सामूहिक सुरक्षा को नहीं देखते। आने वाले दशकों में कैनबरा, रक्षा बजट में भारी वृद्धि करेगा। दस वर्षों के भीतर रक्षा व्यय को लगभग दोगुना करना लक्ष्य है। वर्ष 2024 में लगभग 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर से शुरू डिफेन्स बजट, 2033 तक 66 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाना तय है। ऑस्ट्रेलियाई रॉयल नेवी के लिए परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों के साथ- साथ प्रशिक्षण, खरीद और निर्माण करने की योजना शामिल है। ऐसी तकनीक, जिसे अमेरिका ने पहले केवल ब्रिटेन के साथ साझा किया था। प्रशांत क्षेत्र में चीनी आक्रामकता को रोकने के लिए अंडर वाटर क्षमताएं बढ़ाया जाना महत्वपूर्ण हैं। लेकिन, कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि अमेरिका को ऑस्ट्रेलिया की सहायता करने के बजाय, अपनी परमाणु पनडुब्बियों के अधिकाधिक निर्माण को प्राथमिकता देनी चाहिए।

विचारणीय विषय यह भी है कि हिन्द-प्रशांत में क्या ‘क्वाड’ प्रभावशाली बन पाया? ‘क्वाड’ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापानी गठजोड़ से निर्मित सुरक्षा-केंद्रित साझेदारी है। 2023 में, ऑस्ट्रेलिया भी अमेरिका, जापान और फिलीपींस के साथ सैन्य अभ्यास में शामिल हुआ, जिसका उद्देश्य अशांत दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस को चीन द्वारा डराने-धमकाने का मुकाबला करना था। इन सारी कवायद के बावजूद, कैनबरा अब भी पेइचिंग से भय खाता है। उसकी वजह चीन की अभेद जल घेराबंदी है। ऑस्ट्रेलिया की नई एनडीएस (राष्ट्रीय रक्षा रणनीति) 2024 एक बड़े क्षेत्रीय रुझान की झलक देती है। इस नेटवर्क में ताइवान को भी शामिल किया हुआ है। ताइवान ने पिछले आठ वर्षों में अपने रक्षा खर्च को लगभग दोगुना कर दिया है। इंडोनेशिया, जो ऐतिहासिक रूप से चीन के करीब है, उसने भी ऑस्ट्रेलिया के साथ रक्षा सहयोग समझौते के लिए खुलेपन के संकेत दिखाए हैं।

छह आंखें बारह हाथ की कूटनीतिक कवायद से अलग, ‘नाईन आइज़’ और ‘फोर्टीन आइज़’ का विस्तार भी हो रहा है। ‘नाइन आइज़’ गठबंधन में फ़ाइव आइज़ सदस्यों के साथ-साथ डेनमार्क, फ्रांस, नीदरलैंड और नॉर्वे शामिल हैं। फोर्टीन आइज़ में जर्मनी, बेल्जियम, इटली, स्पेन और स्वीडन को भी शामिल करके इस समूह को विस्तार देने की बात है।

लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह कि फाइव आइज़ के बहाने क्या हिन्द-प्रशांत में भारत की भूमिका सीमित करने की कवायद चल रही है? जिस तरह से जस्टिन ट्रूडो ने फाइव आइज़ के मंच से भारत की घेराबंदी की है, उससे लगता है कि कनाडा किसी बड़े खेल की पटकथा लिख रहा है। कनाडा ने हाल ही में जापान में अपनी उपस्थिति का विस्तार किया। अपने टोक्यो दूतावास में कनाडा ने एक नया हिंद-प्रशांत-केंद्रित पद सृजित किया, साथ में चीन से संबंधित मामलों की देखरेख के लिए एक विशेषज्ञ की नियुक्ति की है। जस्टिन ट्रूडो, भारत-चीन-रूस अलायंस को लेकर भी असहज हैं। इसलिए फ़ाइव आइज़ की क़िलेबंदी में कनाडा की सक्रियता बढ़ा दी है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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