अरुण नैथानी
भले की पश्चिम बंगाल के राजनीतिक प्रलाप में केरल की क्रांति की अनुगूंज दूर तक न सुनी गई हो लेकिन केरल के खेवनहार पिनराई विजयन ने कमाल किया है। उन्होंने चालीस साल की उस परंपरा को तोड़ा है, जिसमें जनता केरल में हर पांच साल में दूसरे राजनीतिक समूह को सत्ता सौंप देती थी। राजनीतिक सत्ता को जो बंटवारा एलडीएफ व यूडीएफ में होता था, उसे विजयन ने रोक दिया है। विजयन के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी एलडीएफ ने लगातार दूसरी बार सरकार बनाई है। कहा जाता है कि सत्ता के खिलाफ जनता में पांच साल बाद मोहभंग की स्थिति होती है, लेकिन पिछले चुनाव में जहां 140 सदस्यों वाले सदन में उसे 91 सीटें मिली थी, वहीं इस बार 93 सीटें मिली हैं। चुनाव में न कोई स्टार प्रचारक थे और न ही केंद्रीय नेतृत्व का बड़ा हस्तक्षेप। वे अकेले पार्टी के खेवनहार बने रहे। दरअसल, पिछले पांच साल में कार्यों के जरिये जनता में विजयन यह विश्वास जगाने में सफल रहे कि अगर कोई मुसीबत आएगी तो वे मजबूत नेतृत्व दे पायेंगे। वे आपदा प्रबंधक के रूप में उभरकर सामने आये हैं।
सबसे बड़ा कमाल जो विजयन ने किया, वह था अल्पसंख्यक वोटों को एलडीएफ में लाने का, जो अब तक यूडीएफ का आधार हुआ करता था। ऐसा इसलिए कि सीपीएम को हिंदुओं की पार्टी माना जाता था और मुस्लिम व ईसाई मत यूडीएफ की झोली में चले जाते थे। यूडीएफ में उनके टक्कर का कोई नेता न होने का लाभ भी एलडीएफ को मिला। उन्हें पता था कि जनता को क्या संदेश देना है, जबकि यूडीएफ गफलत में रहा।
दरअसल, विजयन ने चुनाव में गोटियां खुद बैठायीं। उन्होंने खुद प्रत्याशियों का चुनाव किया। उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के सिद्धांतों को अपनी राजनीति में तरजीह दी। उन प्रत्याशियों का पत्ता काटा जो दो बार चुनाव जीत चुके थे। इसके चलते नये उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने का मौका मिला। उनका यह फार्मूला पार्टी के लिये कामयाबी का साधन बना। दूसरे विजयन की छवि राज्य में एक ईमानदार नेता की रही। जो भी विवाद राज्य में पिछली सरकार के दौरान हुए उनमें विजयन का नाम नहीं उछला। इसके इतर लोक कल्याण से जुड़े कार्यक्रमों के क्रियान्वयन तथा आपदा प्रबंधन की कुशलता ने लोगों का दिल जीता। खासकर कोविड-19 की महामारी में उनकी सरकार ने बेहतर ढंग से काम किया।
इस राज्य में देश का पहला कोविड संक्रमित व्यक्ति मिला था, लेकिन राज्य ने सुनियोजित ढंग से इसका मुकाबला किया। राज्य सरकार के कोविड नियंत्रण प्रयासों की विश्व स्तर पर भी प्रशंसा हुई। महामारी के दौरान उन्होंने सामाजिक सुरक्षा पेंशन बढ़ाई। राशन देने में अभिनव प्रयोग से लोगों को लाभ हुआ। जिसके चलते आपदा में लोगों के पास अनाज के साथ पैसा भी था। पेंशन व राशन किट योजना के साथ ही एक भरोसा लोगों में था कि उनका नेतृत्व उनकी मुसीबत में संवेदनशील रहता है। यही वजह है कि दूसरी बार सत्ता में आने के लिये चुनाव लड़ने वाले दलों के खिलाफ पैदा सत्ता-विरोधी भावना नजर नहीं आई।
दरअसल, जनता में एक भरोसा कायम हुआ कि राज्य में कोई प्राकृतिक आपदा आएगी तो हमारा नेतृत्व उससे जूझने में सक्षम है। राज्य में दो बार बाढ़ आई, निपाह वायरस संकट व कोरोना महामारी में सक्रियता से सरकार में जनता का भरोसा बढ़ा। सरकार की धरातल पर उतरी योजनाओं का ही नतीजा है कि जब पूरे देश में मेडिकल ऑक्सीजन के चलते हाहाकार मचा है तो केरल कई राज्यों को ऑक्सीजन उपलब्ध करा रहा है। अभी राज्य ने पूरी क्षमता से काम करना शुरू नहीं किया है।
एक बड़ा दांव विजयन ने पार्टी के जनाधार को बढ़ाकर यूडीएफ का आधार खिसकाने के लिये चला। उन्होंने मुस्लिम वोटों को पार्टी की तरफ मोड़ा जो यूडीएफ में मुस्लिम लीग व कांग्रेस के साथ हुआ करते थे। कहीं न कहीं मुस्लिम मतदाताओं में यह सोच विकसित हुई कि भाजपा के उदय में उनका हित नहीं है। यह भी कि एलडीएफ के साथ जाने में ही उनके हित सुरक्षित रह सकते हैं। इतना ही नहीं, वे पार्टी के पक्ष में ईसाई मतों का ध्रुवीकरण करने में भी सफल रहे। कांग्रेस की मददगार रही केरल कांग्रेस को वे एलडीएफ के साथ लाने में कामयाब रहे, जिससे ईसाई मत एलडीएफ को मिले। बताया जाता है कि राज्य में सत्ताइस प्रतिशत मुस्लिम व सत्रह प्रतिशत वाले ईसाई समुदाय से जरूरी वोट पार्टी के लिये निकालने में सफल रहे।
सख्त मिजाज वाले पिनराई विजयन को केरल में ‘धोती पहनने वाला मोदी’ भी कहते हैं। कुछ लोग उनकी तुलना रूस में साम्यवादी नेतृत्व करने वाले स्टालिन से करते हैं। विजयन एक मजबूत व कर्मठ राजनेता के रूप में जाने जाते हैं। दरअसल, मोदी की तरह ही विजयन भी साधारण परिवार से आते हैं। कन्नूर जिले के पिनराई गांव के रहने वाले विजयन के माता-पिता ताड़ी बनाने वाले एल्वा समुदाय से आते हैं। उनके नेतृत्व में मोदी जैसी खूबियां लोग देखते हैं। छात्र जीवन में वाम राजनीति में आये विजयन ने अर्थशास्त्र में डिग्री हासिल की थी। इमरजेंसी के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया था और पुलिस ने उन पर अत्याचार भी किये थे। भारतीय युवा परिसंघ में सक्रिय रहने के बाद 1998 में वे सीपीएम के राज्य सचिव बने और यह पद लगातार सत्रह वर्ष तक संभाला। उन पर निरंकुश व्यवहार का भी आरोप लगा। वे सुनते सब की रहे लेकिन फैसला खुद लेते हैं। यही वजह है कि उनकी तुलना स्टालिन से भी की जाती रही है। आज वे पार्टी में एकछत्र राज करने वाले नेता हैं।