भारतीय संस्कृति में अन्न को देवता कहा गया है। थाली में भोजन छोड़ना अन्न के प्रति अनादर माना गया है, लेकिन देश में करोड़ों टन भोजन रोज़ाना नालियों और गड्ढों में फेंक दिया जाता है। खाद्यान्न की बर्बादी को रोकने के लिए नारा दिया गया- ‘भोजन उतना लो थाली में, जो व्यर्थ न जाए नाली में।’ लेकिन इस नारे का असर किसी भी भंडारे, उत्सव और शादी-ब्याह में दिखाई नहीं देता। मतलब साफ है, हम स्वयं को भले ही भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक बताते न थकते हों, लेकिन सच्चाई यह है कि दिनभर हम सांस्कृतिक और शैक्षिक मूल्यों की अवहेलना करने में ही समझदारी समझते हैं। यही वजह है कि देश में भुखमरी, कुपोषण और शोषण की समस्या से आजादी के पचहत्तर साल बाद भी निजात नहीं पा सके हैं।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पैदा होने वाला 40 प्रतिशत भोजन बेकार चला जाता है।, यह मात्रा ब्रिटेन में हर साल उपयोग होने वाले भोजन के बराबर है। देश में हर साल 25.1 करोड़ टन से अधिक खाद्यान्न का उत्पादन होता है। इसके बावजूद भारत में हर चौथा व्यक्ति भूखा या आधे पेट सोता है। कृषि मंत्रालय की फसल अनुसंधान इकाई सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीफैट) की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में हर साल करीब 87 लाख टन खाद्यान्न उचित भंडारण और कोल्ड स्टोरेज की मुकम्मल व्यवस्था न होने के कारण खराब हो जाता है, जिसकी कीमत 92 हजार करोड़ आंकी गई है।
इसी तरह हर साल 20 हजार करोड़ की सब्जियां और फल बर्बाद हो जाते हैं। सीफैट हर साल फसलों की कटाई के बाद खाद्य पदार्थों पर अपनी रिपोर्ट कृषि मंत्रालय को देता है। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल इसमें करीब 20 से 22 फीसदी तक फल और सब्जियां कोल्ड स्टोरेज और प्रसंस्करण के अभाव में खराब हो जाते हैं। यानी हर साल करीब 20 हजार करोड़ रुपये की फल-सब्जियां बर्बाद हो जाती हैं। फीसैड के अनुसार, यदि फलों और सब्जियों को बर्बाद होने से रोकना है तो कोल्ड स्टोरेज की संख्या को दुगना करना होगा। हालांकि अभी देश में 6500 से ज्यादा कोल्ड स्टोरेज हैं, जिनकी भंडारण क्षमता 3.1 करोड़ टन है। गौर करने वाली बात यह भी है कि सब्जियों में हर साल टमाटर, प्याज अलग-अलग कारणों से बाजार में पहुंचने के पहले ही बर्बाद हो जाते हैं। सीफैट की रिपोर्ट कहती है कि देशभर में हर साल कोल्ड स्टोरेज के अभाव में 10 लाख टन प्याज बाजार नहीं पहुंच पाता है। इसी तरह 22 लाख टन टमाटर भी अलग-अलग कारणों से बाजार नहीं पहुंच पाते हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में हर साल कितने बड़े पैमाने पर खाद्यान्न, फल और सब्जियां बर्बाद हो जाते हैं।
निस्संदेह, समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकारों ने अभी तक जितनी पहल की है, जब तक उन्हें अमलीजामा नहीं पहनाया जाएगा तब तक खाद्यान्न, फल और सब्जियों की बर्बादी नहीं रोकी जा सकती है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के जरिए जारी फूड वेस्टेज इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार बीते सालों में दुनियाभर में अनुमानित 93.10 करोड़ टन खाना बर्बाद हो गया, जो वैश्विक स्तर पर कुल खाने का 17 फीसदी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय घरों में हर साल करीब 6.87 करोड़ टन खाना बर्बाद हो जाता है। आंकड़े के अनुसार, 93.10 करोड़ टन बर्बाद खाने में से 61 फीसदी हिस्सा घरों से, 26 फीसदी खाद्य सेवाओं और 13 फीसदी खुदरा जगहों से आता है। यह तब है जब शादियों व समारोहों में फिजूलखर्ची पर रोक लगाने के लिए 2006 से अधिनियम लागू है।
निस्संदेह कृषि उत्पादों के रखरखाव और विपणन में सुधार करना होगा। मिसाल के तौर पर मध्य प्रदेश में पिछले दो साल में 100 लाख टन गेहूं, 4 लाख टन धान, और 1 लाख टन मूंग और उड़द का भंडारण हुआ। इधर गोदाम वाले ज्यादा मुनाफे के लिए कुछ नए पैंतरे अपनाने लगे हैं। जिस मध्य प्रदेश का गेहूं भारत भर में सबसे महंगा और अच्छे किस्म का माना जाता है, उस प्रदेश की हालत यह है कि लाखों टन गेहूं रखरखाव के अभाव में हर साल खराब हो रहा है।
इस बर्बादी को रोकने के लिए महिलाएं काफी हद तक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। यदि वे घर, उत्सव और समारोहों में खाद्यान्न की बर्बादी के खिलाफ आगे आएं तो समस्या का काफी हद तक समाधान किया जा सकता है। गौरतलब है, सरकारी लापरवाही की वजह से ही खाद्यान्न, फलों और सब्जियों की बर्बादी नहीं हो रही है बल्कि आम आदमी भी अपनी आदतों के चलते इस बर्बादी के प्रति कोई ध्यान नहीं दे रहा है। इसी तरह आस्था, आदत, हैसियत दिखाने और लापरवाही की वजह से देश में सैकड़ों टन दूध बर्बाद हो जाता है। यह उस देश में होता है जहां दूध के अभाव में लाखों बच्चे कुपोषण और मौत के शिकार हो जाते हैं।