Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

पर्यावरण अनुकूल धान की सीधी बिजाई को प्रोत्साहन जरूरी

टिकाऊ खेती
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

धान की सीधी बिजाई विधि की प्रोत्साहन योजना से जहां फसल में पानी की खपत कम होगी वहीं यह पराली प्रबंधन में भी मददगार है। इस विधि से फसल समय पर पककर कटाई जल्दी होती है और अगली फसल बुआई के लिए समय मिलता है। इससे जलाने के बजाय दबाकर पराली का टिकाऊ प्रबंधन भी संभव है।

डॉ. वीरेन्द्र सिंह लाठर

Advertisement

रोपाई विधि से धान की खेती ने भूजल संकट और वायु प्रदूषण बढ़ाया, जिससे पर्यावरण हितैषी सीधी बिजाई तकनीक उपेक्षित रही। इसकी प्रमुख वजह रही नीति-कार्यक्रमों में त्वरित समाधान और लालफीताशाही। वर्ष 2022-23 में हरियाणा में 16 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती से 59 लाख टन उत्पादन हुआ। कृषि मंत्री ने बताया कि वर्ष 2024 में 50,540 किसानों ने 1.80 लाख एकड़ भूमि पर बिजाई तकनीक अपनाई, जबकि लक्ष्य 3 लाख एकड़ था। वर्ष 2025 के लिए 4 लाख एकड़ लक्ष्य तय किया है, जिसमें प्रति एकड़ 4,500 रुपये प्रोत्साहन राशि दी जाएगी।

वर्ष 1968 तक प्रदेश के किसान पारंपरिक, पर्यावरण हितैषी सीधी बिजाई विधि से धान उगातेे थे। परंतु हरित क्रांति के दौरान नीति नियंताओं ने हरियाणा जैसे राज्य में भी भूजल-बर्बादी वाली रोपाई विधि थोप दी। नतीजन गंभीर भूजल संकट पैदा हुआ और आज प्रदेश के अधिकांश ब्लॉक भूजल संकटग्रस्त ‘ग्रे ज़ोन’ में हैं।

भूजल संकट के त्वरित समाधान के लिए गैर-तकनीकी नीतिकारों ने हरियाणा प्रिजर्वेशन आफ सबसाॅयल ग्राउंड वाॅटर एक्ट-2009 बनाकर, धान रोपाई 15 जून से पहले करने पर कानूनी रोक लगा दी। जिसके चलतेे धान फसल देरी से पकने के कारण कटाई भी देरी से यानी 15 अक्तूबर के बाद होने लगी। इससे अगली फसल आलू, सरसों, गेहूं आदि की बुआई की तैयारी के लिए कम समय मिला तोे किसान पराली जलाने को मजबूर हुए। यह वायु प्रदूषण का कारण बन गया। हर साल अक्तूबर से दिसंबर में, सरकार, सर्वोच्च न्यायालय और प्रसार माध्यमों में तरह-तरह के अव्यावहारिक समाधानों के साथ खूब चर्चा होती है। जबकि कम अवधि वाली धान किस्मों के साथ सीधी बिजाई तकनीक प्रदूषण रोकने का टिकाऊ समाधान है। जिससे धान फसल कटाई और अगली फसल बुआई में 30-40 दिन मिलते हैं। पराली खेत में दबाकर बिना जलाये उसका प्रबंधन संभव है।

खासकर, गैर-तकनीकी नीतिकारों ने पिछले एक दशक में पराली प्रबंधन के लिए अव्यावहारिक एक्स सीटू समाधान (पराली के बंडल बनाकर कारखानों तक पहुंचाना) पर करीब दस हजार करोड़ रुपये की बर्बादी की है। जबकि धान कटाई से अगली फसल की बुआई की 10-20 दिन की कम अवधि में भारी मात्रा में उपलब्ध धान पराली का एक्स सीटू प्रबंधन तकनीकी तौर पर लगभग असम्भव है। इसके विपरीत, पराली प्रबंधन के लिए कंबाइन हार्वेस्टर में सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम अनिवार्य करना और पराली दबाकर खाद बनाना किसान व पर्यावरण हितैषी हल है।

धान रोपाई विधि से उत्पन्न गंभीर भूजल संकट से निपटने के लिए, नीति नियंता अब सीधी बिजाई विधि पर वापस लौटने को किसानों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। बिजाई विधि में लगभग 30 प्रतिशत भूजल सिंचाई, लागत, बिजली, ऊर्जा, श्रम की बचत के साथ रोपाई धान के ही बराबर ही पैदावार होती है। सीधी बिजाई ग्रीन हाउस गैस के कम उत्सर्जन और रोपाई के मुक़ाबले 10-15 दिन पहले पकने से पराली प्रबंधन में भी सहायक सिद्ध हुई है। भूजल संरक्षण योजना के अंतर्गत हरियाणा सरकार ने आगामी धान सीजन खरीफ-2025 के लिए 4500 रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन पैकेज दिया है व प्रदेश के लगभग 10 प्रतिशत धान क्षेत्र पर सीधी बिजाई का लक्ष्य है। पराली प्रबंधन के लिए 1200 रुपये एकड़ प्रोत्साहन की घोषणा की है। लेकिन इस योजना की कामयाबी के लिए विभागीय स्तर पर बेहतर कार्यशैली की दरकार है। धान की सीधी बिजाई का सही समय 20 मई से 5 जून होता है। बेहतर है कि सीधी बिजाई धान प्रोत्साहन योजना के विज्ञापन समय पर प्रकाशित हों। पिछले वर्ष इन योजनाओं को अपनाने वाले किसानों के करोड़ों रुपये अभी तक जारी नहीं किये हैं। योजना की कामयाबी के लिए किसानों का सरकारी योजनाओं में विश्वास बनाने के उपाय जरूरी हैं। पिछले वर्ष सीधी बिजाई धान योजना में प्रोत्साहन पैकेज के करोड़ रूपये और पराली प्रबंधन योजना की राशि अभी तक किसानों को नहीं मिली। ऐसे में इस वर्ष किसानों की इन योजनाओं में कम रुचि स्वाभाविक हैै।

ज्ञात रहे, भूजल बर्बादी वाली रोपाई धान पर रोक लगाने और पराली दहन से हो रहे प्रदूषण को रोकने के नाम पर, कृषि विभाग पिछले 15 वर्षों से 7,000 रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन पैकेज के साथ अव्यावहारिक फसल विविधीकरण और एक्स सीटू पराली प्रबंधन के लिए हजारों करोड़ रुपये वार्षिक बर्बाद कर रहा है। जबकि इस दौरान हरियाणा में धान का क्षेत्र लगातार बढ़ता जा रहा है। जो राज्य कृषि विभाग की इन योजनाओं की व्यावहारिकता पर बड़ा सवाल है। बता दें कि हरियाणा की मौजूदा भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों में खरीफ सीजन में लगभग 70 प्रतिशत भूभाग में जलभराव होने से, धान की खेती ही सबसे उपयुक्त और किसान हितैषी है। केंद्रीय कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अनुसार उत्तर पश्चिम भारत के मैदानी क्षेत्र के लिए गन्ने के बाद धान-गेहूं चक्र ही सबसे लाभदायक है। विविधीकरण अपनाने की सलाह व्यावहारिक नहीं।

जरूरी है कि सरकार भूजल संरक्षण योजनाओं के लिए विभागीय कार्यशैली किसान हितैषी बनाकर और रोपाई पर प्रतिबंध लगाकर सीधी बिजाई धान को प्रोत्साहित करे। जिससे हरियाणा में धान की खेती पहले की तरह से टिकाऊ बन सके।

Advertisement
×