अभिषेक कुमार सिंह
भारत में गिग इकोनॉमी की एक बार फिर चर्चा है। हाल में इसकी चर्चा जी-20 देशों के श्रम और रोजगार मंत्रियों की मध्य प्रदेश स्थित इंदौर में एक बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदेश के माध्यम से हुई है। जिसमें मोदी ने दावा किया कि गिग अर्थव्यवस्था और गिग प्लेटफार्म में युवाओं के लिए रोजगार पैदा करने की अभूतपूर्व क्षमता है। जी-20 की इस बैठक में गिग श्रेणी के कर्मचारियों को पर्याप्त और टिकाऊ सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ उचित रोजगार देने पर जोर दिया गया है। इस तरह यह देश में पहला मौका बना, जब गिग कर्मचारियों के रोजगार हितों की तरफ सरकार का ध्यान जाता दिखा है। गिग अर्थव्यवस्था की ओर उल्लेखनीय ध्यान कोविड -19 महामारी के दौर में गया, जब इस अर्थव्यवस्था से जुड़े कर्मचारियों ने थमी हुई दुनिया को चलाए रखने का जिम्मा उठाया।
असल में स्वतंत्र रूप से अस्थायी कार्य और ऑनलाइन मंचों पर काम करने वाले लोगों को ‘गिग प्लेटफॉर्म’ कर्मचारी कहा जाता है। पहले से मौजूद फ्रीलांसिंग पेशों के इतर गिग कर्मचारियों वाली रोजगार की यह अपेक्षाकृत एक नई व्यवस्था है जो पिछले एक दशक के दौरान तेजी के साथ उभरी है। असल में दुनियाभर के नियोक्ता एक नए बिजनेस मॉडल पर काम कर रहे हैं, जिसे ऐप आधारित कैब सेवा- उबर ने लोकप्रिय बनाया है। इस तरह कार्यबल का ‘उबराइजेशन’ एक नया सूत्रवाक्य है। भारत में इससे संबंधित सरकारी आंकड़े देखें तो देश के ‘ई-श्रम पोर्टल’ पर एक साल में 28 करोड़ 62 लाख गिगकर्मियों ने पंजीकरण कराया है। ऐसे में साल 2024 तक भारत के कुल कार्यबल का तकरीबन चार फीसदी हिस्सा ‘गिग सेक्टर’ में बदल जाने वाला है। सवाल है कि कार्यबल में हो रहे इस तेज बदलाव को क्या सकारात्मक माना जाए या नुकसानदायक।
यदि गिग अर्थव्यवस्था के फायदों की बात की जाए, तो इसका एक आकलन सामने आ चुका है। वर्ष 2017 में अंग्रेजी के एक दैनिक अखबार ने अपने विश्लेषण में लिखा था कि गिग वर्किंग बढ़ने के कारण इसकी बहुत अधिक संभावना है कि 10 साल बाद आप घर बैठकर ही ऑफिस का काम करेंगे, अपनी पसंद मुताबिक समय में। लेकिन यह बदलाव अनुमान के मुकाबले ज्यादा तेजी से हुआ। इसकी वजह महामारी कोविड-19 है, जिससे लॉकडाउन के हालात बन गए। ऐसे में गिग कामकाज का वह नजारा वक्त से पहले दिख गया और कंपनियां और नौकरीपेशा या कारोबारी तक घर से कामकाज को प्राथमिकता देने लगे। ऐसा ही एक और आंकड़ा है। वित्तीय सेवा देने वाले प्लेटफार्म ‘स्ट्राइडवन’ ने साल 2023 में जारी रिपोर्ट में बताया है कि भारत में संविदा, फ्रीलांस और अंशकालिक सेवाओं वाले बाजार में 2020-21 में 80 लाख लोग कार्यरत थे यानी कुल कार्यबल का डेढ़ फीसदी। पर 2024 तक 2.35 करोड़ कर्मचारियों को गिग इकोनॉमी से जुड़े कामकाज मिलने की सूरत में यह प्रतिशत बढ़कर 4 तक पहुंच सकता है।
गिग इकॉनमी वाले सिस्टम में टैलंट (प्रतिभाएं) डिमांड और सप्लाई के आधार पर काम करता है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में ज्यादा से ज्यादा लोगों के पास स्मार्टफोन होने, सस्ता डेटा और इंटरनेट-आधारित सेवाओं के लिए बढ़ती भूख के साथ, ऑनलाइन रिटेल की पैठ के वर्ष 2019 के 5 प्रतिशत से बढ़कर 2024 तक 11 फसदी हो जाने की उम्मीद है। संस्था- टीमलीज सर्वे के मुताबिक, भारत में सबसे अधिक गिग वर्कर हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में रखे जा रहे हैं। इसके बाद एजुकेशनल सर्विसेज और मीडिया-एंंटरटेनमेंट का नंबर है। सूची में पांचवां स्थान ई-कॉमर्स और स्टार्टअप्स का है। कंपनियां लागत में कमी के लिए भी गिग वर्कर्स को चुन रही हैं। माना जा रहा है कि इनमें सबसे ज्यादा असर देश के आईटी सेक्टर में होगा। इसका एक कारण वैश्विक बाजार की अनिश्चितता है। इसमें हॉस्पिटैलिटी और आईटी कंपनियां ‘कार्यबल के उबराइजेशन’ के साथ ऐसी संभावनाएं तलाश रही हैं, जिसमें स्थायी और अस्थायी कर्मियों का मिश्रण हो। आईटी कंपनियों में नियुक्त मानव संसाधन अधिकारी मानते हैं कि जिस तरह के काम अब कंपनियों के पास आ रहे हैं, उन्हें स्थायी कर्मचारियों के आधार पर तुरंत पूरा करना संभव नहीं। नियोक्ता ऐसे काम रेगुलर की बजाय ऑन-डिमांड उपलब्ध पेशेवरों को सौंपने लगे हैं।
बेशक तेज इंटरनेट और तकनीकी सुविधाओं के कारण घर से काम करना आसान हो गया। वहीं आजकल युवा दफ्तर आने-जाने में लगने वाले समय और मौसम व ट्रैफिक जाम जैसी समस्याओं से बचने और वर्क-लाइफ बैलेंस के चलते गिग कामकाज को प्राथमिकता देने लगे हैं। पर इसमें कुछ पेच भी हैं। ऐसे वक्त में जब सरकार तक सेना में स्थायी रोजगार देने के स्थान पर अग्निवीर भर्ती करने के पक्ष में हो, निजी कंपनियां तो पहले ही कर्मचारियों के प्रति अपने दायित्वों से मुक्त होना चाहेंगी। साथ ही, वे हाईटेक निगरानी इतनी सख्त कर देती हैं कि स्थायी कर्मचारियों को उससे परेशानी होने लगती है। सीट से उठने की भी सख्त निगरानी है। लॉग-इन व लॉग-आउट से हिसाब-किताब रखा जाता है।
पर एक पहलू यह कि चूंकि पूरी दुनिया में स्थायी नौकरियां घट रही हैं। दूसरे ऑर्टिफिशयल इंटेलीजेंस जैसी तकनीकों के कारण स्थायी नौकरियों पर और अधिक दबाव पैदा हो गया है। इसलिए युवा स्थायी नौकरी को झंझट मान सकते हैं व उन्हें गिग अर्थव्यवस्था ज्यादा रास आ सकती है क्योंकि इसमें काम, छुट्टी और वर्क-लाइफ बैलेंस का फैसला खुद उनके हाथ में होता है। इसमें अहम समस्या सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल की है, जिसके बारे में जी-20 की बैठक में विचार किया गया। यदि गिग नौकरियों में सामाजिक सुरक्षा आदि लाभ मिलने लगेंगे, तो नियोक्ता और कर्मचारी- दोनों के लिए स्थिति सोने में सुहागे वाली होगी।