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ट्रंप के दावों के बावजूद रुकेगा नहीं ईरान

क्या ट्रम्प के ‘सीज़ फ़ायर’ बोल भर देने से शांति हो जायेगी? इस सच से अमेरिकन्स वाकिफ हैं कि अकेला ईरान है, जिसके ‘हमास’, ‘हिज़्बुल्लाह’, ‘इस्लामिक जिहाद’ जैसे प्रॉक्सी मिलिटेंट्स, पूरे मिडल ईस्ट में पसरे हुए हैं। पुष्परंजन आप ईरान...
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क्या ट्रम्प के ‘सीज़ फ़ायर’ बोल भर देने से शांति हो जायेगी? इस सच से अमेरिकन्स वाकिफ हैं कि अकेला ईरान है, जिसके ‘हमास’, ‘हिज़्बुल्लाह’, ‘इस्लामिक जिहाद’ जैसे प्रॉक्सी मिलिटेंट्स, पूरे मिडल ईस्ट में पसरे हुए हैं।

पुष्परंजन

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आप ईरान के ठिकानों पर कोऑर्डिनेटेड बमबारी करें, फिर घोषणा कर दें, कि इस्राइल-ईरान युद्धविराम पर सहमत हो गए हैं। यह अमेरिकी दादागिरी का दीगर रूप है। ख़ुद की सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, ‘ट्रुथ सोशल’ पर डोनाल्ड ट्रम्प बोले, ‘यदि ईरान के पास परमाणु हथियार है, तो आप शांति नहीं पा सकते।’ ऐसे बोल-वचन इसलिए, ताकि पश्चिमी देश खुश हो जाएं। अमेरिकी सैन्य कार्रवाई अपरिहार्य और नैतिक रूप से उचित साबित हो। ये वही ट्रम्प हैं, जो बात-बात पर परमाणु बम की धमकी देने वाले पाकिस्तान के सेना प्रमुख को व्हाइट हाउस में दावत देते हैं। लेकिन, तोताचश्म पाकिस्तान ने बयान दिया, कि हम ईरान के साथ खड़े हैं।

अगर, परमाणु क्षमता का आकांक्षी ईरान शांति का दुश्मन है, तो अमेरिका के पास लगभग 5,244 परमाणु हथियार हैं, जो कि इस्राइल के अघोषित शस्त्रागार में अनुमानित संख्या से दस गुना अधिक हैं। अंतर्राष्ट्रीय परमाणु अधिकरण (आईएइए) खुफिया के अनुसार, ‘ईरान ने अभी तक परमाणु हथियार नहीं बनाया है।’ ईरान परमाणु हथियारों के अप्रसार (एनपीटी) पर संधि का हस्ताक्षरकर्ता बना हुआ है। इजरायल नहीं है।

अमेरिका के पास 100 से अधिक देशों में 800 से अधिक सैन्य अड्डे हैं। इसकी तुलना चीन से करें, जो पड़ोसी क्षेत्रों में केवल एक विदेशी सैन्य अड्डे रखता है, या रूस, जो लगभग बीस सैन्य अड्डों का प्रबंधन करता है। यह वैश्विक स्थिरता का संकेत नहीं है। यह एक साम्राज्यवादी ढब है। पूरी दुनिया का चौधरी बने रहने की लिप्सा। विदेश संबंध परिषद के अनुसार, ‘इस समय मध्य पूर्व में कम से कम 19 अमेरिकी मिलिटरी बेस हैं। इनमें से आठ स्थायी सैन्य ठिकाने हैं।’ बहरीन, मिस्र, इराक, जॉर्डन, कुवैत, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में बनाए अमेरिकी सैन्य ठिकाने हटवाने की हिम्मत वहां की कठपुतली सरकारें नहीं करतीं। अमेरिका ने पूरे मिडल ईस्ट में लगभग 40,000 सैनिक तैनात किये हैं।

क़तर में 1996 में निर्मित अल उदीद एयरबेस मध्य पूर्व का सबसे बड़ा अमेरिकी सैन्य अड्डा है। यह ईरान द्वारा लक्षित स्थलों में से एक था। इस बेस पर अमेरिकी सेंट्रल कमांड का क्षेत्रीय मुख्यालय है, जहां 11,000 से अधिक अमेरिकी और गठबंधन सेना के सदस्य रहते हैं। यहां जो कुछ ईरानी हमला हुआ, ट्रम्प ने उसका मखौल उड़ाया। बहरीन में अमेरिकी नौसेना के पांचवें बेड़े की तैनाती है, जिसमें लगभग 9,000 सैन्य कर्मी और नागरिक कर्मचारी शामिल हैं। इराक में लगभग 2,500 अमेरिकी सैनिक हैं। 3 जनवरी, 2020 को ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के प्रतिशोध में अल-असद और एरबिल अमेरिकी बेस को ईरान ने निशाना बनाया था।

वर्ष 2023 से ईरान समर्थित हौथी आतंकवादी समूह लाल सागर और अदन की खाड़ी में वाणिज्यिक जहाजों पर हमले कर रहे हैें, जिसमें अमेरिकी जहाजों पर हमले भी शामिल हैं। इराक में तेहरान समर्थित शिया मिलिशिया, हिजबुल्लाह अलग से एक्टिव हैं। तो क्या ट्रम्प के ‘सीज़ फ़ायर’ बोल भर देने से बंदूकें गरजनी बंद हो जायेंगी? इस सच से अमेरिकन्स और इस्राइली वाकिफ हैं कि अकेला ईरान है, जिसके ‘हमास’, ‘हिज़्बुल्लाह’, ‘इस्लामिक जिहाद’ जैसे प्रॉक्सी मिलिटेंट्स, पूरे मिडल ईस्ट में पसरे हुए हैं। सऊदी अरब और यूएई जैसे प्रमुख ‘स्विंग स्टेट’ कूटनीतिक समाधान की कोशिश में हैं। सऊदी अरब, मिस्र, इराक, जॉर्डन सहित अधिकांश अरब राज्यों ने ईरान पर इस्राइल के हमलों की निंदा की है, ताकि तेहरान को इन पर भरोसा हो। ट्रम्प ने ऐसी प्रतिक्रिया सोची नहीं थी। युद्धविराम की तत्काल घोषणा की सबसे बड़ी वजह यह भी है।

ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के प्रतिनिधि हुसैन शरीयतमादारी ने कट्टरपंथी कायहान अखबार से कहा, ‘अब हमारी बारी है। हम बिना समय बर्बाद किए, अमेरिकी, ब्रिटिश, जर्मन और फ्रांसीसी जहाजों के लिए होर्मुज जलडमरूमध्य को पूरी तरह बंद करेंगे। होर्मुज जलडमरूमध्य के बरास्ते, वैश्विक तेल और गैस का पांचवां हिस्सा दुनियाभर को सप्लाई होता है, यह यदि बंद हुआ, तो विकल्प क्या है? सबसे व्यवहार्य विकल्प सऊदी अरब के बरास्ते ईस्ट-वेस्ट पेट्रो पाइपलाइन है, जो लाल सागर तक तेल पहुंचा सकती है। अन्य विकल्पों में इराक पाइपलाइन (आईपीएसए) और ओमान की खाड़ी में फुजैराह से जोड़ने वाली पाइपलाइनें शामिल हैं। यूरोपीय नेताओं की भृकुटियां इससे तन गई हैं। उन्हें लगता है, ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को गद्दी से उतार देना अंतिम उपाय है।

दरअसल, अमेरिकी हमलों ने एक बार फिर से अयातुल्ला अली खामेनेई की जड़ों को मज़बूत कर दिया है। ईरान की नई पीढ़ी उनकी रूढ़िवादी और बुर्कापरस्त नीतियों का विरोध कर रही थी। जो युवा तेहरान की सड़कों पर सर्वोच्च नेता के खिलाफ मुट्ठी तानकर खड़े थे, वही चेहरे खामेनेई के समर्थन में खड़े हैं। बिना पब्लिक सपोर्ट के सत्ता परिवर्तन आसान नहीं है, इस सच को अमेरिकंस भी समझते हैं। यूरोपीय शक्तियां पहले ईरान के साथ यूरेनियम संवर्धन रोकने, अपने मिसाइल कार्यक्रम पर लगाम लगाने, और प्रॉक्सी समूहों को समर्थन देना बंद करने के लिए एक समझौते पर दबाव डाल रही थीं। लेकिन ईरान ने पूर्ण रोक को अस्वीकार कर दिया है, कि उसका संवर्धन शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है।

यूरोपीय-अमेरिकन नेता भूल जाते हैं, कि पुतिन और शी पूरी ख़ामोशी से इस घटनाक्रम को देख रहे हैं। राष्ट्रपति पुतिन ने क्रेमलिन में ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची से सोमवार को मुलाकात की, और अमेरिकी हमले की भर्त्सना की। उत्तर कोरिया ने भी लगे हाथ ईरान पर अमेरिकी हमले की निंदा की है, और इसे संप्रभु अधिकारों का उल्लंघन बताया। इसके मायने क्या निकलते हैं? उत्तर कोरिया, ईरान के मिसाइल कार्यक्रमों का अहम सहकार है। ट्रम्प को पता है, मास्को-चीन-उत्तर कोरिया धुरी ईरान में एक्टिव हो चुकी है। मार्च, 2023 में पेइचिंग समझौते के बाद से, सऊदी-ईरान संबंधों ने नए अध्याय में प्रवेश किया है। उभयपक्षीय भरोसे की वजह से सऊदी अरब में फंसे 70 हज़ार से अधिक ईरानी हज यात्रियों को किंगडम ने आश्रय, चिकित्सीय देखभाल, और परिवहन प्रदान किया।

एक बात तो मानकर चलिए, मिडल-ईस्ट में कूटनीति निकट भविष्य के लिए मर चुकी है। अमेरिका-इस्राइल की कोशिश, सद्दाम हुसैन, कर्नल गद्दाफी की कहानी दोहराने की होगी। ट्रंप ने 17 जून को सोशल मीडिया पोस्ट के ज़रिये अयातुल्ला अली खामेनेई का नाम लेते हुए लिखा, ‘हमें ठीक से पता है कि तथाकथित ‘सर्वोच्च नेता’ कहां छिपा है। वह एक आसान लक्ष्य है, लेकिन वहां सुरक्षित है - हम उसे खत्म नहीं करने जा रहे हैं, कम से कम अभी तो नहीं।’ आपने अफ़ग़ानिस्तान, इराक, लीबिया में नेता और सत्ता बदल तो दिया, लेकिन नव-स्थापित सरकारें अक्सर खुद को देश की समस्याओं को हल करने की चुनौती का सामना करने में असमर्थ पाती हैं। अफ़ग़ानिस्तान इसका ताज़ा उदाहरण है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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