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आईपीएल और राजनीति के खेल अलबेले

तिरछी नज़र
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सहीराम

इस वक्त दो खेल चल रहे हैं जी और दोनों का अपना आनंद है। एक तो आइपीएल चल रहा है, दूसरा चुनाव चल रहा है। बच्चों की परीक्षाएं हो गयीं, थोड़े दिन में छुट्टियां भी पड़ जाएंगी। बच्चे भी फ्री, शिक्षक भी फ्री। किसानों की फसल भी कट गयी, निकल गयी, सो वे भी सरकारी खरीद के लिए अपनी ट्रॉलियां मंडी में लगाकर या फसल आढ़तियों के यहां डालकर बच्चों की शादियां करते हुए आराम से इन खेलों का मजा ले सकते हैं। वैसे चुनाव के वक्त एमएसपी के लिए तो लड़ना नहीं है।

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लेकिन समस्या यही है जी कि लोग न तो आइपीएल को सीरियसली ले रहे हैं और न ही चुनाव को। दोनों के मामले में सिद्धांत एक ही काम कर रहा है। परंपरागत क्रिकेट प्रेमी आईपीएल को क्रिकेट नहीं मानते। नूरा कुश्ती मानने का डर यह है कि वह तो दो के बीच ही हो सकती है। सो वे इसे तमाशा कहना ज्यादा पसंद करते हैं। उधर नेताओं के झूठ वगैरह से त्रस्त लोग चुनावों को भी तमाशा ही मानने लगे हैं। आईपीएल को कोई क्रिकेट न माने तो कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, लेकिन चुनावों को तमाशा मानने के अपने खतरे हैं। अच्छी बात यह है कि कुछ पढ़े-लिखे, कुलशील और कुलीन तबके ही इसे तमाशा मानते हैं, वैसे ही जैसे अभिजात्य क्रिकेट प्रेमी आईपीएल को तमाशा मानते हैं। वरना आम लोगों को तो दोनों ही खेलों में खूब आनंद आ रहा है।

वैसे लोगों को यह अच्छा नहीं लगता कि आईपीएल में सट्टा बहुत चलता है। लेकिन सट्टा तो राजनीति में भी खूब चलता है जी। नहीं सर्वे वालों की बात नहीं। वह तो धंधा है। बात सचमुच वाले सट्टे की हो रही है। आईपीएल के सट्टा बाजार को तो भले ही कोई विश्वसनीय न मानता हो, लेकिन राजनीति वाले सट्टा बाजार को लोग सर्वे वालों, ज्योतिषियों और राजनीतिक पंडितों के विश्लेषणों से भी ज्यादा विश्वसनीय मानते हैं। इसीलिए कहीं भिवानी के सट्टा बाजार की साख है तो कहीं फलौदी के सट्टाबाजार की।

आईपीएल के दर्शक कई बार कन्फ्यूज हो जाते हैं कि यार यह खिलाड़ी तो पिछली बार उस टीम से खेल रहा था, इस टीम में कैसे आ गया। लेकिन राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले भी कई बार इसी तरह कन्फ्यूज हो जाते हैं कि यार यह नेता तो पिछली बार उस पार्टी में था, इस पार्टी में कैसे आ गया। लोग कह सकते हैं कि जी आईपीएल में तो पैसा देकर खिलाड़ी खरीदा जाता है। जिसने ज्यादा बोली लगायी, ले गया। तो क्या राजनीति में बोली नहीं लगती? वहां क्या सूटकेस नहीं चलते? वहां तो बाकायदा घोड़ा मंडी सजती है। और हां जैसे आईपीएल टीमों के मालिक सेठ लोग होते हैं, वैसे तो नहीं, पर मालिक तो राजनीति में भी होते ही हैं, नहीं क्या?

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