जयंतीलाल भंडारी
यकीनन वैश्विक मंदी की चुनौतियों का भारत पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। 13 जून को भारत के शेयर बाजार में भी बड़ी गिरावट दिखी। बैंचमार्क सेंसेक्स गोता लगाकर 52,846 अंकों पर बंद हुआ। डॉलर के मुकाबले रुपया 78 के पार चला गया। लेकिन फिर भी दुनिया के आर्थिक और वित्तीय संगठनों के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था दूसरे देशों की तुलना में गतिशील बनी हुई है। वैश्विक क्रैडिट रेटिंग एजेंसी फिच ने भारत की रेटिंग नकारात्मक से उन्नत करके स्थिर की है। खास बात यह भी है कि चुनौतियों के बीच भारत में रिकॉर्ड विदेशी निवेश का सुकूनदेह परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन (अंकटाड) की रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत की एफडीआई रैंकिंग पिछले वर्ष 2021 में एक पायदान चढ़कर 7वें स्थान पर पहुंच गई है। हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 में भारत ने 83.57 अरब डॉलर का रिकॉर्ड प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्राप्त किया है। अब चालू वित्त वर्ष 2022-23 में भारत की ओर अधिक एफडीआई प्रवाह की नई संभावनाएं बढ़ी हैं।
सवाल है कि जब पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में विश्व की अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट रही है, इसके बावजूद विदेशी निवेशकों द्वारा भारत को एफडीआई के लिए प्राथमिकता क्यों दी गई है? तो हमारे सामने कई चमकीले तथ्य उभरकर सामने आते हैं। पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की 8.7 फीसदी की सर्वाधिक विकास दर, देश में छलांगें लगाकर बढ़ रहे यूनिकॉर्न, 31.45 करोड़ टन का रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन, बढ़ता विदेश व्यापार, नए प्रभावी व्यापार समझौते, 600 अरब डॉलर से अधिक के विदेशी मुद्रा भंडार आदि के कारण एफडीआई तेजी से बढ़े हैं। भारत में निवेश पर बेहतर रिटर्न हैं। भारतीय बाजार बढ़ती डिमांड वाला बाजार है। निश्चित रूप से देश में एफडीआई बढ़ने का एक बड़ा कारण सरकार द्वारा पिछले कुछ वर्षों में उद्योग-कारोबार को आसान बनाने के लिए किए गए कई ऐतिहासिक सुधार भी हैं।
स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि कोरोना महामारी से लेकर अब तक ई-कॉमर्स, डिजिटल मार्केटिंग, डिजिटल भुगतान, ऑनलाइन एजुकेशन तथा वर्क फ्रॉम होम की प्रवृत्ति, बढ़ते हुए इंटरनेट के उपयोगकर्ता, देशभर में डिजिटल इंडिया के तहत सरकारी सेवाओं के डिजिटल होने से अमेरिकी टेक कंपनियों सहित दुनिया की कई कंपनियां भारत में स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि तथा रिटेल सेक्टर के ई-कॉमर्स बाजार की संभावनाओं को हासिल करने के लिए निवेश के साथ आगे बढ़ी हैं। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की जीरो कोविड पॉलिसी नीति के कारण मार्च से लेकर मई, 2022 तक चीन के कई शहरों में आंशिक अथवा पूर्ण लॉकडाउन के कारण चीन में विकास दर घट गई है। ऐसे में चीन में कार्यरत कई कंपनियां चीन से अपना कारोबार और निवेश समेट कर जिन विभिन्न देशों का रुख कर रही हैं, उनमें भारत भी पहली पंक्ति में है।
अब चालू वित्त वर्ष 2022-23 में और अधिक प्रभावी कारणों से एफडीआई बढ़ने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। उल्लेखनीय है कि 23 मई को टोक्यो में प्रधानमंत्री मोदी ने जापानी कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों एवं सीईओ के साथ गोलमेज बैठक में कहा कि वैश्विक एफडीआई में मंदी के बावजूद भारत रिकॉर्ड विदेशी निवेश प्राप्त कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत निवेश अनुकूल अवसरों, आर्थिक सुधारों, नवाचार और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश है। मोदी ने भारत-जापान औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता भागीदारी (आईजेआईसीपी) , राष्ट्रीय अवसंरचना पाइप लाइन (एनआईपी), उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना और सेमीकंडक्टर नीति जैसी पहलों और भारत के मजबूत स्टार्टअप परिवेश पर भी प्रकाश डाला। याद किया कि मार्च, 2022 में जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने अगले पांच वर्षों में 5,000 अरब जापानी येन के निवेश का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है। इस गोलमेज बैठक के बाद जापान की कंपनियों और निवेशकों से भारतीय प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, वित्त और अनुसंधान एवं विकास जैसे क्षेत्रों में निवेश की संभावनाएं आगे बढ़ी हैं।
महत्वपूर्ण है कि 24 मई को अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के रणनीतिक मंच क्वाड के दूसरे शिखर सम्मेलन में चारों देशों ने जिस समन्वित शक्ति का शंखनाद किया है और बुनियादी ढांचे पर 50 अरब डॉलर से अधिक रकम लगाने का वादा किया है, उससे क्वाड भारत के उद्योग-कारोबार के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है। साथ ही इससे भारत की ओर एफडीआई का प्रवाह बढ़ेगा। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ हुई द्विपक्षीय बैठकों के साथ-साथ अमेरिका की अगुवाई में बनाए गए 13 देशों के संगठन हिंद-प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क, (आईपीईएफ) में भारत को भी शामिल किया गया है, उससे भारत आईपीईएफ देशों के लिए विनिर्माण, आर्थिक गतिविधि, वैश्विक व्यापार और नए निवेश का महत्वपूर्ण देश बन सकता है। इनके अलावा इसी वर्ष यूरोपीय देशों के साथ किए गए नए आर्थिक समझौतों और नए मुक्त व्यापार समझौतों के क्रियान्वयन से जहां भारत का विदेश व्यापार बढ़ेगा, वहीं भारत में विदेशी निवेश भी बढ़ेगा।
इतना ही नहीं, जिस तरह से भारत की हरित ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा के संबंध में सकारात्मक परिदृश्य दुनिया में आगे बढ़ रहा है, उससे भी एफडीआई का प्रवाह भारत की ओर बढ़ रहा है। भारत में हरित हाइड्रोजन, जैव ईंधन सम्मिश्रण और वैकल्पिक स्रोतों से जैव ईंधन की खोज और उत्पादन पर विशेष जोर दिया जा रहा है। भारत हरित ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी बनने को तैयार है। भारत ने 20 प्रतिशत एथनाॅल मिश्रण के लक्ष्य को पाने की समय सीमा को 2030 से घटाकर 2025 कर दिया है। इस समय देश के लिए एफडीआई प्राप्त करने में कृषि क्षेत्र की भी अहम भूमिका है। दुनियाभर में भारत द्वारा उपलब्ध कराई गई खाद्य सुरक्षा का स्वागत किया जा रहा है, जिसमें कृषि क्षेत्र में भी विदेशी निवेश तेजी से बढ़ रहा है।
यदि हम चालू वित्त वर्ष 2022-23 में पिछले वित्त वर्ष के तहत प्राप्त किए गए 83.57 अरब डॉलर के एफडीआई से अधिक की नई ऊंचाई चाहते हैं तो जरूरी होगा कि वर्तमान एफडीआई नीति को और अधिक उदार बनाया जाए। जरूरी होगा कि देश में लागू किए गए आर्थिक सुधारों को तेजी से क्रियान्वयन की डगर पर आगे बढ़ाया जाए। जरूरी होगा कि डिजिटल अर्थव्यवस्था की विभिन्न बाधाओं को दूर करके इसका विस्तार किया जाए। एफडीआई बढ़ाने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान और मेक इन इंडिया को सफल बनाना होगा। बदली हुई वैश्विक व्यापार व कारोबार की पृष्ठभूमि में भारत द्वारा यूएई और ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए को मूर्तरूप देने के बाद अब यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के छह देशों, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और इस्राइल के साथ तेज गति से एफटीए वार्ताओं को पूरा करके एफटीए को शीघ्रतापूर्वक लाभप्रद आकार दिया जाना होगा।
लेखक ख्यात अर्थशास्त्री हैं।