आज भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की स्वीकार्यता अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ी है। हाल ही में केन्या के पूर्व प्रधानमंत्री ओडिंगा अपनी बेटी के उपचार के लिए भारत यात्रा पर आए। उनकी बेटी का आंखों का उपचार केरल में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से हुआ। उपचार के तीन सप्ताह में सुखद परिणाम मिले। इससे प्रभावित होकर उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त किया। उन्होंने अपने देश में आयुर्वेद चिकित्सा के प्रसार का वादा किया।
अब आयुर्वेद का विस्तार ग्लोबल स्तर पर हो गया है। हमारे पड़ोसी देशों के साथ-साथ ही आयुर्वेद की पहुंच यूरोपियन यूनियन के देशों रोमानिया, हंगरी, सर्बिया, स्लोवेनिया तक हुई है। अभी तक लगभग सोलह देशों में आयुर्वेद चिकित्सा को रेगुलेट किया गया है। इसके साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले ग्लोबल सेंटर ऑफ ट्रेडिशनल मेडिसिन की स्थापना दिल्ली में की है। जिस चिकित्सा पद्धति को अंग्रेज औपनिवेशिक काल में अवैज्ञानिक और अंधविश्वासी करार दिया था, आज उसी आयुर्वेद की दुनिया मुरीद हुई है। चिकित्सा विज्ञान की नई उम्मीद की किरण बना है आयुर्वेद।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में आयुर्वेदिक दवाइयों का सालाना कारोबार 10 हजार करोड़ रुपये का है, जबकि एक हजार करोड़ रुपये की आयुर्वेदिक दवाइयां निर्यात की जाती हैं। अगर सभी आयुर्वेदिक उत्पादों की बात करें तो 2018 में इसका सालाना कारोबार 30 हजार करोड़ रुपये था, जो 2024 तक 71 हजार करोड़ रुपये का हो सकता है। पिछले एक साल में इसमें काफी तेजी आई है।
दरअसल, आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति नहीं अपने आप में एक सम्पूर्ण विज्ञान है। ‘आयुर्वेद’ शब्द का अर्थ है ‘जीवन का विज्ञान’। साधारण भाषा में कहें तो जीवन को ठीक प्रकार से जीने का विज्ञान ही आयुर्वेद है। यह विज्ञान केवल रोगों की चिकित्सा या रोगों का ही ज्ञान प्रदान नहीं कराता, अपितु जीवन जीने के लिए सभी प्रकार के आवश्यक ज्ञान प्रदान कराता है। आयुर्वेद के दो मुख्य प्रयोजन हैं। आयुर्वेद का प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी व्यक्ति के रोग को दूर करना है। हमारी दिनचर्या, ऋतुचर्या, आहार-विहार अगर समुचित हों तो हम तमाम रोगों से दूर रहकर अपने जीवन को उज्ज्वल और दीर्घायु बना सकते हैं। आयुर्वेद में आहार ही मेडिसिन है, यदि हम भोजन का सेवन विधिपूर्वक करेंगे तो कभी भी अस्वस्थ नहीं होंगे। आयुर्वेद चिकित्सा का प्रकृति पर आधारित होना इसकी सबसे बड़ी महत्ता है।
देश में पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियां आयुष मंत्रालय के अधीन हैं। इसकी स्थापना वर्ष 2014 में हुई थी। इसके अंतर्गत आयुर्वेद, यूनानी, सिद्धा, होमियोपैथी, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा शामिल हैं। पिछले साल आयुष विभाग को 2600 करोड़ का बजट आवंटित हुआ था। वित्तवर्ष 2022 में इसको बढ़ा कर 3054 करोड़ किया गया यानी चार सौ करोड़ ज्यादा मिला, जिसमें सबसे ज्यादा 358 करोड़ आयुर्वेद चिकित्सा में रिसर्च व अनुसंधान के लिए प्रदान हुए। इसके साथ ही राष्ट्रीय आयुष मिशन का पांच साल के लिए विस्तार कर दिया। इस मिशन पर कुल 4607 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे। अगले वर्ष तक पूरे देश में 12500 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर का निर्माण किया जाएगा। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण स्तर पर आयुर्वेद का प्रसार करना तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों से संपूर्ण उपचार को बढ़ावा देना है।
प्रत्येक चिकित्सा पद्धति के अपने मूल सिद्धांत होते हैं। उसी प्रकार आयुर्वेद चिकित्सा के अपने सिद्धांत हैं। इसमें निदान परिवर्जन अर्थात रोग के कारण का त्याग या शमन किया जाता है, जिससे व्याधि को समूल नष्ट किया जाता है। इसकी तुलना हमें आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से नहीं करनी चाहिए।
जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से ग्रसित थी, उस समय आयुर्वेदिक औषधियों ने हमारी इम्यूनिटी बूस्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आयुर्वेद उपचार से मरीजों को रिकवरी भी शीघ्र मिली। योग की तरह आयुर्वेद को भी विश्वपटल पर पहुंचाने के लिए पहले हमें इसे अपनाना होगा। इसको मुख्यधारा में लाना चाहिए न कि वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि यह हमारे देश की धरोहर है। हम भारतीयों पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव हमेशा हावी रहा है। अब तक भले ही चिकित्सा विज्ञान, भाषा, या जीवनशैली जैसे सारे क्षेत्रों में असर पड़ा हो, लेकिन अब 21वीं सदी का भारत आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। आने वाला समय आयुर्वेद का है इसलिए हमें अपनी चिकित्सा पद्धति में भी आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है।