विवेक शुक्ला
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद अब रामनाथ कोविंद पूर्व राष्ट्रपति हो गए हैं। अब वे राष्ट्रपति भवन छोड़ रहे हैं। अब वे सपरिवार रहेंगे भी 12 जनपथ पर। इसे लुटियन दिल्ली के सबसे बड़े बंगलों में से एक माना जाता है। आठ बेडरूम वाले 12 जनपथ के बंगले को नए सिरे से रेनोवेट किया गया है। कोविंद ने सरकार को रिटायर होने से पहले ही संकेत दे दिया था कि वे राष्ट्रपति भवन को छोड़ने के बाद अपने गृह नगर कानपुर में शिफ्ट नहीं करेंगे।
दरअसल 12 जनपथ की राम विलास पासवान के बंगले के रूप में पहचान होती रही। वे इसमें 1989 में शिफ्ट हुए थे। यहां ही उनकी पुत्री का विवाह हुआ। इधर ही होली मिलन और सालाना दही चूड़ा के आयोजन भी होते थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2015 के दही-चूड़ा कार्यक्रम में भाग लिया था। बेशक, 12 जनपथ और 10 जनपथ राजधानी के दशकों तक सबसे खासमखास एड्रेस रहे। राजीव गांधी को 10 जनपथ 1990 में आवंटित हुआ था। उनकी 1991 में हुई दर्दनाक मौत के बाद 10 जनपथ सोनिया गांधी के नाम आवंटित कर दिया गया था। आपको याद होगा कि सोनिया गांधी 2004 में यूपीए सरकार के हक में समर्थन जुटाने के इरादे से राम विलास पासवान के बंगले में चली गई थीं। तब यह बड़ी खबर बनी थी। लुटियन दिल्ली के जिन बंगलों में प्रधानमंत्री से लेकर देश के खासमखास नेता और अहम हस्तियां रहती हैं, वे सब सन् 1931 तक बन गए थे। यानी इन्हें बने हुए 90 साल हो रहे हैं। इनकी देखभाल और मरम्मत केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग करता है।
दिल्ली के पहले उप राज्यपाल ए.एन. झा भी 12 जनपथ के बंगले में रहे। वे दिल्ली के 1966 से लेकर 1972 तक उपराज्यपाल पद पर रहे। वे 1936 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के आईसीएस अफसर थे।
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद 1962 में पद मुक्त होने के बाद पटना शिफ्ट हो गए थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पटना के लिए विदाई नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से हुई थी। वे पटना में सदाकत आश्रम में रहे। वहीं उनका निधन हुआ था। देश के दूसरे राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन 1962 से 1967 तक अपने पद पर रहने के बाद चेन्नई शिफ्ट हो गए थे। डॉ. जाकिर हुसैन 13 मई, 1967 से लेकर 3 मई 1969 तक देश के तीसरे राष्ट्रपति रहे। उनका पद पर रहते हुए निधन हो गया था। डॉ. जाकिर और उनकी पत्नी श्रीमती शाहजहां बेगम जामिया मिलिया इस्लामिया के पास के कब्रिस्तान में चिर निद्रा में हैं।
भारत के चौथे राष्ट्रपति वी.वी. गिरी 24 अगस्त, 1969 से 24 अगस्त, 1974 तक अपने पद पर रहने के बाद चेन्नई चले गए थे। उनके नाम का एक प्लाट लंबे समय से ईस्ट दिल्ली के विकास मार्ग पर खाली पड़ा है। उसमें उनकी नेमप्लेट भी लगी है। उनके बाद डॉ. फ़ख़रुद्दीन अली अहमद राष्ट्रपति बने। उनका 11 फरवरी, 1977 को पद पर रहते हुए निधन हो गया था। उन्हें संसद भवन के पास एक मस्जिद में दफन किया गया था। हालांकि उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी बेगम आबिदा अहमद को अकबर रोड पर बंगला अलॉट हो गया था। नियम यह है कि अगर पद पर रहते हुए राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की मृत्यु हो जाए तो उनकी पत्नी या पति को लुटियंस दिल्ली में आठ बेड रूम का बंगला दिया जाता है। इतने बड़े बंगले केन्द्रीय मंत्रियों को मिलते हैं। एन. संजीव रेड्डी 1977 से 1982 तक देश के राष्ट्रपति रहे। वे भी राष्ट्रपति भवन को छोड़ने के बाद आंध्र प्रदेश के अपने गृह नगर अनंतपुर चले गए थे। उनका 1996 में बेंगलुरू में निधन हो गया था।
राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह 1982-1987 तक देश के राष्ट्रपति रहे। वे राष्ट्रपति भवन को छोड़ने के बाद तीन मूर्ति के पास सर्कुलर रोड के एक बंगले में रहने लगे थे। द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति पद की कैंपेन के दौरान उसी बंगले में रहीं, जिसमें ज्ञानी जी रहते थे।
आर. वेंकटरमन 1987-92 तक देश के नौवें राष्ट्रपति रहे। वे दिल्ली में तो नहीं रहे पर जब वे चेन्नई वापस गए तो काफी हंगामा इसलिए हुआ क्योंकि उनके पास अपने तीन घर थे, इसके बावजूद उन्होंने राज्य सरकार से सरकारी आवास की मांग की। उनके बाद शंकर दयाल शर्मा देश के राष्ट्रपति 1992-1997 तक रहे। उनका 1999 में निधन हुआ। उन्हें सफदरजंग रोड में बंगला मिला था। उनकी मृत्यु के बाद वह बंगला उनकी पत्नी विमला शर्मा के नाम पर आवंटित कर दिया गया था।
के.आर. नारायणन देश के पहले दलित राष्ट्रपति थे। वे राष्ट्रपति पद पर 1997-2002 तक रहे। उनका राजधानी के आर्मी अस्पताल में 2005 में निधन हो गया था। उन्हें रिटायर होने के बाद 34 पृथ्वीराज रोड पर बंगला सरकार ने दिया था। उनके बाद एपीजे अब्दुल कलाम भारत के राष्ट्रपति बने। वे पद से मुक्त हुए तो उन्हें सरकार ने 10 राजाजी मार्ग का बंगला आवंटित किया। ये बेहद खास बंगला है। राष्ट्रपति भवन, दिल्ली जिमखाना क्लब, गोल डाकखाना वगैरह का डिजाइन तैयार करने वाले नई दिल्ली के चीफ आर्किटेक्ट लुटियन 10 राजाजी मार्ग में रहते हुए नई दिल्ली की तमाम इमारतों के निर्माण का काम देख रहे थे। राष्ट्रपति पद से 2017 में मुक्त होने के बाद प्रणव मुखर्जी भी इसी बंगले में रहे। यहां उनका निधन हुआ। यह डबल स्टोरी बंगला है। लुटियन दिल्ली के बहुत ही कम बंगले डबल स्टोरी हैं। इसी बंगले में भारत के पहले गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी भी रहे हैं। इसलिए इसके आगे की सड़क का नाम उनके नाम पर राजाजी मार्ग रख दिया गया था। प्रणव मुखर्जी से पहले श्रीमती प्रतिभा पाटिल देश की राष्ट्रपति रहीं। वह अपने पद को छोड़ने के बाद पुणे शिफ्ट कर गई थीं। दरअसल, नियम यह है कि सरकार को पूर्व राष्ट्रपति को सेवा से मुक्त होने के बाद राजधानी में कैबिनेट मंत्री को आवंटित होने वाला बंगला ही आवंटित करना होता है।