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पराली व प्रदूषण के मुद्दे पर जूझते भारत-पाक

चीन ने किसानों को 2019 में 4 अरब युआन से ज़्यादा की सब्सिडी दी। इस राशि से पराली से बायोमास ईंधन में रूपांतरण करने वाले स्टेशनों को वित्तपोषित करने में मदद मिली। किसानों को पराली इकट्ठा करने वाली मशीनों पर...

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चीन ने किसानों को 2019 में 4 अरब युआन से ज़्यादा की सब्सिडी दी। इस राशि से पराली से बायोमास ईंधन में रूपांतरण करने वाले स्टेशनों को वित्तपोषित करने में मदद मिली। किसानों को पराली इकट्ठा करने वाली मशीनों पर सब्सिडी और पराली आपूर्ति के लिए पारिश्रमिक दिया गया। परिणामस्वरूप, चीन का अनाज उत्पादन 36 प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ गया है।

प्रदूषण हिन्दू-मुसलमान हो गया, प्रदूषण भारत-पाकिस्तान हो गया। स्विस वायु गुणवत्ता प्रौद्योगिकी कंपनी ‘आईक्यू-एयर’ ने 120 से अधिक शहरों के लाइव डेटा के हवाले से 21 अक्तूबर, 2025 की सुबह दिल्ली को दुनिया का ‘सबसे प्रदूषित’ शहर घोषित कर दिया। उसके अगले दिन कराची और लाहौर को दुनिया के 5वें और तीसरे सबसे प्रदूषित शहरों में स्थान दिया गया। सीमा पार आवाज़ें उठनी शुरू हुईं, कि भारत के पंजाब-हरियाणा, यहां तक कि दिल्ली से पटाखे फोड़ने और पराली दहन से हमारा जीना दुश्वार हो गया है।

भारत को दोष देने वाले पाकिस्तान में पटाखा उद्योग का प्रदूषण फैलाने में कितना योगदान है, उस पर कोई बात नहीं होती। दो महीना पहले 21 अगस्त को पाकिस्तान के कराची शहर में गुरुवार को एक पटाखा गोदाम में हुए विस्फोट में चार लोगों की मौत हो गई, और 30 से ज़्यादा घायल हो गए। कराची को आपूर्ति किए जाने वाले लगभग 50 प्रतिशत पटाखे, ओरंगी टाउन की कच्ची बस्तियों में बनाए जाते हैं। प्रतिबंध के बावजूद चीन से पटाखों की आपूर्ति पाकिस्तान में धड़ल्ले से होती है। यों, पाकिस्तान में विवाह-बर्थडे जैसे उत्सवों ने पटाखों के कारोबार को पाला-पोसा है। मगर, दीवाली की तरह पटाखों का कारोबार शब-ए-बारात के पवित्र अवसर पर तेजी से बढ़ता है। दुर्भाग्यवश, शब-ए-बारात का आगमन तेज विस्फोटों, धमाके की आवाजों का पर्याय बन गया है।

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पाकिस्तान वाले पंजाब की मुख्यमंत्री मरियम नवाज़ ने गिरफ़्तारी व भारी जुर्माने के साथ ‘डंडा और गाजर अभियान’ आरम्भ किया। पराली जलाने पर प्रतिबन्ध का उल्लंघन करने वालों पर पांच हज़ार रुपये का जुर्माना। साथ ही प्रलोभन था, नई पीढ़ी की ‘सुपर सीडर’ मशीनों की पेशकश, जिन पर 65 प्रतिशत की सब्सिडी दी जा रही थी। बावजूद इसके, शकरगढ़, ज़फ़रवाल और नारोवाल की तीन तहसीलों के किसान पराली जलाना जारी रखे हुए हैं। रिपोर्टों के अनुसार, तलवंडी भंडारन, नोरकोट, अदा सिराज, फ़तेहपुर अफ़गानन और कंवल सहित 12 से ज़्यादा गांवों में पराली जलाने की घटनाएं हुई हैं। देरियांवाला में हुई दुर्घटनाओं में दो लोगों की मौत हो गई, और 18 घायल हो गए।

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पाकिस्तान में करप्शन बेकाबू है। फ़तेहपुर निवासी मुहम्मद शरीफ और शाहबाज अली ने बताया कि निगरानी करने वाले अधिकारी इन उल्लंघनों को नज़रअंदाज़ करने के लिए 2,000 रुपये प्रति एकड़ की रिश्वत मांग रहे हैं, जिससे किसान बेरोक-टोक पराली जला रहे हैं। पाकिस्तान में उत्सर्जन का 20 फीसद, फसल जलाने के कारण होता है। बाक़ी, ईंट-भट्टा उद्योग, शहर से गांव-देहात तक बेतहाशा गाड़ियां, निर्माण उद्योग की धूल-मिट्टी ने वातावरण का बेड़ा ग़र्क़ कर रखा है। भारत जैसा ही हाल आप पाकिस्तान में देखेंगे। ठीक है, टेरर फैलाने वाले पाकिस्तान से हम ट्रेड पर बात नहीं कर रहे, लेकिन पर्यावरण पर तो कर सकते हैं?

ऐसी ही समस्या से रूबरू चीन ने, कुछ उपाय किये, जिनमें कोयला आधारित बिजली संयंत्रों पर प्रतिबंध, सड़कों पर कारों की संख्या सीमित करना, और पूरी तरह से इलेक्ट्रिक बसें चलाना शामिल है। चीन ने अपनी कई कोयला खदानें भी बंद कर दीं। चीन ने अपने किसानों को प्रशिक्षित करने का प्रयास किया। उन्हें कन्विंस किया कि फसल जलाने से न केवल वायु प्रदूषण बढ़ता है, बल्कि मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों का ह्रास, लाभकारी मृदा जैव विविधता, और मिट्टी की उर्वरता में 25 प्रतिशत से 30 प्रतिशत तक की कमी आती है, और यह मिट्टी की जल धारण क्षमता को भी कमज़ोर करता है।

भारत से लेकर ब्राज़ील तक, किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली, धुएं का एक गंभीर स्रोत है। लेकिन, दुनिया के सबसे बड़े अनाज उत्पादक देश होने के नाते चीन की सरकार दशकों से पराली जलाने को कम करने, और उसके उपयोग खोजने की कोशिश कर रही है। जैसे, इसे खेतों में खाद के रूप में गाड़ना, या इसे पशु आहार या जैव ईंधन में संसाधित करना। चीन ने 2018 में अपने राष्ट्रीय वायु प्रदूषण कानून में संशोधन किया। उल्लंघन करने पर 2,000 युआन (भारतीय मुद्रा में एक युआन लगभग साढ़े 12 रुपये) तक का जुर्माना लगाने के लिए प्रोत्साहित करने वाले प्रावधान शामिल किए।

चीन का सुदूर उत्तरी प्रान्त हेलोंगचिआंग ने अन्य प्रांतों के साथ प्रतिबंध की शुरुआत की। प्रांत को एक ग्रिड में विभाजित किया गया था, जिसमें काउंटी-स्तरीय सरकारी कर्मचारी अपने-अपने निर्धारित क्षेत्रों में आग को रोकने के लिए ज़िम्मेदार थे। चीन ने किसानों को 2019 में 4 अरब युआन से ज़्यादा की सब्सिडी दी। इस राशि से पराली से बायोमास ईंधन में रूपांतरण करने वाले स्टेशनों को वित्तपोषित करने में मदद मिली। किसानों को पराली इकट्ठा करने वाली मशीनों पर सब्सिडी और पराली आपूर्ति के लिए पारिश्रमिक दिया गया। परिणामस्वरूप, चीन का अनाज उत्पादन 36 प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ गया है, जिसका श्रेय बेहतर बीजों, जैविक उर्वरकों के व्यापक उपयोग, और मशीनीकृत कटाई जैसे कारकों को जाता है।

ध्यान से देखिये, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों को दुनिया भर में केवल सात देश ही पूरा करते हैं। इन देशों में ऑस्ट्रेलिया, एस्टोनिया, फ़िनलैंड, ग्रेनाडा, आइसलैंड, मॉरीशस, और न्यूज़ीलैंड शामिल हैं। यूरोपीय संघ की साझा कृषि नीति के तहत पराली जलाना प्रतिबंधित है। अधिकांश यूरोपीय संघ के देशों ने इस प्रतिबंध को लागू किया है, हालांकि कुछ देशों, जैसे फ्रांस ने ऐतिहासिक रूप से चावल, सन और भांग जैसी कुछ फसलों के लिए छूट दी थी, जिन्हें अब काफी हद तक समाप्त कर दिया गया है। जर्मनी, यूके, स्वीडन, ऑस्ट्रिया और इटली, यूरोप के कुछ प्रमुख देश हैं, जहां अपशिष्ट आग, जिसे ‘लैंडफिल आग या कूड़े की आग’ भी कहते हैं, की सबसे अधिक घटनाएं होती हैं। 2019 में सर्बिया में लगभग 19,000 खुली आग की घटनाएं दर्ज की गईं। इनके कारण 14 लोगों की मौत हो गई, और 40 घायल हो गए।

अमेरिका में किसान पराली को जलाने के बजाय, उससे जैविक खाद बनाते हैं, जो मिट्टी को समृद्ध बनाती है। वहां, पराली को जैव ईंधन, बिजली और बायोगैस में बदलने के लिए उन्नत तकनीकों का भी उपयोग किया जाता है। थाईलैंड में स्थानीय सहकारी समितियां पराली एकत्र करती हैं, और उसे औद्योगिक उपयोग के लिए संसाधित करती हैं, जिससे जलाने की आवश्यकता कम हो जाती है। इंडोनेशिया में सरकार कृषि अपशिष्ट जलाने पर भारी जुर्माना लगाती है। ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और कैलिफ़ोर्निया में हाल की घटनाओं ने फिर से जंगल की आग की ओर पूरी दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया है, ख़ुसूसन अमेजन की आग। चावल और गेहूं जैसे अनाज की कटाई के बाद बचे हुए ठूंठ को जानबूझकर आग लगाने की कुप्रथा को रोकने पर एशिया के देश बात क्यों नहीं कर सकते? यूरोप वाले तमाम मतभेदों के बावजूद, बातचीत तो करते हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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