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नाम लेने के साथ जीवन में उतारें गुरु नानक का दर्शन

गुरुपर्व आज

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हममें से असंख्य लोग स्वयं को नानक नाम लेने वाला मानते हैं। जरूरत है हम उनके श्रम और सच्चाई आधारित दर्शन को समझें। यानी ‘किरत करो, नाम जपो और वंड छको’ का भाव जीवन में उतारें।

श्री गुरु नानक देव जी की वाणी और उपदेशों का स्मरण करते ही उनकी प्रासंगिकता आज सैकड़ों वर्षों बाद भी उतनी ही प्रतीत होती है। हज़ारों सालों बाद भी उनकी बाणी मानवता के लिए विकास और सच्चाई का अमिट संदेश बनी रहेगी। हममें से असंख्य लोग स्वयं को नानक नाम लेने वाला मानते हैं, बताते हैं और उस पर गर्व करते हैं। ज्यादातर घरों, दफ्तरों और दुकानों में बाबा गुरु नानक की तस्वीरें सजी हैं। हज़ारों लोग गुरबाणी नितनेम करते हैं, और गुरुपर्वों के अवसर पर प्रभात फेरियां व नगरकीर्तन निकालते हैं।

इसके बावजूद हर गुरुपर्व पर मन में एक सवाल उठता है कि क्या हम सचमुच बाबा नानक की राह पर एक कदम भी चल रहे हैं? क्या हमारे आचरण में उनके उपदेशों की झलक है या हम सिर्फ पवित्र अवसर पर उनका नाम लेकर अंतःकरण को तसल्ली देते हैं? सच्चाई यह है कि अधिकतर लोग न तो पूरी तरह ईमानदार हैं, न मेहनती और न ही सच्चे देशभक्त। बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जो केवल ‘जुगाड़’ के रास्ते को ही अपना धर्म मान बैठे। हमने गुरु नानक के नाम का उपयोग तो खूब किया, पर उनके सिद्धांतों को अपनाया कभी नहीं। न उनके विचारों को, न उनके श्रम और सच्चाई आधारित दर्शन को समझने की कोशिश की। हमने उन्हें अपनी ज़रूरत मुताबिक इस्तेमाल किया और शायद यह आगे भी जारी रहे।

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आज हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहां धर्म और राजनीति दोनों ही व्यापार बन चुके हैं। रिश्ते और मर्यादाएं भी अब सौदे का रूप ले चुकी हैं। लोगों ने बाबा नानक के ‘सच्चे सौदे’ को भुला दिया है। वह सौदा जिसमें सच्चाई, मेहनत और साझेदारी का मुनाफा था, जिसे उन्होंने ‘तेरा तेरा’ कहकर बिना मोल-तोल दिया था।

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दुःखद है, आज बाबा नानक की बाणी केवल गुरुद्वारों के स्पीकरों तक सीमित रह गई। उसका अमल जीवन में कहीं नहीं दिखता, केवल उच्चारण रह गया। लोकतंत्र के नाम पर एक नई किस्म की गुलामी पैदा हो गई। जहां हाथ मेहनत के लिए नहीं, बल्कि मुफ्त सुविधाओं के लिए फैलते हैं।

अक्सर मन में विचार आता है कि हमारे चरित्र की समानता अकाल पुरख की उस पवित्र आत्मा के किस पक्ष से मेल खाती है, जिन्होंने दुनिया में हज़ारों किलोमीटर पैदल चलकर चार उदासियां कीं। अंधविश्वासों, अज्ञान में डूबी मानवता को बाहर निकालने के लिए उन्होंने स्वयं कठोर अनुभव किए। गुरु नानक देव ने अपनी उदासियों के दौरान संसार के हालात निकट से देखे और जीवन के अंतिम वर्षों में लगभग बीस वर्ष अपने हाथों से खेती की, ताकि समाज को दिखा सकें कि सच्ची इबादत कर्म में है।

गुरु नानक देव ने एक अमर संदेश दिया ‘किरत करो, नाम जपो और वंड छको।’ इस संदेश को आधुनिक दृष्टिकोण से देखें तो यह मनुष्य की अर्थव्यवस्था, मानसिक शांति, शारीरिक सेहत और सामाजिक संतुलन, सबसे जुड़ा है। इसमें भाई लालो की सच्ची व ईमानदारी से कमाई रोज़ी-रोटी की झलक साफ़ दिखती है। कड़वा सत्य यह कि आज के लोकतांत्रिक ‘माई-बाप’ शासन तंत्र और सामाजिक ढांचा हर व्यक्ति और परिवार को मानसिक व आर्थिक रूप से कमजोर बनाकर भाई मलिक भागो की हवेली की ओर धकेल रहे हैं। उस हवेली में रंगीन जीवन और सोने-चांदी की चमक तो है, लेकिन आत्मा की शांति नहीं। मुफ्त बिजली, मुफ्त राशन और विभिन्न सुविधाओं का लालच देकर आमजन को गुरु नानक साहिब के दर्शन से दूर किया जा रहा है। यह सियासी मलिक भागो की साज़िश है, जो समाज को शारीरिक-आत्मिक दृष्टि से कमजोर बनाकर अपने काबू में रखना चाहते हैं। आज यह भी बड़ी साज़िश है कि बाज़ारों से गुरु नानक साहिब की खेती करते हुए तस्वीरें तक अलोप हो रही हैं।

सरकारें जनकल्याण की भावना से हटकर केवल टैक्स, मुनाफे और सत्ता तक सीमित हो गई हैं। बाज़ारों में मिलावटखोरी और दोयम दर्जा चीज़ों का जाल इतना फैल चुका है कि हाल ही में मध्य प्रदेश में खांसी की दवा पीने से 22 बच्चों की मौत हो गई, क्योंकि उसमें पेंट बनाने वाला रासायनिक पदार्थ ‘प्रोपाइलीन ग्लाइकॉल’ मिला था। यह केवल कानूनी गलती नहीं, बल्कि सामाजिक पतन का उदाहरण है, जहां इंसान भाई लालो की सच्ची रोटी छोड़ मलिक भागो की दौलत के लोभ में ज़िंदगियों से खेल रहा है।

बाबा नानक ने ऐसी सोच के विरोध में कहा था : ‘कूड़ कमाइ कपड़ा पाए, तिना भी अंदर कूड़ समाए।’ माना जाता है कि ‘भूखे पेट की भूख अच्छे भोजन से मिट सकती है, पर पैसे के भूखे की भूख कभी नहीं मिटती।’ यही बात बाबा नानक ने सदियों पहले कही थी कि ‘संतोष, सच्चाई और साझेदारी ही जीवन के सच्चे गहने हैं।’ अगर बड़े व्यवसायियों को बेहद सस्ती दरों पर 25-50 सालों के पट्टों पर ज़मीनें दी जा रही हैं, दूसरी ओर भाई लालो जैसे मेहनतकश किसानों की ज़मीनें जबरन खरीदी जा रही हैं तो ये सब आधुनिक मलिक भागोओं की वंश बेल बढ़ाने की नीतियां हैं। ऐसे ही हालात देख सैकड़ों वर्ष पहले बाबा नानक ने कहा था : ‘कूड़ु राजा कूड़ु परजा, कूड़ु सब संसार।’ आज भी कई नेता खुद को धर्मनिष्ठ और भाई लालो जैसा विनम्र दिखाते हैं, पर जैसे ही सत्ता मिलती है, उनमें मलिक भागो की प्रवृत्तियां आ जाती हैं।

गुरु नानक देव जी के गुरुपर्व के अवसर पर जहां सरकारों को उनके फलसफे को व्यवहार में लाना चाहिए वहीं हरेक युवा, बच्चे, बुज़ुर्ग और महिला को श्रम भाव ‘किरत’ का अर्थ समझाना चाहिए, ताकि समाज आत्मनिर्भर बने और भाई लालो की परंपरा के वंशज गुरु नानक साहिब के सिद्धांतों पर चलकर सुखी-समृद्ध जीवन जी सकें।

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