सौरभ जैन
‘हे धनुर्धारी अर्जुन! तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?’ गुरु द्रोण ने हाथ में धनुष थामे अर्जुन से प्रश्न करते हुए कहा। प्रतिउत्तर में अर्जुन बोले, ‘गुरुजी, यहां मुझे सब कुछ धुंधला-सा नजर आ रहा है, यह कहीं मेरी आंखों की रोशनी के जाने के संकेत तो नहीं?’ अर्जुन की बात सुनकर गुरु द्रोण ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ‘नहीं- नहीं पुत्र, यह तो वायु प्रदूषण के संकेत हैं।’ गुरुजी का जवाब सुन अर्जुन और अर्जुन की जेब ने राहत की सांस ली। आई टेस्ट से पहले कोरोना के नए वेरिएंट की जांच और पॉजिटिव रिपोर्ट की आशंका के भय से स्वयं को मुक्त पाया। भयमुक्त अर्जुन व्याकुलता से गुरु द्रोण से बोले, ‘गुरुजी, क्या आज मेरी धनुर्विद्या का अभ्यास नहीं होगा? यहां तो इतना प्रदूषण है कि मुझे कुछ भी नजर नहीं आ रहा है, चिड़िया की आंख तो छोड़िए चिड़िया तक दिखाई नहीं दे रही।’ गुरु द्रोण ने कहा, ‘यह युग मन की आंखों से देखने का युग है। अपनी आंखें बंद करके देखो, पेड़, चिड़िया, स्वच्छ वायु, यमुना का निर्मल जल, सूर्य की लालिमा सब कुछ महसूस होगी..!’
एक समय था, जब पूछा जाता था ‘और बताओ क्या चल रहा है?’ इसके जवाब में डेढ़ शाने बनते हुए हम ‘फॉग चल रहा है’ कहने लग जाते थे। अब समझ ही नहीं आ रहा कि ‘फॉग’ चल रहा है या ‘स्मॉग’ चल रहा है। अब तो पेंट हाउस में सुबह आंख मसलते हुए नीचे झांकने पर होश ही उड़ जाते हैं। रात में सोते समय तो धरती पर ही थे, सुबह बादलों से घिरे होने पर लगता है कि अचानक ये स्वर्ग में कैसे आ गए? मन इन प्रश्नों के उत्तर खोज ही रहा होता है कि ड्राइंग रूम में न्यूज चैनल पर एंकर के चिल्लाने की आवाज इस बात का यकीन दिला देती है कि धरती पर जीवन की संभावनाएं अभी बनी हुई हैं।
पहले आश्चर्य होता था ‘अरे! एक्यूआई इतना पहुंच गया’ पर अब ‘इसमें कौन-सी नई बात है’ वाली बात सुनने को मिलती है। इस प्रदूषण से सिगरेट निर्माता तो व्यवस्था से भी अधिक चिंतित हो उठे हैं। उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि फेफड़े यदि वायु से ही प्रदूषित हो जाएंगे तो उनकी सिगरेट बनाने की फैक्टरी में तो ताला ही लग जाना है। जहां एक ओर सिगरेट निर्माताओं का बेरोजगारों की श्रेणी में जाना तय है तो वहीं दूसरी ओर एयर प्यूरीफायर बेचने वालों में सरकार बनने जितनी खुशी देखी जा रही है।
बाढ़ जैसी आपदा के समय तो राहत दौरा जैसी व्यवस्था भी होती है, लेकिन प्रदूषण के लिए यह भी नहीं हो सकती क्योंकि इसमें नेताजी स्वयं ही जनता को नहीं दिख पाएंगे। इतना ज्यादा कलियुग है कि मौत भी विकल्प दे रही है। फेफड़े कोरोना से बचे तो प्रदूषण, कोरोना की कमी पूरी कर देगा। तमाम बातों में यह एक बात अच्छी है कि अब से लोग ‘और बताओ क्या चल रहा है’ की जगह ‘और सुनाओ कितना दिख रहा है’ पूछते नजर आएंगे।