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बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं से सेहत व कार्यक्षमता सुधारें

वरिष्ठ नागरिकों की अनदेखी
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सुरेश सेठ

दुनिया में आबादी के लिहाज से पहले नंबर का देश तो भारत बन ही गया। आज तक इसकी पहचान युवा भारत के रूप में होती रही है। अब चौथे दशक के बाद बूढ़ों की संख्या में उसी तेजी से वृद्धि सामने नजर आएगी। तीसरी दुनिया के देशों, एशिया और प्रशांत देशों में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या 2050 तक दोगुनी होकर 1.2 अरब हो जाएगी। यह कुल आबादी का लगभग एक-चौथाई होगी, दुनिया के इस हिस्से में और भारत में भी।

एशियाई विकास बैंक ने एक रिपोर्ट एजिंग वैल इन एशिया पेश की है। उसमें कहा गया है कि देश में बूढ़ों की संख्या में तो वृद्धि हो रही है लेकिन उनकी सेहत, आय और कार्य सुरक्षा के बारे में नई दृष्टि नहीं बनी है। यह सही है कि आज भी देश की आधी आबादी कार्ययोग्य युवा पीढ़ी की है और उसमें से अधिकांश लोग बेकार हैं। रघुराम राजन जैसे आर्थिक विशारद यह भी कहते हैं कि विकास दर में सबसे आगे विकसित भारत में वंचित-प्रवंचित और भूख से मरते लोगों की संख्या भी काफी होगी। अब इसमें जुड़ रही है निरंतर बूढ़े होते लोगों की समस्या जिनके लिये सामाजिक सुरक्षा नहीं है। एक ओर है दक्षिणी कोरिया और थाइलैंड, जहां सबको सेहत कवरेज मिल चुका है। अर्थशास्त्री कहते हैं कि भारत में केवल 21 प्रतिशत लोगों के पास जीवन बीमा की सुविधा है। बुजुर्गों के स्वास्थ्य कवरेज की यह कमी इसलिए और भी विकट हो जाती है क्योंकि देश की बड़ी आबादी अनिश्चित कारोबार से जुड़ी है।

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एजिंग वैल इन एशिया की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 50 फीसदी आबादी ऐसी है जो उचित सेहत सेवा से वंचित है। इनमें से 40 प्रतिशत निम्न वर्ग में से आते हैं। नई आयुष नीति की घोषणा करते वक्त कहा गया कि आयुर्वेद, एलोपैथी और यूनानी पद्धति के सम्मिलन से उपचार की क्रांति होगी। लेकिन देश की गरीब आबादी को इसका लाभ नहीं मिला।

आयुष्मान योजना की घोषणा तो पिछले वर्षों में हो गई थी। जिसमें गरीबों को 5 लाख रुपये तक की मुफ्त उपचार सुविधा देने का वादा था। अब भाजपा के संकल्प पत्र में 70 साल से ऊपर के लोगों को यह मुफ्त सुविधा देने का वादा कर दिया गया है। लेकिन कितने लोगों को यह सुविधा मिली है? इस सुविधा को देने का दायित्व जब निजी क्षेत्र के कंधों पर आया तो उन्होंने उचित भुगतान न मिलने के कारण इस फ्री सर्विस को सहयोग देने से इंकार किया।

बेशक चिकित्सा पर्यटन की असीम संभावनाएं हमारे सेवा क्षेत्र में देश की कमाई के लिए निकलती हैं। दरअसल, दुनिया के अन्य देशों में मध्यवर्गीय लोगों को तत्काल उपचार सुविधा उपलब्ध नहीं होती। हमारे देशों के पंचतारा अस्पतालों में बड़े-बड़े विशेषज्ञों द्वारा यह सेवा उपलब्ध है। सरकार भी मेडिकल पर्यटन पर बहुत जोर दे रही है। लेकिन इस मेडिकल पर्यटन की साख बनाए रखने के लिए भी देश के चिकित्सा विशारदों को अपने आप को न केवल नवीनतम ज्ञान से लैस करना होगा बल्कि उपचार की आधुनिक तकनीकों का प्रयोग भी करना होगा।

देश में बुजुर्गों की बढ़ती संख्या को देखते हुए विभिन्न क्षेत्रों के वरिष्ठ नागरिकों पर सेवानिवृत्त करनेे की बजाय उन्हें काम करने का नया मौका दिया जाए। उनकी शारीरिक और कार्यात्मक क्षमता को सकल घरेलू उत्पाद में योगदान के लिये प्रेरित करना होगा। यदि बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का उन्हें लाभ मिले तो उनकी अतिरिक्त सक्रियता से देश को लाभांश मिलेगा।

इसका अर्थ यह हुआ कि देश के युवा बल ही नहीं बल्कि वरिष्ठ नागरिकों की मेधा और संभावित सक्रियता के उचित इस्तेमाल से भी देश अपने विकास पथ पर एक द्रुत लय से बढ़ सकता है। इस समय भारत उपचार और सेहत के लिहाज से एशिया और प्रशांत देशों में सबसे निचली कगार पर है। इसलिए गरीब लोगों को नकदी रहित बीमा देने वाली योजनाएं बुजुर्गों का स्वास्थ्य कवरेज करेंगी तो बेहतर होगा। केवल घोषणाएं करने से ही काम नहीं चलेगा। घोषणाओं के रास्ते में लालफीताशाही अवरोध बनकर खड़ी हो जाती है। धनराशि के आवंटन की कमी भी इसके हाथ बांध देती है।

निश्चित रूप से अगर नौजवानों की शक्ति के इस्तेमाल के साथ-साथ वृद्धजनों के बल को भी उचित उपयोग का मार्ग देना है तो न केवल पूरी दृष्टि बदलनी होगी बल्कि उसके अनुकूल वातावरण बनाना होगा। पिछले दिनों में यह प्रचार किया जा रहा था कि हमारे राजस्व में आशातीत वृद्धि हुई है।  हमने जीएसटी के डेढ़ लाख करोड़ के लक्ष्य को पार करके उम्मीदों के अनुरूप प्राप्ति कर ली है। इस धनराशि में से अगर उचित आवंटन देश के समावेशी सेहत विकास के लिए कर दिया जाए तो कोई कारण नहीं कि देश की कार्ययोग्य श्रम शक्ति का संतुलित विकास न हो। अर्थात‍् यह न हो कि यहां न तो नौजवानों को काम मिले और न ही बूढ़ों को बेहतर स्वास्थ्य तथा न ही देश की अर्थव्यवस्था में योगदान के अवसर मिलें।

लेखक साहित्यकार हैं।

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