मुकुल व्यास
दुनिया में इस समय इतना ज्यादा डेटा उत्पन्न हो रहा है कि उसे किफायती और कारगर ढंग से संभालना एक बड़ी समस्या है। सूचना सामग्री को संगृहीत करने के कार्य में जुटे विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि मैग्नेटिक डिस्क ड्राइव जैसे डेटा भंडारण के आधुनिक उपाय कुछ दशकों के बाद नहीं चलेंगे। आखिर सूचनाओं के इस अनियंत्रित-से सैलाब से हम कैसे निपटेंगे?
भंडारण के नए विकल्प के रूप में डीएनए के उपयोग की चर्चा काफी समय से हो रही है। डीएनए के मॉलिक्यूल्स में सूचनाएं संकलित करना एक साइंस फिक्शन जैसी बात लगती है लेकिन वैज्ञानिकों ने इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति होने का दावा किया है। भंडारण के विभिन्न विकल्पों की तुलना में डीएनए के मॉलिक्यूल्स ज्यादा टिकाऊ हैं और लंबे समय तक चलते हैं। इस समय कंप्यूटर डेटा के भंडारण के लिए प्रयुक्त मैग्नेटिक हार्ड ड्राइव बहुत ज्यादा जगह घेरते हैं। एक समय बाद इन्हें बदलना पड़ता है। बहुमूल्य डेटा के भंडारण के लिए डीएनए का प्रयोग करने से सूचना की बहुत बड़ी मात्रा सूक्ष्म मॉलिक्यूल्स में सुरक्षित रखी जा सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, ये डेटा हजारों वर्ष तक सुरक्षित रहेगा। डीएनए की दोहरी कुंडली जैसी संरचना की खोज के बाद वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि प्रकृति की गूढ़ भाषा ठीक वैसी है जिसका प्रयोग हम कंप्यूटरों में करते हैं। हार्ड ड्राइव पर हम डेटा दर्शाने के लिए शून्य और एक का प्रयोग करते हैं और डीएनए में यही काम ए सी टी और जी के माध्यम से किया जा सकता है।
मध्ययुगीन समय में बहुत सी पुस्तकें भविष्य को ध्यान में रख कर लिखी गई थीं। इनमें से कई पुस्तकें आज भी मौजूद हैं। अब हम हार्ड ड्राइव पर सूचना एकत्र कर रहे हैं जो कुछ दशकों के बाद बेकार हो जाएंगी। हार्ड ड्राइव की तुलना में डीएनए ज्यादा लाभ की स्थिति में है क्योंकि यह डेटा भंडारण का बहुत ही सघन रूप है और इसके दीर्घावधि तक सुरक्षित रहने की अद्भुत क्षमता है। एक पेपरबैक पुस्तक के आकार की हार्ड ड्राइव में पांच टेराबाइट्स डेटा जमा किया जा सकता है लेकिन यह डेटा पचास साल से ज्यादा नहीं चलेगा। इसकी तुलना में 28 ग्राम डीएनए एक पेनी में समा सकता है। इसमें तीन लाख टेराबाइट्स मेमोरी संगृहीत रखी जा सकती है। सूचना भंडारण के प्रचलित आधुनिक तरीकों की तुलना में कांच या सिलिका में संरक्षित किए गए डीएनए मॉलिक्यूल सूचना सामग्री को बिना क्षति के हजारों वर्ष तक संगृहीत रख सकते हैं।
जीवाश्म शास्त्री हमें यह दिखा चुके हैं कि जीवाश्मों से प्राप्त डीएनए में जमा सूचना दस लाख वर्ष तक सुरक्षित रह सकती है। डीएनए के गुच्छे इतने सघन और जटिल होते हैं कि सिर्फ एक ग्राम डीएनए पर गूगल और फेसबुक जैसी विराट इंटरनेट कंपनियों का सारा डेटा संभाला जा सकता है। डेटा भंडारण की दृष्टि से देखें तो एक ग्राम में 455 एक्साबाइट सूचना जमा की जा सकती है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि जीवाश्मीकरण डीएनए के गुच्छों को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है। कई जीव-जंतुओं के जीवाश्मों में डीएनए सुरक्षित पाया गया है। वैज्ञानिकों ने 1,11,000 वर्ष पुराने ध्रुवीय भालू के समूचे जीन समूह को सही-सलामत बाहर निकाल कर उसे क्रमबद्ध किया है। वैज्ञानिकों ने 7,00,000 वर्ष पुराने घोड़े के जीन समूह को भी क्रमबद्ध किया है। सामान्य अवस्था में डीएनए का क्षय तेजी से होता है लेकिन वैज्ञानिकों ने डीएनए को स्थिर रखने का तरीका विकसित कर लिया है। दरअसल डीएनए को संरक्षित रखने का कृत्रिम तरीका जीवाश्मों में डीएनए के संरक्षण के कुदरती तरीके जैसा ही है। डीएनए को कांच की सूक्ष्म गोलियों में संरक्षित करने के बाद उसका उपयोग डेटा भंडारण के लिए किया जा सकता है।
अमेरिका में एटलांटा के वैज्ञानिकों के एक दल ने हाल ही में एक ऐसी चिप विकसित की है जो डीएनए भंडारण के मौजूदा रूप में कई गुणा सुधार कर सकती है। अमेरिका के जॉर्जिया टेक रिसर्च इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक निकोलस गाइस के अनुसार, नई चिप में फीचर का घनत्व वर्तमान व्यावसायिक उपकरणों की तुलना में 100 गुणा अधिक है। नई टेक्नोलॉजी में डीएनए की विशिष्ट लड़ियां एक-एक करके उगाई जाती हैं। इन लड़ियों में बिल्डिंग ब्लॉक होते हैं। इन बिल्डिंग ब्लॉक को बेस भी कहा जाता है। बेस दरअसल एक विशिष्ट रासायनिक इकाई है। डीएनए मॉलिक्यूल में कुल चार रासायनिक इकाइयां होती हैं। इन्हें एडेनिन, साइटोसिन, गुआनाइन और थाइमिन कहा जाता है। इस बेस का प्रयोग सामान्य कंप्यूटिंग के बाइनरी कोड (एक और शून्य) में सूचना को कूटबद्ध करने के लिए किया जा सकता है। डीएनए में यह सूचना कई प्रकार से संकलित की जा सकती है। उदाहरण के तौर पर बाइनरी कोड के शून्य का प्रतिनिधित्व एडेनिन या साइटोसिन द्वारा किया जा सकता है। एक का प्रतिनिधित्व गुआनाइन या थाइमिन द्वारा किया जा सकता है। एक और शून्य को दर्शाने के लिए सिर्फ दो बेसों का भी प्रयोग किया जा सकता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि डीएनए में कंप्यूटिंग करने पर अब तक बनी प्रत्येक फिल्म को चीनी के एक छोटे क्यूब से भी कम जगह में संग्रहित किया जा सकता है। चिप पर डीएनए उगाने के लिए प्रयुक्त संरचनाओं को माइक्रोवैल्स कहा जाता है और इनकी मोटाई एक पेपर शीट की मोटाई से भी कम होती है। वैज्ञानिकों द्वारा विकसित माइक्रोचिप करीब 2.5 सेंटीमीटर चौड़ी है और इसमें बहुत सारे माइक्रोवैल्स हैं। इससे डीएनए की कई लड़ियां एक साथ उगाई जा सकती हैं। इस तकनीक से डीएनए की बहुत बड़ी मात्रा कम समय में उगाई जा सकती है। यह चिप अभी एक प्रोटोटाइप है। डिजिटल भंडारण के लिए डीएनए के इस्तेमाल में अभी कई कठिनाइयां हैं। सबसे बड़ी दिक्कत इसकी उच्च लागत है। दूसरी बड़ी समस्या संगृहीत जानकारी को जरूरत पड़ने पर आसानी से खोज निकालने की है। नई टेक्नोलॉजी के परिपक्व होने पर स्थितियां बदल जाएंगी। इस समय डीएनए डिजिटल डेटा स्टोरेज का रिकॉर्ड 200 एमबी है। नई टेक्नोलॉजी से 100 गुणा से अधिक डेटा डीएनए पर लिखा जा सकेगा।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।