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भरोसा जीतकर हो सुरक्षा उपायों पर अमल

ऐसा नहीं है कि सरकारी एप पर जनता का भरोसा नहीं होता। कोविड के दौरान ‘आरोग्य सेतु’ का देश की जनता ने भरपूर इस्तेमाल किया। वह डिजिटल स्वास्थ्य एप था, जो अब आरोग्य सेतु 2.0 के रूप में और बेहतर...

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ऐसा नहीं है कि सरकारी एप पर जनता का भरोसा नहीं होता। कोविड के दौरान ‘आरोग्य सेतु’ का देश की जनता ने भरपूर इस्तेमाल किया। वह डिजिटल स्वास्थ्य एप था, जो अब आरोग्य सेतु 2.0 के रूप में और बेहतर हो चुका है।

दूरसंचार विभाग ने स्मार्टफोन कंपनियों को ‘संचार साथी’ एप्लीकेशन को अनिवार्य रूप से प्री-लोड करने के अपना आदेश वापस लेकर अच्छा काम किया है। इसे लागू करने का बेहतर तरीका यही था कि लोगों पर छोड़ दिया जाता कि वे चाहें, तो इसे डाउनलोड कर लें और न चाहें तो न करें। इसके फायदों को देखते हुए वह खुद ही लोकप्रिय हो जाएगा। हां, फायदों की जानकारी लोगों को जरूर दी जानी चाहिए थी। इसे लेकर गोपनीयता और संभावित निगरानी को लेकर चिंताएं पैदा हुई, जिनके पीछे भले ही कोई आधार नहीं रहा होगा, पर वे वाजिब थीं। संचार मंत्रालय ने अब बुधवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘सरकार ने मोबाइल निर्माताओं के लिए प्री-इंस्टॉलेशन को अनिवार्य नहीं बनाने का निर्णय लिया है।’

मतलब यह भी नहीं है कि सरकार साइबर अपराधों को रोकने की अपनी जिम्मेदारी से हाथ धो ले। वस्तुतः यह साख का सवाल है। पिछले सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने देशभर से सामने आए डिजिटल अरेस्ट के मामलों की देशभर में जांच की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंपी है। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा, डिजिटल अरेस्ट तेजी से बढ़ता साइबर क्राइम है। इसमें ठग खुद को पुलिस, कोर्ट या सरकारी एजेंसी का अधिकारी बताकर वीडियो/ऑडियो कॉल के जरिए पीड़ितों, खासकर सीनियर सिटिजन को धमकाते हैं और उनसे पैसे वसूलते हैं।

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वस्तुतः यह मामला जागरूकता के अभाव की ओर इशारा करता है, साथ ही जनता और सरकार के बीच की दूरी को भी बताता है। कोई व्यक्ति खुद को पुलिस वाला बताकर जब फोन करता है तो सामने वाला डरता है। उसे लगता है कि किसी गलत मामले में उसे फंसाया जा सकता है। लोगों के मन में यह डर बहुत गहरा बैठा हुआ है। ठगों ने उसका ही दोहन किया है, अन्यथा जब आपने कोई गलती की नहीं है, तो डरने की जरूरत ही क्या है? इसके शिकार साधारण लोग ही नहीं, पढ़े-लिखे लोग भी हुए हैं।

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ऐसे अपराधों को लेकर मीडिया में जितनी खबरें आई हैं, उतनी अपराधियों पर कार्रवाई की खबरें नहीं आई हैं। पिछले कई साल से यह काम चल रहा है। बड़े स्तर पर संगठित गिरोह इसका संचालन कर रहे हैं। इसका संगठित कारोबार अंतरराष्ट्रीय शक्ल ले चुका है। इसमें धोखाधड़ी वाले कॉल के माध्यम से लोगों को डराकर उनसे पैसे ऐंठे जाते हैं। अपराधी सरकारी अधिकारियों का रूप धारण करते हैं और पीड़ितों को झूठे कानूनी आरोपों में फंसाने की धमकी देते हैं। इन घोटालों के साथ संगठित अपराध सिंडिकेट जुड़े हैं। इनमें वित्तीय संस्थानों का दुरुपयोग किया जाता है, जिससे पैसे को क्रिप्टोकरेंसी में बदलकर उसका पता लगाना मुश्किल हो जाता है।

ऐसा नहीं है कि सरकारी एप पर जनता का भरोसा नहीं होता। कोविड के दौरान ‘आरोग्य सेतु’ का देश की जनता ने भरपूर इस्तेमाल किया। वह डिजिटल स्वास्थ्य एप था, जो अब आरोग्य सेतु 2.0 के रूप में और बेहतर हो चुका है। वह व्यापक वन हेल्थ एप है, जिसे स्वास्थ्य, कल्याण, चिकित्सा रिकॉर्ड, बीमा और परिवार की देखभाल सभी को एक ही स्थान पर प्रबंधित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसी तरह डिजिटल लॉकर जैसे उपयोगी ऐप भी हैं।

बहरहाल, दूरसंचार विभाग ने 28 नवंबर को जारी प्रारंभिक आदेश में स्मार्टफोन निर्माताओं और आयातकों को नए फोन और पुराने फोनों में भी सॉफ्टवेयर अपडेट के माध्यम से संचार साथी एप्लिकेशन पहले से इंस्टॉल करने का निर्देश दिया था। इसमें कहा गया था कि एप के कार्यों को अक्षम या प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। इसे साइबर सुरक्षा एप्लिकेशन बताया गया, जो उपयोगकर्ताओं को धोखाधड़ी वाले कॉल, संदेशों और चोरी हुए मोबाइल फोन की रिपोर्ट करने की सुविधा देता है। बेशक इन सुविधाओं की नागरिकों को जरूरत है, पर उन्हें लगता है कि इनकी आड़ में सरकार गुपचुप उनकी निगरानी करने जा रही है। शायद अपने विरोधियों को प्रताड़ित करने का तरीका उसने खोजा है।

आदेश वापस लेने के पहले दिन में, दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि सरकार ज़रूरत पड़ने पर आदेश में बदलाव के लिए तैयार है। सिंधिया ने संसद में कहा, ‘...अगर हमें प्राप्त फीडबैक के आधार पर आदेश में बदलाव करना पड़ा, तो हम इसके लिए तैयार हैं।’ निगरानी संबंधी चिंताओं पर उन्होंने कहा, ‘न तो जासूसी संभव है और न ही की जाएगी।’ एक दिन पहले सिंधिया ने स्पष्ट किया था कि एप वैकल्पिक है और उपयोगकर्ता इसे हटा सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘प्रत्येक नागरिक की डिजिटल सुरक्षा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।’

स्मार्टफोन निर्माताओं एपल और गूगल को, जिनके पास क्रमशः दो सबसे लोकप्रिय ऑपरेटिंग सिस्टम आईओएस और एंड्रॉइड हैं, इस आदेश को लेकर भी आपत्तियाथीं। इन कंपनियों का दृष्टिकोण है कि दुनिया में कहीं भी अपने उपकरणों में सरकारी एप्स प्री-लोड करने का इन फ़ोन निर्माताओं का कोई इतिहास या मिसाल नहीं है। इसे लागू करने से परिचालन संबंधी चुनौतियां अलग से पैदा होंगी, क्योंकि इसके लिए उन्हें आईओएस और एंड्रॉयड में विशेष रूप से भारत के अनुरूप बदलाव करने पड़ सकते हैं।

सिविल सोसायटी के कार्यकर्ताओं ने एप को अनिवार्य बनाने से लोगों की निजता पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों को लेकर चिंता जताई थी, क्योंकि इसे प्री-लोड करने से पसंद और सहमति के सिद्धांत विफल हो जाते हैं, और भविष्य में ‘कार्यात्मक विस्तार’ की संभावना बनी रहती है। ‘कार्यात्मक विस्तार’ का अर्थ है किसी सिस्टम का उसके मूल उद्देश्य से परे हटकर धीरे-धीरे विस्तार।

साइबर अपराधों की बढ़ती जटिलता, ‘डिजिटल गिरफ्तारियों’ से लेकर गुमनाम, बड़े पैमाने पर सीमा पार घोटालों तक, उनसे निपटना जरूरी और मुश्किल दोनों बना दिया है। साइबर अपराधियों ने एक सुरक्षा अंतराल का फायदा उठाया है, जिसमें इंस्टेंट मैसेजिंग एप्स पर उपयोगकर्ता के सिम कार्ड हटा दिए जाने के बाद भी सक्रिय रहते हैं, और इस गुमनामी का उपयोग वे धोखाधड़ी करने के लिए करते हैं। नकली या छेड़छाड़ किए गए आईएमईआई नंबरों के बड़े पैमाने पर उपयोग ने भी अपराधियों को ट्रैक करना कानून प्रवर्तन के लिए लगभग असंभव बना दिया है। इसलिए यह जरूरी भी हो गया है कि सरकार इन सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर कमजोरियों को दूर करने के लिए बेहतर उपकरणों की तलाश करे। 28 नवंबर और 1 दिसंबर को दूरसंचार विभाग के निर्देशों से यह बात भी झलकती है। पहला निर्देश ‘सिम बाइंडिंग’ को अनिवार्य करता है दूसरे निर्देश में, स्मार्टफोन निर्माताओं को मार्च, 2026 तक सभी नए उपकरणों में डिवाइस की प्रामाणिकता सत्यापित करने के लिए संचार साथी एप पहले से इंस्टॉल करना होगा। पहला निर्देश एक सुरक्षा पैच है जो वॉट्सएप/इंटरनेट मैसेजिंग उपयोगकर्ताओं को असुविधा पहुंचा सकता है, जबकि दूसरे निर्देश के पीछे एक डर है कि ‘अच्छे इरादों से किया गया काम भी गलत रास्ते पर ले जा सकता है।’

दूसरी तरफ इस बात की संभावना बनी रहती है कि इस एप का सरकारी निगरानी के लिए दुरुपयोग और उपयोगकर्ताओं को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ समय पहले आरोप लगाया गया था कि भारत में राजनीतिक विपक्ष, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने के लिए पेगासस सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल किया। हालांकि, उस मामले में साबित कुछ नहीं हुआ, पर उस परिघटना ने भय पैदा जरूर कर दिया है।

लेखक वरिष्ठ संपादक रहे हैं।

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