Tribune
PT
About Us Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

जुबान फिसल जइयो तो हमको बचइयो

व्यंग्य/तिरछी नज़र
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

राकेश सोहम‍्

यह बात राजा-महाराजाओं के जमाने की है। कहते हैं एक राजा बड़ा क्रूर था। उसे प्रजा की कोई चिंता नहीं थी। एक दिवस वह बीच बजरिया फिसल गया और गंभीर रूप से चोटिल हो गया। प्रजा में उसकी बड़ी जगहंसाई हुई। राजा भी शर्मसार हुआ और विकास की बात सोचने लगा। आगे चलकर उसने अपने राज्य में मार्गों का निर्माण कराया ताकि जब वह रास्तों से निकले तो फिसल न जाए। फिसलन से विकास का मार्ग निकलने का वह अनोखा मामला इतिहास में दर्ज है।

Advertisement

बहरहाल, फिसलना सार्वभौमिक है। यह मानव के संस्कार का अभिन्न हिस्सा है। फिसलने के संस्कार को लेकर ही मानव बड़ा होता है। गो कि फिसलना संस्कार की प्राचीनतम व्यवस्था है। दरअसल फिसले बिना संभलने का हुनर नहीं आता। बच्चा जितनी बार फिसलता है, उसका अपने आप को संभालने का हुनर मजबूत होता जाता है। वह कठिन परिस्थितियों में खड़े रहने का सामर्थ्य जुटा पाता है। उम्र की राह पर बढ़ते हुए अनेक पड़ावों पर फिसलनें मिलती हैं और हुनरमंद ही संभल पाता है।

सभी फिसलनों में जवानी की फिसलन बहुत खूबसूरत होती है। जवानी की फिसल के कितने ही मामले आज रपट जाएं तो हमें न उठइयो तक नहीं पहुंच पाते और मन में दबे रह जाते हैं। सत्तर के दशक के एक फ़िल्मी गाने में फिसलन को बड़ी खूबसूरती से पिरोया गया है– ‘आज रपट जाएं तो हमें न उठइयो, आज फिसल जाएं तो हमें न उठइयो।’ हमें जो उठइयो तो खुद भी फिसल जइयो। व्यक्ति का जीवन फिसलन से भरा हुआ है। कोर्ट-कचहरियों के मामले समय के साथ फिसलते जाते हैं। कई मामले तो उम्र के फिसल जाने के बाद भी नहीं सुलटते और हाथ से फिसल जाते हैं। शहरों में इलाज के लिए अस्पतालों के चक्कर लगाते किसानों के खेत उनके हाथ से फिसल जाते हैं।

खैर! इन दिनों जुबान का फिसलना आम हो गया लगता है। गाली-गलौज, अपशब्द उच्चारना और खरी-खोटी सुनाकर दुःख पहुंचाना चलन में है। लोग कहते हैं कि ज़ुबान सदैव फिसलन में रहती है इसलिए उसका फिसलना लाजिमी है। लेकिन जुबान की फिसलन को जो संभाल लेता है असल में वही एक जिम्मेदार इंसान होता है। नेताओं की जुबान अक्सर फिसल जाया करती है। नेता जनता का पालनहार होता है। यदि जनता को संभालने वाला एक जिम्मेदार नेता जुबान को न संभाल सके तो शर्म आती है। सुना है जनकलाल जी अपनी शादी की पच्चीसवीं सालगिरह के आयोजन पर शान से बोल गए, ‘मैं पच्चीसवीं शादी की सालगिरह पर अपनी पत्नी को बधाई देता हूं।’ तमतमाई हुई उनकी पत्नी की जुबान फिसल गई तो रोकना कठिन हो गया।

Advertisement
×