रोटी से खेलोगे तो राख होगी साख
अगर आम आदमी की रोटी से कोई नेता खिलवाड़ करे तो झुलसती रोटी की तरह जनता जनार्दन का गुस्सा और आंसू सिंहासन तक को फूंक देते हैं। जो जनता की नब्ज़ नहीं समझता, वो कोई पकवान नहीं बना सकता।
रोटी के बाद सबसे ज्यादा खाई जाने वाली चीज कसम है, गुटखा शायद तीसरे नंबर पर होगा। गर्म तवे पर रोटियां सेंकना आज की सबसे बड़ी सच्चाई है। पर पहले भी यही होता होगा, तभी तो यह कहावत बनी। कुछ लोग तो गर्म तवे पर रोटी सेंकने के इतने आदी हैं कि दूसरों की आंच से भी अपना परांठा निकाल लेते हैं। और जब बात बन जाये तो तवे से उतरते ही रोटी एक ही पल में तवे को भूल जाती है।
जिंदगी भी एक तवा है। तवे की रोटी को अगर समय पर न पलटो तो या तो जल जाती है या अधपकी रह जाती है। अगर जिंदगी में खुद को न पलटो तो एक साइड तो जल ही जायेगी। तवा स्वयं शांत और स्थिर होता है पर उसके नीचे जलती आग ही उसे सार्थकता देती है। बिना ताप के वह बस धातु का एक टुकड़ा है। ठीक ऐसे ही हमारा जीवन भी बिना संघर्षों की आंच के अधूरा है। ये मुश्किलें, ये चुनौतियां, ये विपरीत परिस्थितियां ही तो हैं जो हमें तपाती हैं। ये हमें कच्चा नहीं रहने देतीं, हमें भीतर से मजबूत बनाती हैं, जीवन के असली रंग दिखाती हैं।
कभी परीक्षाओं का ताप, कभी रिश्तों की उलझनें तो कभी सपनों को पूरा करने की जद्दोजहद, ये सब उस तवे की आग की तरह हैं जो हमें आकार देती हैं। जैसे तवे पर रोटी जलने से बचने के लिए उसे लगातार पलटा जाता है, वैसे ही जीवन भी हमें बार-बार परिस्थितियों के अनुसार ढलना और बदलना सिखाता है। हमें झुकना भी पड़ता है और उठना भी, कभी तेज आंच पर पकना पड़ता है तो कभी धीमी आंच पर धैर्य रखना होता है।
राजनीति भी किसी तवे से कम नहीं। यह अपना तवा सदा गर्म रखती है। भ्रष्टाचार इस तवे का देसी घी है। इसी के सहारे नेताओं की थालियां सजती हैं। अगर आम आदमी की रोटी से कोई नेता खिलवाड़ करे तो झुलसती रोटी की तरह जनता जनार्दन का गुस्सा और आंसू सिंहासन तक को फूंक देते हैं। जो जनता की नब्ज़ नहीं समझता, वो कोई पकवान नहीं बना सकता। जो आमजन को कच्ची-पक्की रोटी देता है और अपने लिये परांठे सेंकता है तो जनता उसकी साख से लेकर सत्ता तक सब कुछ झुलसा देती है और शासक के हाथ में सिर्फ राख बचती है।
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एक बर की बात है अक जंगल म्हं भालू देखते ही नत्थू सांस रोक कै जमीन पै लेट ग्या। जद भालू उस धोरै पहोंच्या तो उसके कान म्हं धीरे सी बोल्या- आज भूख कोणी, नीं तो तेरी सारी होशियारी एक्के मिनट म्हं काढ देता।