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मेढ़ की दिखे अलामत, तो खेत रहे सलामत

व्यंग्य/तिरछी नज‍़र
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मुकेश राठौर

मेढ़ देश की हो या खेत की, उसका अपना महत्व होता है। मेढ़ दीवार का कार्य करती है। दीवारों के तो सिर्फ कान होते हैं लेकिन मेढ़ों के पैर होते हैं। एक-दो नहीं, शतपाद। दीवारें सुनती हैं मगर मेढ़ें सरकती भी हैं। दीवारें अचल हैं मगर मेढ़ें चल। बुजुर्ग कहा करते थे, ‘मेढ़ पर क्या पकता है।’ किसी समय यह कथन सौ फीसदी सही था क्योंकि न तो पकाने के संसाधन थे और न ही उन्हें पकाना आता था लेकिन बदले समय में परिभाषाएं बदल गई हैं। कहावतें भी, लोकोक्तियां भी, बुजुर्ग भी और उनके कथन भी। अब बुजुर्गों की बात पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं किया जा सकता। अबके बुजुर्ग आपको मीठी नींद सुलाने के लिए राजा-रानी की झूठी कहानी सुना दें तो क्या कीजियेगा! आप तो यह कहिए कि ‘मेढ़ पर क्या कुछ नहीं पकता?’ मेढ़ पर साजिश पकती है। मेढ़ पर स्वार्थ पकता है। मेढ़ पर छल पकता है। मेढ़ पर कपट पकता है। मेढ़ पर अतिचार पकता है। मेढ़ पर घुसपैठ पकती है और मेढ़ पर ही विकास की पंचवर्षीय योजनाएं पकती हैं...।

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‘मेढ़ अपने को सवाया और पड़ोसी को पौना करने का सबसे उत्तम तरीका है।’ ज्ञात रहे मेढ़ है तो खेत है। शनै-शनै मेढ़ें इसी तरह बढ़ती रहीं तो खेत बचेगा ही कहां? और जब खेत नहीं बचा तो पकाने की नहीं, भागने की नौबत आ जाएगी और फिर ज्ञान पेलने वाले यही ट्रंप टाइप बुजुर्ग आपको लानत भेजेंगे। अपनी लानत-मलामत करवाकर अंततः आपको भागना ही होगा। न भागेंगे तो जैसे मेढ़ तोड़ दी गई आपको भी तोड़ दिया जाएगा। तन से और मन से। एक बार टूटे तन से आदमी बैसाखियों के सहारे खड़ा भी हो जाए मगर टूटे मन से कोई कदापि खड़ा नहीं हो पाता।

सुख-दुख में काम आने वाले पड़ोसी बीते दिनों की बात हो गए। गर पड़ोसी गिद्ध दृष्टि सम्पन्न है तो आपका काग दृष्टि सम्पन्न होना लाजिमी है। गर वह आपके घर में किसी बड़ी बीमारी की वायरल एंट्री हेतु प्रतीक्षारत है। आपके व्यसनी होने के लिए स्वागतातुर है। आपके कामचोर होने का आकांक्षी है। आपके गृहयुद्ध पर नाचने-गाने, धूम-धड़ाका करने को तैयार है और आपकी छोटी-सी जरूरत पर मय ब्याज बड़ी रकम जलूल-जलूल देने की मनुहार करता है तो जरा बचके रहना भाई साहब। ये उसके द्वारा मदद की गुहार नहीं बल्कि आपकी जमीन बुहारने की योजना है।

रूस और यूक्रेन के बीच आखिर झगड़ा किस बात का है? अपनी मेढ़ ही तो बढ़ाने का है। एक बार मेढ़ बढ़ा ली तो खेत तो स्वत: ही बड़ा हो जाएगा। मेढ़ का असुरक्षित होना, जमीन का असुरक्षित हो जाना है। किसी शायर ने ठीक ही कहा है—‘सब हिफ़ाज़त कर रहे हैं मुस्तक़िल दीवार की, जबकि हमला हो रहा है मुस्तक़िल बुनियाद पर।’

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