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गिरने वाला गिरे फिक्र किस बात की

तिरछी नज़र

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यहां सब कुछ गिरनशील है। पेड़ों से पत्ते गिरते हैं। सिर से बाल गिरते हैं। मुंह के दांत गिरते हैं। झरने से पानी गिरता है। गारंटियों से जनसेवक गिरता है। सच से सच्चा पक्का गिरता है।

हैलो बेब्स! जो रुपया गिरकर अपने सबसे निचले स्तर पर आ गया है, घबराने की कोई जरूरत नहीं। हम हैं न! हमने बड़ों-बड़ों का उठा दिया। इसे भी उठा देंगे।

डियर बेब्स! हमने अपने जीवन में इतने गिरते हुए देखे हैं कि अब हम किसी के गिरने को कतई भी गंभीरता से नहीं लेते। हम किसी के गिरने से कतई नहीं घबराते। बल्कि किसी के गिरने पर उसके गिरने का उत्सव मनाते हैं। हम जानते हैं कि तुमने अब घबराना छोड़ दिया है। आखिर आदमी जिंदगी भर कब तक घबराता फिरे? किस किससे घबराता फिरे?

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डॉन्ट वरी! जो हमारे रुपये के गिरने को लेकर हाहाकार मचाए हैं उन्हें सिरे से इग्नोर कीजिए। उन्हें हाहाकार मचाने दीजिए। ये वे देशप्रेमी हैं जो सोये-सोये भी देश की सच्ची हालत पर हाहाकार मचाए रहते हैं। इनकी मत सुनिए। ये सब देश के विकास के गतिरोधी हैं। जरा सोचो तो, हमें कौन से अपनी जेब में डॉलर लेकर गोभी, बैंगन, प्याज, टमाटर खरीदने निकलना है? हम तो अपनी जेब में अपना रुपया लेकर ही जाएंगे न भाई साहब! वह उठा हो या गिरा, इससे क्या फर्क पड़ता है? है तो रुपया ही न! अपने तो गिरे हुए भी दूसरों के उठे हुए से हजार दर्जे प्यारे होते हैं जनाब! होने भी चाहिए, जो हममें लेश मात्र भी देशभक्ति हो तो।

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वे कौन होते हैं, चीखने-चिल्लाने वाले कि हमारा रुपया रिकॉर्ड गिर रहा है। रुपया हमारा है। वह गिरे तो गिरे। जब हमें ही उसके गिरने का दु:ख नहीं, तो वे कौन होते हैं हमारे बिन कहे हमारे दु:ख में रोने वाले?

यहां गिरा कौन नहीं? गिरना कुदरत का नियम है। हम ऊपर उठने वाले को ऊपर उठने से तो रोक सकते हैं, पर गिरने वाले को ऊपर कदापि उठा नहीं सकते। गिर कर उठना खुद अपने हाथ में होता है। कोई उसे उठने दे तो। लेकिन समाज में गिरना शाश्वत है। उठना मिथ्या। उठता केवल लोकतंत्र में पूंजीवाद है।

यहां सब कुछ गिरनशील है। पेड़ों से पत्ते गिरते हैं। सिर से बाल गिरते हैं। मुंह के दांत गिरते हैं। झरने से पानी गिरता है। गारंटियों से जनसेवक गिरता है। सच से सच्चा पक्का गिरता है। जब चारों ओर सब गिर रहा हो तो इस टके के रुपये के गिरने से भी क्या घबराना? क्यों घबराना? बस, सबकी तरह उसके भी गिरने का आनंद लीजिए। उसके गिरने पर राग मल्हार गाइए। ढोल बजाइए। चिमटा बजाइए। मंजीरा बजाइए। तानपुरा बजाइए। जैसे भी हो, बस, अपने मरणासन्न होने पर भी अपने को स्वस्थ फील कराइए। यही जनधर्म है।

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