अंतरिक्ष में सुनहरी कामयाबी की सौवीं उड़ान
इसरो के अनुसार एनएवीआईसी भारत की स्वतंत्र क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट प्रणाली है जिसे भारत तथा भारतीय भूभाग से लगभग 1,500 किलोमीटर आगे तक फैले क्षेत्र में उपयोगकर्ताओं को सटीक स्थिति (पोजीशन), वेग (वैलोसिटी) तथा समय (टाइमिंग) सेवा प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
भारत ने नए साल का शानदार आगाज करते हुए अंतरिक्ष में दो बड़े कीर्तिमान कायम कर दिए हैं। सबसे पहले इसरो ने 16 जनवरी को अंतरिक्ष में पहली बार दो यानों को सफलतापूर्वक जोड़ कर एक नया इतिहास रचा और इसके कुछ ही दिन बाद 29 जनवरी को उसने अपने ऐतिहासिक 100वें रॉकेट प्रक्षेपण के जरिए अपने दूसरी पीढ़ी के नेविगेशन (नौचालन) उपग्रह को कक्षा में स्थापित कर दिया। भारत को लंबे समय से अंतरिक्ष में अपने यानों की डॉकिंग का इंतजार था। सटीक गणनाओं और अत्याधुनिक तकनीक के माध्यम से हासिल की गई यह उपलब्धि अंतरग्रहीय मिशनों और उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की बढ़ती क्षमताओं को प्रदर्शित करती है।
इसरो ने सीमित संसाधनों के साथ काम करने के बावजूद एक अत्यधिक परिष्कृत कार्य को सफलतापूर्वक पूरा किया है। डॉकिंग के लिए दो उपग्रहों के बीच सही मिलान की आवश्यकता होती है, और इसमें अविश्वसनीय रूप से जटिल गणनाएं शामिल होती हैं। यह ऐसा काम नहीं है जो हर देश कर सकता है, लेकिन भारत ने एक बार फिर पूरी दुनिया के समक्ष अपनी योग्यता साबित कर दी है।
भविष्य में भारत की अंतरिक्ष में बड़ी-बड़ी महत्वाकांक्षाएं हैं। भारत अंतरिक्ष में अपना स्थायी स्टेशन स्थापित करना चाहता है। अन्य बड़े लक्ष्यों में चंद्रमा से नमूने लाना और वहां मानव भेजना शामिल है। डॉकिंग की तकनीक इन लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। पूरे देश और इसरो के वैज्ञानिकों के लिए यह बड़े गौरव की बात है कि भारत अंतरिक्ष में यान को डॉक करने वाला चौथा देश बन गया है। स्पैडेक्स (स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट) मिशन इसरो की एक महत्वपूर्ण परियोजना है।
इसरो के स्पैडेक्स मिशन को 30 दिसंबर को श्रीहरिकोटा लांच पैड से प्रक्षेपित किया गया था। उड़ान भरने के कुछ ही मिनटों बाद लगभग 220 किलोग्राम वजन वाले दो अंतरिक्ष यानों को 475 किलोमीटर की गोलाकार कक्षा में प्रक्षेपित किया गया। एक ही रॉकेट पर प्रक्षेपित किए गए दो अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष में अलग हो गए। इसरो के डॉकिंग परीक्षण के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेंगलुरु में इसरो कार्यालय में उपस्थित थे। सफल डॉकिंग के बाद उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, ‘यह आने वाले वर्षों में भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशनों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।’ स्पैडेक्स मिशन पर भेजे गए दो छोटे अंतरिक्ष यानों को एसडीएक्स 01 या चेज़र और एसडीएक्स 02 या टारगेट कहा जाता है। लांच के बाद दोनों यान सावधानीपूर्वक चुनी गई गति से अंतरिक्ष में यात्रा कर रहे थे। उन्हें एक साथ अंतरिक्ष में भेजा गया था। लेकिन अलग होने के समय उन्हें अलग-अलग वेग पर रखा गया था ताकि वे अपने बीच 10-20 किलोमीटर की दूरी बना सकें। डॉकिंग के दौरान वैज्ञानिकों ने यानों की दूरी को कम करने के उपाय किए ताकि वे आपस में मिल सकें। स्पैडेक्स के लांच होने के समय एस. सोमनाथ इसरो प्रमुख थे और कुछ दिन पहले अपनी सेवानिवृत्ति तक इसकी प्रगति की निगरानी कर रहे थे। उन्होंने डॉकिंग को ‘एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया’ के रूप में वर्णित किया था, जिसके लिए अत्यधिक सटीकता और समन्वय की आवश्यकता होती है।
आने वाले दिनों में दोनों यानों की अनडॉकिंग (अलग होने) और उनके बीच पावर ट्रांसफर का परीक्षण किया जाएगा। चेजर यान से टारगेट यान में बिजली का हस्तांतरण एक बहुत महत्वपूर्ण प्रयोग है। इसकी सफलता से यह प्रदर्शित किया जा सकेगा कि अंतरिक्ष में तैनात अंतरिक्ष यान की आपूर्ति और सर्विस के लिए दूसरे यान को भेजा जा सकता है। यह मिशन अंतर-उपग्रह संचार के लिए भारत की क्षमताओं का भी परीक्षण करेगा क्योंकि डॉकिंग और अनडॉकिंग के दौरान अंतरिक्ष यान को पृथ्वी स्टेशन के साथ-साथ एक-दूसरे के साथ भी संवाद करना होगा ताकि वे एक-दूसरे की स्थिति और गति जान सकें। अंतरिक्ष यान में वैज्ञानिक उपकरण और कैमरे भी हैं जिन्हें बाद में तैनात किया जाएगा। अगले दो वर्षों में वे अंतरिक्ष में विकिरण को मापेंगे और पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधनों की निगरानी करेंगे।
इसरो अपने मिशनों को किफायती बनाने के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। वह तीन महीने तक कक्षा में कुछ महत्वपूर्ण प्रयोग करने के लिए स्पेसडेक्स को अंतरिक्ष में ले जाने वाले रॉकेट के एक हिस्से का भी उपयोग कर रहा है जो सामान्य परिस्थितियों में अंतरिक्ष मलबा बन जाता है।
पोएम (पीएस4-ऑर्बिटल एक्सपेरीमेंट मॉड्यूल) में 24 पेलोड है और यह पहले ही दो सफल प्रयोग कर चुका है। पहले प्रयोग में उसने बीज अंकुरण का प्रदर्शन किया। इसरो ने एक वीडियो ट्वीट किया था जिसमें कहा गया था कि सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में अंतरिक्ष में लोबिया के अंकुरों ने अपने पहले पत्ते प्रकट कर दिए हैं। सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण अंतरिक्ष यान में अनुभव की जाने वाली लगभग भारहीनता जैसी स्थिति है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बीजों का अंकुरण बहुत अच्छी खबर है क्योंकि इसका मतलब है कि भविष्य के अंतरिक्ष यात्री लंबी अवधि के मिशनों के दौरान भोजन का उत्पादन कर सकते हैं।
दूसरे प्रयोग में रोबोटिक भुजा शामिल है। यह रॉकेट के सबसे महत्वपूर्ण पेलोड में से एक है। इसरो के एक्स अकाउंट पर एक वीडियो में रोबोटिक भुजा को अंतरिक्ष मलबे के एक टुकड़े को पकड़ने के लिए आगे बढ़ते हुए दिखाया गया है। यह भुजा अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी क्योंकि इसका उपयोग चीजों को पकड़ने और उन्हें सही जगह पर रखने के लिए किया जा सकता है। यह रोबोटिक भुजा चंद्रयान-4 में भी काम आएगी जो भारत का अगला चंद्रमा मिशन है जिसका प्रमुख उद्देश्य चंद्रमा की मिट्टी के नमूने एकत्र करना और उन्हें वापस लाना है।
डॉकिंग के बाद भारत की दूसरी बड़ी उपलब्धि इसरो की 100वीं रॉकेट उड़ान के रूप में सामने आई जब उसके शक्तिशाली जीएसएलवी-एफ15 रॉकेट ने दूसरी पीढ़ी के नेविगेशन उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया। इसरो ने श्रीहरिकोटा से अपने प्रक्षेपण में जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच वीकल (जीएसएलवी) का इस्तेमाल किया। एनवीएस-02 नेविगेशन उपग्रह को ले जाने वाले जीएसएलवी-एफ15 ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी और करीब 19 मिनट बाद रॉकेट ने एनवीएस-02 को 322.93 किमी की जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर कक्षा में स्थापित कर दिया। इसरो के चेयरमैन वी. नारायणन ने कहा कि इसरो ने छह पीढ़ी के रॉकेट प्रक्षेपित किए हैं। इन प्रक्षेपणों के माध्यम से 433 विदेशी उपग्रहों के 23 टन सहित कुल 120 टन वजन वाले 548 उपग्रह स्थापित किए गए हैं। एनवीएस-02, एनवीएस (नेविगेशनल सैटेलाइट) शृंखला का दूसरा उपग्रह है। यह भारत के नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन (एनएवीआईसी) का हिस्सा है। इसरो के अनुसार एनएवीआईसी भारत की स्वतंत्र क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट प्रणाली है जिसे भारत तथा भारतीय भूभाग से लगभग 1,500 किलोमीटर आगे तक फैले क्षेत्र में उपयोगकर्ताओं को सटीक स्थिति (पोजीशन) वेग (वैलोसिटी) तथा समय (टाइमिंग) सेवा प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो इसका प्राथमिक सेवा क्षेत्र है।
लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।