राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए 17 सौ साल पुरानी व्यवस्था को बदलने की अनुशंसा की है। देश में चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई कर रहे छात्रों को अब हिप्पोक्रेटिक ओथ की बजाय महर्षि चरक की शपथ दिलाई जाएगी। इसकी शुरुआत नए पाठ्यक्रमों से होगी। दरअसल, चिकित्सक बनने के लिए समाज एवं मानवता के प्रति निर्विकार निष्ठा और अपने ज्ञान को सत्यता के साथ प्रयोग करना जरूरी है। इस सिलसिले में दुनियाभर में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्र एक शपथ लेते हैं, जिसे ‘हिप्पोक्रेटिक ओथ’ कहा जाता है। यह शपथ ग्रीक चिकित्साविद् हिप्पोक्रेट्स को समर्पित है। भारत में चिकित्सा के जनक माने जाने वाले महर्षि चरक की संस्कृत पुस्तक ‘चरक संहिता’ में भी चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए एक शपथ का उल्लेख है। आयोग ने इसी शपथ की सिफारिश की है। हालांकि, चरक-शपथ को वैकल्पिक रखा जाएगा।
संस्कृत ग्रंथों में उल्लेख है कि धरा पर प्राणियों की सृष्टि से पहले ही प्रकृति ने घटक-द्रव्य युक्त वनस्पति जगत की सृष्टि कर दी थी, ताकि रोगग्रस्त होने पर उपचार के लिए मनुष्य उनका प्रयोग कर सके। भारत के प्राचीन वैद्य धन्वन्तरि और उनकी पीढ़ियों ने ऐसी अनेक वनस्पतियों की खोज की व उनके रोगियों पर प्रयोग किए। इन प्रयोगों के निष्कर्ष श्लोकों में दर्ज करने का उल्लेखनीय काम भी किया ताकि इस विरासत का लोप न हो। इन्हीं श्लोकों का संग्रह ‘आयुर्वेद’ है। एक लाख श्लोकों की इस संहिता को ‘ब्रह्म-संहिता’ भी कहा जाता है। इन संहिताओं में सौ-सौ श्लोक वाले एक हजार अध्याय हैं। बाद में इनका वर्गीकरण भी किया गया। इसका आधार अल्प-आयु तथा अल्प-बुद्धि को बनाया गया। वनस्पतियों के इस कोष और उपचार विधियों का संकलन ‘अथर्ववेद’ है। अथर्ववेद के इसी सारभूत संपूर्ण आयुर्वेद का ज्ञान धन्वन्तरि ने पहले दक्ष प्रजापति को दिया और फिर अश्विनी कुमारों को पारंगत किया। अश्विनी कुमारों ने ही वैद्यों के ज्ञान-वृद्धि की दृष्टि से ‘अश्विनी कुमार संहिता’ की रचना की। चरक ने ऋषि-मुनियों द्वारा रचित संहिताओं को परिमार्जित करके ‘चरक-संहिता’ की रचना की। यह आयुर्वेद का प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है।
इसी कालखंड में सद्वैद्य वाग्भट्ट ने धन्वन्तरि से ज्ञान प्राप्त किया और ‘अष्टांग हृदय संहिता’ की रचना की। सुश्रुत संहिता तथा अष्टांग हृदय संहिता आयुर्वेद के प्रामाणिक ग्रंथों के रूप में आदि काल से आज तक हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। इन शास्त्रों में केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि पशुओं, पक्षियों और वृक्षों के उपचार की विधियां भी उल्लेखित हैं।
भारत में चिकित्सा विज्ञान का इतिहास वैदिक काल में ही चरम पर पहुंच गया था, क्योंकि वनस्पतियों के औषधि रूप में उपयोग किए जाने का प्राचीनतम उल्लेख ऋग्वेद में उपलब्ध है। ऋग्वेद के पश्चात अथर्ववेद लिखा गया, जिसमें भेषजों की उपयोगिताओं के वर्णन हैं। भेषजों के सुनिश्चित गुणों और उपयोगों का उल्लेख कुछ अधिक विस्तार से आयुर्वेद में हुआ है। यही आयुर्वेद भारतीय चिकित्सा विज्ञान की आधारशिला है। इसे उपवेद भी माना गया है। इसके आठ अध्याय हैं, जिनमें आयुर्विज्ञान और चिकित्सा के विभिन्न पक्षों पर विचार किया गया है।
आयुर्वेद की रचना के बाद पुराणों में सुश्रुत और चरक ऋषियों और उनके द्वारा रचित संहिताओं का उल्लेख है। चरक संहिता में रेचक, वामनकारक द्रव्यों और उनके गुणों का वर्णन है। चरक ने केवल एकल औषधियों को ही 45 वर्गों में विभाजित किया है। इसमें औषधियों की मात्रा और सेवन विधियों का भी तार्किक वर्णन है। इनका आज की प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों से साम्य है। यहां तक कि कुछ विधियों में इंजेक्शन द्वारा शरीर में दवा पहुंचाने का भी उल्लेख है। यह वह समय था जब भारतीय चिकित्सा विज्ञान अपने उत्कर्ष पर था और भारतीय चिकित्सकों की भेषज तथा विष विज्ञान संबंधी प्रणालियां अन्य देशों की तुलना में उन्नत थीं।
इतनी समृद्ध विरासत के बाद यहां संकट तब पैदा हुआ, जब तांत्रिकों, सिद्धों और पाखंडियों ने इनमें कर्मकांड से जीवन की समृद्धि का घालमेल शुरू कर दिया। इसके तत्काल बाद एक और बड़ा संकट तब आया, जब भारत पर यूनानियों, शकों, हूणों और मुगलों के हमलों का सिलसिला निरंतर बना रहा। जो कुछ शेष था, उसे नेस्तनाबूद करने का काम अंग्रेजों ने किया। डाॅ. धर्मपाल की पुस्तक ‘इंडियन साइंस एंड टेक्नोलाॅजी’ में लिखा है कि 1731 में बंगाल में डाॅ. ओलिवर काउल्ट नियुक्त थे। काउल्ट ने लिखा है कि ‘भारत में रोगियों को टीका देने का चलन था। उन्होंने लिखा है कि टीका लगाने की विधि भारत आने के भी डेढ़ सौ साल पहले से प्रचलन में थी। यह काम ज्यादातर ब्राह्मण करते थे और साल के निश्चित महीनों में वे इसे अपना उत्तरदायित्व मानते हुए घर-घर जाकर रोगी ढूंढ़ते थे। लेकिन जब अंग्रेजों ने भारत में एलोपैथी चिकित्सा थोपने की शुरुआत की तो षड्यंत्रपूर्वक एक-एक कर सभी प्रणालियों को नष्ट करने का अभियान चला दिया था।