अमिताभ स.
हर इंसान बुलंदियों को बखूबी छू सकता है, उसमें उड़ने का जबरदस्त साहस कूट-कूट कर भरा होता है। सद्गुरु जग्गी वासुदेव के शब्दों में, ‘मानव क्षमता कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे नाप-जोख की किसी सीमा में सीमित रखा जाए। यह उस हद तक जा सकती है, जिस हद तक आप में आगे बढ़ने का साहस है।’ यानी अच्छा ही काफी नहीं है। हर इंसान और अधिक करने और पाने के लायक है, और यही खूबी उसे उच्च स्थान दिलाने में सक्षम बनाती है। बेशक कहते हैं कि किसी को अपनी तुलना दूसरों से हरगिज नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हर कोई होता भी है अपने तरीके से सर्वश्रेष्ठ।
कुछ करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है। इसीलिए पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन तो इस हद तक कहते थे, ‘अगर कोई भी काम कोई व्यक्ति अच्छे से कर सकता है, तो मैं कहूंगा उसे करने दीजिए। उसे अपनी योग्यता और क्षमता को प्रस्तुत और प्रमाणित करने का एक मौका दीजिए।’ कर्म करने से ही नतीजे तय होते हैं, इसलिए सदा उद्देश्यपूर्ण कार्य करते रहिए। इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं। अमेरिका एडवेंचरर जॉन गोडार्ड किशोरावस्था में ही अपने सपने और लक्ष्य लिखने लगा- जैसे एवरेस्ट पर चढ़ना, नील नदी तैर कर पार करना आदि। यूं उसने 57 लक्ष्य लिख लिए। जब वह साठ साल का हुआ, तो उसने अपने लक्ष्यों का पन्ना खोला, और जांच करने लगा कि क्या- क्या छूट गया है? वह अपना रिपोर्ट कार्ड देख कर अचंभित हो गया क्योंकि उसने 57 में से 55 लक्ष्य पूर्ण कर लिए थे। लक्ष्य तो सभी तय करते हैं, लेकिन उन्हें हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करने वाले बिरले ही होते हैं। सच है कि सामान्य कर्म करने से इंसान साधारण बना रहता है, लेकिन अगर बढ़- चढ़ कर प्रयत्न किए जाएं, तो आम व्यक्ति भी नायक बन सकता है। असल चुनौती कड़ी मेहनत और लगातार अच्छा करने को जारी रखना है। इसीलिए कहते हैं कि पहला, अपनी ताकत का ज्ञान होना चाहिए, दूसरा साहस और तीसरा करने का विश्वास। पीछे जाने से बचने का केवल एक ही तरीका है, आगे चलते रहिए।
बकौल बर्नार्ड मैलेमड, ‘हर शख्स की ज़िंदगी में ऐसा वक्त जरूर आता है, जब उसे मंजिल तक पहुंचने के लिए दरवाजे और खिड़कियां न होने पर दीवार में से होकर गुजरना ही पड़ता है।’ जाहिर है कि कोई काम अपने आप नहीं बन सकता। उसके साथ आखिर तक जुटे और बने रहना पड़ता है। इसीलिए कहते हैं कि काम से प्यार जरूरी है, वरना सब गड़बड़ होना निश्चित है।
योग्यताएं कर्म से पैदा होती हैं, जन्म से तो हर व्यक्ति शून्य होता है। समूचे ब्रह्मांड में केवल एक ही वस्तु पर इंसान का नियंत्रण है, और वह है खुद। इसलिए इंसान जो भी चाहे, वह कर सकता है। जैसे छतरी का फ़ायदा खोलने से ही है, वरना बेमतलब का बोझ ही है, वैसे ही शरीर का फ़ायदा उससे निरंतर काम लेने से ही है। करण सौंधी ने अपनी किताब ‘टोटल विक्टरी’ में लिखा है कि जो आने वाले कल को भांपकर अचूक नीति अपनाने का माहिर है, वही सदा जीतेगा। अत: जिसने बख़ूब समझ और मेहनत के बीज बोए, उसने मीठे फल पाए। खुद पर यक़ीन कीजिए क्योंकि आप जैसा और आप से बेहतर कोई इंसान नहीं है।
‘तुम कर सकते हो’ शब्द बोल कर माता-पिता और शिक्षक अमूमन बच्चों में कुछ करने का आत्मविश्वास जगाते हैं, क्योंकि आत्मविश्वास से ही मनचाहा हासिल किया जा सकता है। किसी दूसरे की सफलता और असफलता आप की नहीं होती। सभी में अलग गुण होते हैं, अपने गुणों की पहचान करना ज़रूरी है और आत्मविश्वास से ही ऐसे गुण पनपते हैं। थॉम्स अल्वा एडिसन को बल्ब, मूवी कैमरा आदि कई बड़े आविष्कारों के लिए जाना जाता है। लेकिन अगर बचपन में उनकी मां उन्हें प्रोत्साहित न करती, तो वह इस मुकाम को छू नहीं पाते। उल्लेखनीय है कि थॉमस अल्वा एडिसन अपनी स्कूली पढ़ाई में बहुत कमज़ोर था। एक रोज टीचर ने उसे पत्र थमाया और कहा कि इसे अपनी मां को दे देना। पत्र पढ़ते-पढ़ते मां की आंखें डबडबा गईं। मां ने नन्हे एडिसन की हौसला अफ़जाई करते हुए कहा, ‘मैडम ने लिखा है कि हमारे स्कूल में आप के बेटे के स्तर के टीचर नहीं हैं। इसलिए बेहतर है कि इसे अब आप स्वयं पढ़ाएं।’ सुन कर, एडिसन भी खुश हुआ और घर पर मां से ही पढ़ने- सीखने लगा। सालों बाद जब वह विख्यात आविष्कारक बन गया, उसकी मां भी चल बसीं, तो एक रोज वह अपनी मां के सामान को सहेज कर रख रहा था कि वही पत्र उसके हाथ लगा। पत्र पढ़ा, तो वह अपने आंसू नहीं रोक पाया। दरअसल, उसमें लिखा था कि आपका बच्चा बौद्धिक तौर पर बहुत कमजोर है, इसलिए उसे स्कूल से निकाल दिया गया है। जाहिर है कि हर इंसान में करने की बेशुमार संभावनाएं दबी रहती हैं।