दोषी कोई और नहीं होता। हम ही होते हैं। सेहत बिगाड़ने के भी और पर्यावरण बिगाड़ने के भी। वरना साहब घर के लोगों की संख्या से ज्यादा गाड़ियां रखने में क्या समझदारी है।
हवा सचमुच बहुत खराब है जी। नहीं जी नहीं, जमानेवाली वह हवा नहीं कि उपदेश चालू हो जाएं कि आजकल के नौजवान ऐसे हैं और आजकल की बहुएं ऐसी हैं वगैरह-वगैरह। जनाब यह तो सचमुचवाली हवा की बात हो रही है। जी वही, सांस लेनेवाली हवा। सचमुच बहुत खराब है। मुख्य न्यायाधीश नाराज हैं कि इस खराब हवा के कारण वे सुबह की सैर पर नहीं जा सकते। यह कैसी हवा है जनाब कि मुख्य न्यायाधीश बनते ही हमारे मुख्य न्यायाधीश को अपनी खुशी दिखाने की बजाय अपनी नाराजी दिखानी पड़ी। वैसे दीवाली पर पटाखे फोड़ने की इजाजत तो अदालत ने ही दी थी और खुशी-खुशी दी थी। हम इतने खुश हुए कि जी भर कर पटाखे फोड़े और अपनी हवा को वैसे ही बिगाड़ लिया, जैसे खुशी में यह भी, वह भी सब खा-पीकर हम अपनी सेहत बिगाड़ लेते हैं।
दोषी कोई और नहीं होता। हम ही होते हैं। सेहत बिगाड़ने के भी और पर्यावरण बिगाड़ने के भी। वरना साहब घर के लोगों की संख्या से ज्यादा गाड़ियां रखने में क्या समझदारी है। लेकिन हैसियत दिखाने की हुड़क समझदारी पर भारी पड़ जाती है। जैसे अपना त्यौहार मनाने की हुड़क पर्यावरण पर भारी पड़ गयी। जैसे गाड़ियां दूसरों को दिखाने-जलाने के लिए होती हैं, वैसे पटाखे भी दूसरों को दिखाने, जलाने के लिए ही तो फोड़े गए थे। हमारा त्योहार मनाने से हमें ही रोका जाएगा। लो नहीं रुकते।
खैर साहब, नाराज तो दिल्ली की मांएं भी हैं कि ऐसी खराब हवा के चलते अपने बच्चों को स्कूल कैसे भेजें। नाराज तो दिल्ली के युवा भी हैं, छात्र भी हैं। इतने कि जो युवा अपनी बेरोजगारी को लेकर प्रदर्शन नहीं करते, जो छात्र बिगड़ी शिक्षा व्यवस्था को लेकर प्रदर्शन नहीं करते, वे बिगड़कर जहरीली हो चुकी हवा को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। और ऐसा प्रदर्शन कर रहे हैं कि सरकार को उनसे वैसे ही निपटना पड़ रहा है, जैसे वह अर्बन नक्सलों से निपटती है या फिर जेएनयू और जामिया के छात्रों से निपटती है।
इधर बिगड़ी हवा पर यह हंगामा है और उधर प्रधानमंत्री सलाह दे रहे हैं कि मौसम का मजा लीजिए। बात उनकी भी ठीक है। एक जमाने में दिल्ली की ठंड के लोग बड़े मुरीद होते थे। यहां तक कि बॉलीवुड के सेलिब्रिटीज भी दिल्ली की इस गुलाबी ठंड को उसी तरह मिस करते थे, जैसे पुरानी दिल्ली की चाट और वहां के खानों को मिस कर रहे हों। ऐसे में यही दुविधा है साहब कि एक तरफ तो बिगड़ी हुई हवा को लेकर मुख्य न्यायाधीश की नाराजगी है और दूसरी तरफ प्रधानमंत्रीजी की सलाह है कि दिल्ली के मौसम का मजा लीजिए। ऐसे में आप ही बताएं कि कोई करे तो क्या करे। खराब हवा से बचे या फिर मौसम का मजा ले। बताइए?

