अनूप भटनागर
पत्नी की इच्छा के विरुद्ध उसके साथ संबंध को अपराध से बाहर रखने संबंधी धारा 375 के अपवाद दो के बारे में हालांकि अभी तक कोई सुविचारित न्यायिक व्यवस्था नहीं है, लेकिन ऐसा लगता है कि जल्द ही इस संवेदनशील मुद्दे पर सुविचारित व्यवस्था मिल जायेगी।
यह संवेदनशील मामला अब शीर्ष अदालत पहुंच गया है जहां इससे जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दे विचार के लिए उसके सामने आ सकते हैं। इनमें सबसे पहला सवाल तो यही है कि क्या पत्नी से जबरन संबंध अपराध की श्रेणी में आता है या नहीं? यदि यह अपराध है तो ऐसे मामले में पति पर मुकदमा चलने पर संबंधित परिवार की क्या स्थिति होगी और क्या भविष्य में पति ऐसा आरोप लगाने वाली पत्नी के साथ रहेगा?
यही नहीं, भारतीय दंड संहिता के तहत दोषी पाये जाने पर पति को क्या सजा दी जाये, क्या ऐसे मामले में पति को जबरदस्ती के अपराध के जुर्म में सख्त सजा होनी चाहिए या इसके लिए अलग से कोई विशेष प्रावधान होना चाहिए? और ऐसी घटनाओं का वैवाहिक संस्था की स्थिति पर क्या असर पड़ेगा?
उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों ने वैवाहिक बलात्कार के अपराध के लिए सजा के बारे में सवाल किया तो महिलाओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कहा कि इसके लिए सजा की एक नीति होनी चाहिए। इन वरिष्ठ अधिवक्ताओं का कहना था कि इस अपवाद को चुनौती देने का मतलब वैवाहिक रिश्तों के चलते प्रत्येक व्यक्ति को सजा दिलाना नहीं है लेकिन यह उन मामलों में ही जबरदस्ती के अपराध के आरोप में कार्रवाई चाहती है, जिनमें पत्नी के एक बार ‘नहीं’ कहने का सम्मान नहीं किया जाता है।
महिलाओं के हितों की रक्षा करने का दावा कर रही अधिवक्ताओं का तर्क है कि उनका उद्देश्य पत्नी के साथ जबरन यौनाचार से पतियों को कानूनी कार्यवाही से मिली कानूनी छूट रद्द कराना है ताकि स्त्री को अपने शरीर की गरिमा की रक्षा का अधिकार मिल सके।
इस प्रावधान को निरस्त कराने के प्रयासों का विरोध कर रहे पुरुषों के संगठन की दलील है कि इस अपवाद को समाप्त करने से इसके दुरुपयोग की संभावनाएं बढ़ जायेंगी। पुरुषों के संगठन ‘मेन वेलफेयर ट्रस्ट’ के अध्यक्ष अमित लखानी धारा 375 के अपवाद-दो को खत्म को कराने के किसी भी प्रयास का विरोध कर रहे हैं। इस संगठन का तर्क है कि धारा 375 में प्रदत्त इस अपवाद से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ वैवाहिक संस्थाओं और अनेक वैवाहिक जिंदगियों को अपूरणीय नुकसान पहुंचा सकती है।
यही नहीं, इस अपवाद को समाप्त करने की स्थिति में पति-पत्नी की निजी जिंदगी में तीसरे पक्ष को अनावश्यक दखल देने का अवसर मिलने की आशंका बढ़ जायेगी जैसा कि धारा 498 ए के मामले में अक्सर देखा जा रहा है। इस धारा के दुरुपयोग को लेकर अनेक न्यायिक व्यवस्थाएं हैं। पुरुष संगठन का तर्क रहा है कि भारत में पत्नी को भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए, धारा 377 और धारा 376 बी में संरक्षण प्राप्त है। इसके अलावा उनके लिए महिलाओं को घरेलू हिंसा से संरक्षण कानून भी है, जिसके तहत वे दीवानी और आपराधिक कार्यवाही के जरिए राहत प्राप्त कर सकती हैं।
उच्चतम न्यायालय पहले ही पत्नी से जबरन यौनाचार करने वाले पति पर बलात्कार के आरोप में मुकदमा चलाने की अनुमति देने के कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ नोटिस जारी कर चुका है। हालांकि शीर्ष अदालत ने पति पर मुकदमा चलाने के आदेश पर रोक नहीं लगाई है।
उच्च न्यायालय ने वैवाहिक जबरदस्ती से संबंधित एक प्रकरण में पति के खिलाफ बलात्कार के अपराध की धारा 376 के तहत मुकदमा चलाने की इजाजत दी है। हालांकि उच्च न्यायालय ने इस मामले में धारा 375 के अपवाद दो के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है।
इस बीच, पत्नी से जबरन यौनाचार को बलात्कार नहीं मानने संबंधी भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद दो को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दिल्ली उच्च न्यायालय के खंडित निर्णय का मामला भी उच्चतम न्यायालय पहुंच गया है। इस खंडित फैसले में उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने धारा 375 के अपवाद दो को निरस्त कर दिया है जबकि पीठ के दूसरे सदस्य ने इस प्रावधान को बरकरार रखा है।
सवाल है कि अगर वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में शामिल किया जाता है तो इसके लिए किस तरह की सजा होगी? क्या ऐसे मामले में पति को बलात्कार के अपराध के जुर्म में सख्त सजा होनी चाहिए या इसके लिए अलग से कोई विशेष प्रावधान होना चाहिए?
कर्नाटक उच्च न्यायालय का कहना है कि पतियों को इस तरह का विशेषाधिकार संविधान के अनुच्छेद 14 में प्रदत्त समता के अधिकार का हनन करता है। दिल्ली उच्च न्यायालय में इस प्रकरण में न्याय मित्र रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राज शेखर राव का भी तर्क रहा है कि यह अपवाद महिलाओं को समता और गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है। ऐसी ही एक जनहित याचिका अभी गुजरात उच्च न्यायालय में भी लंबित है।
केंद्र सरकार ने इस अपवाद के बारे में उच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामे में कहा था कि धारा 375 सहित आपराधिक कानून में व्यापक संशोधन करने पर विचार किया जा रहा है। इस सवाल पर सभी हितधारकों के विचार जानने के बाद ही कोई अंतिम निर्णय लिया जायेगा।
लेकिन केंद्र ने इस सवाल पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया है कि पत्नी की मर्जी के बगैर उसके साथ यौनाचार को भी अब बलात्कार की श्रेणी में शामिल किया जाएगा या नहीं। इसमें संदेह नहीं कि इस संवेदनशील विषय पर उदार दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।