Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

सुरंगों के संजाल से जख्मी हिमालय

जयसिंह रावत पौराणिक नगरी जोशीमठ के धंसने के कारण तपोवन-विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना की सुरंग के चर्चा में आने के बाद चारधाम ऑल वेदर सड़क परियोजना की उत्तरकाशी स्थित सिलक्यारा परियोजना की सुरंग सुर्खियों में है। सुरंग के एक हिस्से...

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

जयसिंह रावत

पौराणिक नगरी जोशीमठ के धंसने के कारण तपोवन-विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना की सुरंग के चर्चा में आने के बाद चारधाम ऑल वेदर सड़क परियोजना की उत्तरकाशी स्थित सिलक्यारा परियोजना की सुरंग सुर्खियों में है। सुरंग के एक हिस्से के धंसने से वहां फंसे 41 मजदूरों की जान संकट में पड़ने के बाद एक बार फिर विश्व की सबसे युवा पर्वतमाला हिमालय में सुरंगों के निर्माण पर सवाल भी उठने लगे हैं। दरअसल, सुरंगों सहित भूमिगत निर्माण में इस तरह के हादसे नई बात नहीं है। अब तो सुरंगों के धंसने और निर्माणाधीन सुरंगों के ऊपर बसी बस्तियों के धंसने की शिकायतें आम हो गयी हैं। सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार उत्तराखंड के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर में इस वक्त पौने तीन लाख करोड़ रुपये की लागत की टनल बनाई जा रही हैं।

Advertisement

इसमें दो राय नहीं कि विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों वाले हिमालयी क्षेत्र की जनता को विकास भी चाहिए, तभी उनकी जिन्दगी की परेशानियां कम होंगी और बेहतर जीवन सुलभ होगा। हिमालयवासियों के लिए सड़कें भी चाहिए तो बिजली-पानी और अन्य आधुनिक सुविधाएं भी। लेकिन पहाड़ों पर सड़कें बनाना तो आसान है, मगर उन सड़कों के निर्माण से उत्पन्न परिस्थितियों से निपटना उतना आसान नहीं है। तेज ढलान के कारण पन बिजली उत्पादन के लिए हिमालयी क्षेत्रों को सबसे अनुकूल माना जाता है। इसीलिये नीति-नियन्ताओं और योजनाकारों की नजर हिमालय पर पड़ी है। पन बिजली पैदा करने के लिए ग्रेविटी या ढलान की आवश्यकता होती है। मकसद यही कि तेज धार या पानी की भौतिक ऊर्जा से पावर हाउस की टरबाइन चल सकें और फिर बिजली का उत्पादन हो सके। इसके लिए पहाड़ों से बहने वाली नदियां ही सबसे माकूल हैं। इन नदियों का वेग और भौतिक ऊर्जा बढ़ाने के लिए पानी को तेज ढलान वाली सुरंगों से गुजारा जाता है जिसके लिए पहाड़ी क्षेत्र ही सबसे अनुकूल होते हैं। मैदानी क्षेत्र में पानी के लिए इतनी ढाल या ग्रेविटी के लिए बहुत बड़ा क्षेत्र डुबोना होता है। इसलिये अब तक जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक पन बिजली के लिए योजनाकारों ने हिमालयी क्षेत्र को चिन्हित कर रखा है।

Advertisement

हिमालय पर सुरंगों का निर्माण शुरू से चर्चा का विषय रहा है। हिमालय के गर्भ को छलनी करने का समर्थन तो पर्यावरणविद‍् कर नहीं सकते मगर भूविज्ञानी भी इसमें संयम की सलाह अवश्य देते हैं। वर्तमान में हिमालय पर केवल बिजली परियोजनाओं के लिए नहीं बल्कि यातायात और अन्य गतिविधियों के लिए भी सुरंगों का निर्माण हो रहा है। पहले भूमिगत बिजलीघर बने, लेकिन अब तो पहाड़ी नगरों में ट्रैªफिक समस्या के समाधान के लिए भूमिगत पार्किंग भी बनने लगी हैं। राज्य गठन से पहले ही अकेले उत्तराखंड में चारधाम ऑल वेदर रोड और ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल परियोजना की सुरंगों के अलावा लगभग 750 किमी लम्बी सुरंगें विभन्न चरणों में थीं।

एनटीपीसी की लगभग 12 किमी लम्बी सुरंग को जोशीमठ के धंसने के लिए पर्यावरणविद‍् जिम्मेदार मानते रहे हैं। जोशीमठ के ही सामने चाईं गांव के धसने के लिए 300 मेगावाट की विष्णुप्रयाग परियोजना की 13 किमी लम्बी सुरंग पर उंगलियां उठती रही हैं। पेशे से इंजीनियर रहे भारत के दूरदृष्टा सिंचाई और ऊर्जा मंत्री रहे के.एल. राव द्वारा देश के जल संसाधनों का सन‍् 60 के दशक में व्यापक सर्वेक्षण कराया गया था। उसी सर्वेक्षण के आधार पर भाखड़ा नंगल बांध से लेकर टिहरी बांध जैसी परियोजनाएं शुरू हुई थीं। उसी के आधार पर चिन्हित परियोजनाएं आज विभिन्न चरणों में हैं, जिनमें कुछ हरित प्राधिकरण द्वारा रोकी भी गयी हैं। इनमें लगभग कुल 750 किमी लम्बी सुरंगें विभिन्न चरणों में हैं।

वाडिया इंस्टिट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के पूर्व निदेशक एनएस विरदी और एक अन्य भू-वैज्ञानिक एके महाजन के एक शोधपत्र के मुताबिक अकेले गंगा बेसिन की प्रस्तावित और निर्माणाधीन परियोजनाओं के लिए 150 किमी लंबी सुरंगें खुद रही हैं या खोदी जा चुकी हैं। प्रस्तावित परियोजनाओं में से विष्णुप्रयाग प्रोजेक्ट पर 12 किमी सुरंग चल रही है। भागीरथी पर बनने वाली परियोजनाओं में लोहारी नागपाला 13.6 किमी, पाला मनेरी 8.7 किमी व मनेरी भाली द्वितीय में 15.40 किमी लंबी सुरंग शामिल हैं। मनेरी भाली प्रथम में पहले ही 9 किमी लंबी सुरंग काम कर रही है।

पन बिजली की इन सुरंगों के अलावा ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना पर 105.47 किमी लम्बी 17 मुख्य सुरंगें बन रही हैं और 98.54 किमी लम्बी स्केप टनल सहित कुल 218 किमी लम्बी सुरंगें विभिन्न चरणों में हैं। दरअसल किसी भी परियोजना में केवल मुख्य सुरंग का ही उल्लेख आता है। जबकि उस मुख्य सुरंग को खोदने और उसका मलबा बाहर निकलने के लिए भी सुरंगें बनानी होती हैं, जिन्हें एडिट भी कहा जाता है। इसी प्रकार चारधाम आल वेदर रोड के लिए भी कुछ सुरंगें बन रही हैं, जिनके निर्माण के लिए भी अन्य सुरंगें बन रही हैं। इसलिये सवाल उठना लाजिमी है कि अगर हिमालय के कच्चे पहाड़ अन्दर से इस तरह छलनी कर दिये जायेंगे तो उसका पर्यावरणीय और अन्य व्यावहारिक असर क्या होगा।

ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल परियोजना की सुरंगों के निर्माण में भारी विस्फोटकों के कारण टिहरी, पौड़ी और रुद्रप्रयाग जिलों की कुछ बस्तियों में न केवल मकानों में दरारें आ गयीं बल्कि यहां स्थित सारी गांव में भवन तक ढह गये। अगर भविष्य में इस परियोजना को बदरीनाथ और केदारनाथ तक विस्तार देने का प्रयास होता है तो निश्चित तौर पर इतनी ऊंचाई तक रेल लाइन पहाड़ों के अन्दर ही बनायी जा सकती हैं।

क्षेत्र की विशिष्ट भूगर्भीय, भौगोलिक और पर्यावरणीय विशेषताओं के कारण हिमालय में सुरंग निर्माण से कई चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं। दरअसल, हिमालय जटिल भूगर्भीय संरचनाओं वाला एक भूकंपीय दृष्टि से सक्रिय क्षेत्र है, जिसमें विभिन्न प्रकार की चट्टानें, भ्रंश रेखाएं और अस्थिर भूभाग शामिल हैं। यहां कठिन चट्टानों, भूस्खलन और भूगर्भीय अस्थिरता के कारण सुरंग बनाने के लिए चुनौतियां पैदा होती हैं। निर्माण कार्य प्रायः अधिक ऊंचाई पर कठिन होता है। कम तापमान, ऑक्सीजन की कमी और कठिन पहुंच जैसी चुनौतियां निर्माण को कठिन बनाती हैं। कठोर चट्टानों में सुरंग बनाने, पानी के प्रवेश का प्रबंधन करने, वेंटिलेशन सुनिश्चित करने और खड़ी चट्टानों में स्थिरता बनाए रखने के लिए उन्नत इंजीनियरिंग तकनीकों और विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है। हिमालय में भूगर्भीय निर्माण गतिविधियां नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर व्यापक प्रभाव डाल सकती हैं। मसलन पारिस्थितिकी संतुलन, जल संसाधन और मानव बस्तियों पर प्रभाव डाल कर चिन्ता का विषय बनती हैं। जोखिमों को कम करने के लिए व्यापक योजना, भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, उन्नत तकनीक, सुरक्षा प्रोटोकॉल और कुशल जनशक्ति आवश्यक हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

Advertisement
×