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मनुष्य की उम्र बढ़ाने में शीतनिद्रा की मदद

यदि वैज्ञानिक शीत निद्रा के नियामक स्विचों की पहचान कर उनका उपयोग करें तो हम मनुष्यों को अत्यधिक चयापचय तनाव से उबरने, उम्र से संबंधित गिरावट को पलटने व पुरानी बीमारियों का इलाज करने में मदद कर सकते हैं। इससे...
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यदि वैज्ञानिक शीत निद्रा के नियामक स्विचों की पहचान कर उनका उपयोग करें तो हम मनुष्यों को अत्यधिक चयापचय तनाव से उबरने, उम्र से संबंधित गिरावट को पलटने व पुरानी बीमारियों का इलाज करने में मदद कर सकते हैं। इससे उम्र से संबंधित बीमारियों में हस्तक्षेप और मदद करने की रणनीतियां खोजी जा सकती है।

वैज्ञानिक काफी लंबे समय से जानवरों में शीतनिद्रा की खूबियों का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने पता लगाया है कि शीतनिद्रा के जीन मनुष्यों में भी छिपे हुए हैं। ध्यान रहे कि भालू और चमगादड़ जैसे कुछ जीव-जंतु सर्दियों में दीर्घकालीन गहरी निद्रा में चले जाते हैं। इस अवस्था में उनकी शारीरिक क्रियाएं न्यूनतम स्तर पर होती हैं। ये कई महीनों तक बिना भोजन या पानी के जीवित रहते हैं। उनकी मांसपेशियां मजबूत रहती हैं। उनके शरीर का तापमान लगभग शून्य हो जाता है। ये जानवर अपनी दिल की धड़कन को कम कम कर सकते हैं। ऊर्जा के लिए वे अपने शरीर के जमा वसा के भंडारों का उपयोग करते हैं। इस अवस्था को शीतनिद्रा अथवा हाइबरनेशन कहा जाता है।

तकनीकी दृष्टि से शीतनिद्रा एक ऐसी अवस्था है जब शरीर का चयापचय (मेटाबॉलिज्म) धीमा हो जाता है। दूसरे शब्दों में शरीर को जीवित रखने वाली तमाम आंतरिक रासायनिक क्रियाएं धीमी हो जाती हैं। कोई जानवर कब धीमी शारीरिक गतिविधि की अवस्था में प्रवेश करेगा और कितने समय तक उस अवस्था में रहेगा,यह अलग-अलग जानवरों की जरूरतों पर निर्भर है। कुछ जानवर साल के कई महीनों तक शिथिल अवस्था में रहते हैं जबकि कुछ अन्य जानवर कुछ महीनों की अवधि में सिर्फ कुछ घंटों के लिए इस अवस्था में प्रवेश करते हैं। इन परिवर्तनों के बावजूद शीतनिद्रा में लीन जानवर स्वस्थ रहते हैं। वे उन स्थितियों से उबर जाते हैं जो अल्जाइमर,स्ट्रोक या डायबिटीज जैसी मनुष्य की बीमारियों से मेल खाती हैं।

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अब शोधकर्ताओं का मानना है कि मनुष्यों में भी यह क्षमता हो सकती है। उनका कहना है कि शीतनिद्रा को बढ़ावा देने वाले जीन मानव डीएनए में मौजूद हो सकते हैं। ये आनुवंशिक लक्षण,जिन्हें शीतनिद्रा में रहने वाले जानवरों के लिए विशिष्ट माना जाता है, हमारे भीतर निष्क्रिय अवस्था में हो सकते हैं। साइंस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार इन जीनों को समझने और उन्हें जानने से चयापचय संबंधी रोगों और स्नायु विकारों का उपचार हो सकता है। शीतनिद्रा में रहने वाले जंतु विशेष जीन का उपयोग कैसे करते हैं,यह पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने वसा द्रव्यमान और मोटापे से जुड़े एक जीन समूह पर ध्यान केंद्रित किया। शीतनिद्रा में रहने वाले जानवर सर्दियों के दौरान वसा भंडारण और ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए इसका उपयोग करते हैं।

यूटा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक के डॉ. क्रिस ग्रेग ने बताया कि इस जीन समूह की सबसे खास बात यह है कि यह आनुवंशिक दृष्टि से मानव मोटापे का सबसे प्रबल रिस्क फैक्टर है। शोधकर्ताओं को आसपास के डीएनए क्षेत्र मिले जिनका उपयोग शीतनिद्रा में रहने वाले जानवर जीन की गतिविधि को चालू या बंद करने के लिए करते हैं। ये नियंत्रण स्वयं जीन को नहीं बदलते। बल्कि ये जीन के व्यवहार को नियंत्रित करते हैं,ठीक उसी तरह जैसे किसी ऑर्केस्ट्रा में ध्वनि को नियंत्रित किया जाता है।

ये क्षेत्र शीतनिद्रा में रहने वालों को सर्दियों से पहले वजन बढ़ाने और सोते समय वसा को कुशलतापूर्वक जलाने में मदद करते हैं। शोधकर्ताओं ने इन डीएनए क्षेत्रों को चूहों में प्रविष्ट किया। परिणाम स्पष्ट थे। कुछ चूहों का वजन आहार के आधार पर बढ़ा या घटा। अन्य चूहों के शरीर के समग्र चयापचय में परिवर्तन देखा गया।अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता सुसन स्टीनवांड ने बताया, जब आप इनमें से किसी एक तत्व को नष्ट कर देते हैं,तो सैकड़ों जीनों की गतिविधि बदल जाती है। शीतनिद्रा में रहने वाले जीन वसा और ऊर्जा को नियंत्रित करते हैं। ये डीएनए नियामक नए जीन नहीं बनाते। इसके बजाय, वे उन अवरोधों को हटाते हैं जो चयापचय में लचीलेपन को सीमित करते हैं। शीतनिद्रा में रहने वाले जानवर शायद कुछ बाधाओं को दूर करने के लिए विकसित हुए होंगे। इससे वे सक्रिय और निष्क्रिय अवस्थाओं के बीच आसानी से बदलाव कर सकते हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हम अपने जीन को शीतनिद्रा में रहने वालों की तरह थोड़ा और नियंत्रित कर सकें, तो शायद हम टाइप 2 डायबिटीज पर उसी तरह काबू पा सकते हैं जिस तरह शीतनिद्रा में रहने वाला जानवर शीतनिद्रा से सामान्य चयापचय अवस्था में वापस लौटता है। हमारे और शीतनिद्रा में रहने वाले जानवरों के बीच मुख्य अंतर शायद यह है कि हम एक ही जीन समूह को कैसे नियंत्रित करते हैं। यह अंतर्दृष्टि इस संभावना को जन्म देती है कि मनुष्य किसी दिन अपने चयापचय को इसी तरह समायोजित कर सकते हैं। शीतनिद्रा ने समय के साथ जीनों को बदल दिया है।इन आनुवंशिक सुरागों को खोजने के लिए शोधकर्ताओं ने कई उन्नत विधियों का उपयोग किया। उन्होंने सबसे पहले उन डीएनए क्षेत्रों की खोज की जो अधिकांश स्तनधारियों में 10 करोड़ से अधिक वर्षों तक स्थिर रहे, लेकिन शीतनिद्रा में रहने वाली प्रजातियों ने हाल ही में नाटकीय परिवर्तन दिखाए। लंबे समय से संरक्षित डीएनए में इस तरह के अचानक बदलाव शीतनिद्रा व्यवहार के विशिष्ट अनुकूलन का संकेत देते हैं। इसके बाद शोधकर्ताओं ने उपवास करने वाले चूहों का अध्ययन किया। उपवास शीतनिद्रा में देखी जाने वाली कुछ जैविक स्थितियों को दर्शाता है, जिनमें कम ऊर्जा सेवन और धीमा चयापचय शामिल है। यह जीन गतिविधि के एक जटिल क्रम को सक्रिय करता है। टीम ने पता लगाया कि इस अवधि के दौरान कौन से जीन चालू या बंद हुए। उन्होंने व्यापक जीन नेटवर्क को नियंत्रित करने वाले ‘हब’ जीन की पहचान की।

दिलचस्प बात यह है कि शीतनिद्रा में कई परिवर्तित क्षेत्र इन हब जीन के पास स्थित थे। यह संकेत देते हैं कि विकासवादी परिवर्तनों ने शीतनिद्रा को सहारा देने के लिए जीन नियंत्रण स्विच को संशोधित किया होगा। ये स्विच चयापचय और तंत्रिका संबंधी कार्यों के समन्वय के लिए महत्वपूर्ण प्रतीत होते हैं। वैज्ञानिक अब इन नियामक तत्वों को भविष्य के आनुवंशिक और चिकित्सा अनुसंधान के लिए प्रमुख लक्ष्य मानते हैं। शोधकर्ता स्टीनवांड ने बताया कि मनुष्यों में पहले से ही आनुवंशिक ढांचा मौजूद है। हमें बस शीतनिद्रा के इन लक्षणों के लिए नियंत्रण स्विच की पहचान करने की आवश्यकता है। ये निष्कर्ष भविष्य की चिकित्सा संभावनाओं की ओर इशारा करते हैं। अगर हम इन नियामक स्विचों की पहचान कर उनका उपयोग कर सकें, तो हम मनुष्यों को अत्यधिक चयापचय तनाव से उबरने, उम्र से संबंधित गिरावट को पलटने या पुरानी बीमारियों का इलाज करने में मदद कर सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जीन समूह में इन हाइबरनेशन-संबंधी तंत्रों को समझकर उम्र से संबंधित बीमारियों में हस्तक्षेप करने और उनकी मदद करने की रणनीतियां खोजने का अवसर मिल सकता है। अगर यह हमारे पहले से मौजूद जीन समूह में छिपा है,तो हम अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के तरीके शीतनिद्रा वाले जानवरों से सीख सकते हैं।

लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

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