अरुण नैथानी
आखिर हार्दिक पटेल बीजेपी के हो ही गये। बृहस्पतिवार को उन्होंने भाजपा की टोपी पहनकर पार्टी सदस्यता ले ली। एक समय पाटीदार आंदोलन के जरिये भाजपा व सरकार को हिलाने वाले हार्दिक ने पिछले माह 18 मई को कांग्रेस व राज्य के कार्यकारी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था। फिर महज दो हफ्ते में ही भाजपा ज्वाइन कर ली। गुजरात की राजनीति के युवा तुर्क कहे जाने वाले हार्दिक के भाजपा में शामिल होने से पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने भी राहत की सांस ली होगी। वैसे भी प्रधानमंत्री के गृहराज्य में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। लेकिन यह चिंता पार्टी नेतृत्व को जरूर रही होगी कि गुजरात में पांव जमाने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी कांग्रेस से नाराज चल रहे हार्दिक पटेल को अपने पाले में शामिल न कर ले। गुजरात में पाटीदार समाज से आने वाले हार्दिक पटेल की बिरादरी राज्य में खास प्रभाव रखती है। इस बिरादरी के राज्य में चार मुख्यमंत्री रहे हैं और इसकी उपस्थिति 14 फीसदी बतायी जाती है जो राज्य की 39 विधान सभा सीटों को प्रभावित करती है।
भाजपा से बेहद तल्ख रिश्तों के बाद हार्दिक का पार्टी में शामिल होना चौंकाता जरूर है, लेकिन राजनीति में सबकुछ जायज है। इसी भाजपा के खिलाफ पाटीदार समाज के लिये आरक्षण का आंदोलन खड़ा करके ही हार्दिक बड़े नेता बने थे। बीजेपी की राज्य सरकार के दौरान उन पर राष्ट्रद्रोह व चार दर्जन से अधिक मुकदमे दर्ज हुए। वे नौ माह जेल में रहे और छह महीने राज्य से बाहर भी रहे। तभी सवाल उठाया जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व के फैसले से भाजपा में शामिल हुए हार्दिक को पार्टी का राज्य नेतृत्व दिल से स्वीकार करेगा?
हार्दिक के भाजपा में शामिल होने के कारणों पर नये सिरे से चर्चा हो रही है। कुछ जानकर मानते हैं कि उन पर दर्ज दर्जनों मुकदमों से बचने के लिये ही हार्दिक भाजपा में शामिल हुए हैं। वैसे 28 साल के हार्दिक अभी तक विधायक व सांसद का चुनाव नहीं लड़ सके। ऐसा उनको कुछ मुकदमों में होने वाली सजा के चलते हुआ, हालांकि बाद में उन्हें अदालत ने चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी थी। दरअसल, हार्दिक को राज्य में भाजपा के खिलाफ खड़े किये गये पाटीदार आंदोलन में कांग्रेस का चेहरा बताया जाता है। यही वजह है कि 2015 के पाटीदार आंदोलन के बाद हुए विधानसभा व निकाय चुनावों में कांग्रेस को खासी बढ़त मिली। कहा जाता है कि हार्दिक पाटीदार समुदाय के दो धड़ों को एक मंच पर लाने में सफल रहे थे। तभी इस बड़े वोट बैंक को भाजपा नेतृत्व खोना नहीं चाहता। वैसे भी गुजरात से आने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गृह राज्य में किसी भी तरह का राजनीतिक जोखिम नहीं लेना चाहते। राज्य में भाजपा को होने वाले नुकसान का पूरे देश में नकारात्मक राजनीतिक संदेश जा सकता है। तभी भाजपा गुजरात के मामले में ज्यादा सतर्क है।
बहरहाल, पाटीदार आंदोलन के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा व गुजरात सरकार को सकते में डालने वाले व एक मुख्यमंत्री को हटवाने वाले हार्दिक पटेल अब भाजपा के हैं। वैसे वर्ष 2019 में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन करने से लेकर 2020 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने तक उन्हें पार्टी के भीतर वे अधिकार व सम्मान नहीं मिला, जिसकी आस में वे पार्टी में शामिल हुए थे। बताया जा रहा है कि दमदार पाटीदार नेता नरेश पटेल के कांग्रेस में शामिल होने की चर्चाओं के बीच हार्दिक ने भाजपा में जाने का मन बनाया। राजनीतिक पंडित कह रहे हैं कि हार्दिक के पास भाजपा में जाने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं था। उनके सामने तीन ही विकल्प थे जेल, बेल और भाजपा। महत्वाकांक्षी हार्दिक की इच्छाएं भाजपा में जाने के बाद किस हद तक पूरी होंगी, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। बहरहाल, ढाई दशक से सत्ता का वनवास भोग रही कांग्रेस को दमदार पाटीदार नेता हार्दिक के जाने से झटका जरूर लगा होगा, क्योंकि गुजरात की राजनीति में चौदह फीसदी पाटीदार समुदाय निर्णायक भूमिका निभाता है। वैसे राजनीतिक पंडित मानते हैं कि भाजपा में हार्दिक को कोई बड़ी भूमिका शायद ही मिले, वे कालांतर पार्टी के समुद्र में अपनी ऊर्जा व महत्वाकांक्षा का विलय कर देंगे। बहरहाल, भाजपा ने यह संदेश तो देने की कोशिश की है कि वह अपने कट्टर विरोधी को भी अपने साथ लाने का दमखम रखती है। वहीं कुछ राजनीतिक विचारक आशंका जता रहे हैं कि हार्दिक का यह फैसला राजनीतिक आत्मघात जैसा है और वे कालांतर भाजपा में समाहित हो जायेंगे। बहरहाल, हार्दिक पटेल जैसे फायरब्रांड नेता को इस बात का श्रेय दिया जाना होगा कि महज काॅलेज से निकले एक विद्यार्थी ने लंबे समय तक गुजरात की राजनीति को प्रभावित करने का दमखम दिखाया और राष्ट्रीय राजनीति में अलग पहचान बनाई।