सुखद यात्रा और अपने गीत
कविता रावत
हर दिन एक ही ढर्रे के बीच झूलती जिंदगी से जब मन ऊबने लगता है तो महापंडित राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तांत ‘अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा’ पाठ में पढ़ी पंक्तियां याद आ जाती हैं— 'सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहां…।’ ऐसी ही एक कोशिश काठमांडू की यात्रा की रही। बचपन में जब गांव की पहाड़ी घाटियों के ऊपर से तेज गड़गड़ाहट के साथ आसमान में कोई हवाई जहाज अपनी ओर ध्यान खींचता था तो बालमन उसके साथ ही उड़ान भरने लगता था। खैर, तैयारी हो गयी जाने की। पहाड़ों में सूरज की किरणों से बादल और बर्फ को चांदी-सा चमकता देख मैं बरबस ही पहाड़ी लोकगीत याद आने लगा, जिसे गुनगुनाये बिना नहीं रह सकी… चम चमकी घाम डांडियों मा, हिंवली कांठी चांदी की बनी गै... शिव का कैलाशु गाई पैली-पैली घाम, सेवा लगाणु आयी बद्री का धाम... सर्र फैली घाम डांडियों मा, पौण पंछी डाली बोटि भिजी गैनी।
यूं ही गुनगुनाते और प्राकृतिक नज़ारों में डूबकर कब यात्रा पूरी करके हम अपनी मंजिल काठमांडू पहुंच गए। सबसे पहले पशुपतिनाथ मंदिर गए। ऐतिहासिक भव्य भगवान पशुपतिनाथ मंदिर के दर्शन कर मन ख़ुशी से झूम उठा। मंदिर दर्शन के उपरांत मंदिर के ठीक पीछे बागमती नदी जिसे मोक्षदायिनी भी माना जाता है, में जीवन की अंतिम लीलाओं की गतिविधियां में व्यस्त लोगों को देख नश्वर जीवन के भी दर्शन हुए, जो शांत बहती बागमती नदी की तरह मन में बहुत देर तक अन्दर ही अन्दर उथल-पुथल मचाती रही। काठमांडू को करीब से देखने की लालसा के चलते हम भीमसेन टॉवर जो कि नौ मंजिला है, की 113 सर्पिल सीढ़ियों पर कदमताल कर टॉवर पर जा पहुंचे। प्राचीन पवित्र बौद्ध तीर्थ स्थल का दर्शन कर मन को बहुत शांति मिली।
काठमांडू शहर के आस-पास के इलाके छानने के बाद हम काठमांडू से 200 किमी की लम्बी बस यात्रा उपरांत प्राकृतिक खूबसूरती के लिए मशहूर पोखरा जा पहुंचे। सुन्दर अवर्णनीय प्राकृतिक दृश्यों में डूबकर लगा काश समय यहीं थम जाता। लेकिन समय किसी के लिए कहां रुकता है। अब तो फिर जिंदगी उसी ढर्रे पर फिर चल पड़ी है, घर-दफ्तर के काम से फुर्सत नहीं।
साभार : कविता रावत डॉट कॉम