गुरु तेग बहादुर जी का 350वां शहीदी दिवस उनके अद्वितीय बलिदान और मानवता के प्रति समर्पण की याद दिलाता है। उनका योगदान आज भी हमें धर्म, सत्य और स्वतंत्रता के संघर्ष में प्रेरित करता है, जो कालजयी और अमर है।
भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर में यदि किसी व्यक्तित्व की उपस्थिति सदियों से अडिग, उज्ज्वल और अमर रही है, तो वे हैं श्री गुरु तेग बहादुर जी, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी मानवता के सच्चे रक्षक, अत्याचार के विरुद्ध अदम्य साहस के प्रतीक और धार्मिक स्वतंत्रता के महान संरक्षक के रूप में जाने जाते हैं। उनका बलिदान केवल एक समुदाय या क्षेत्र के लिए नहीं था, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए था। ऐसा बलिदान, जिसने भारत की आध्यात्मिक आत्मा को सुरक्षित रखा और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के सिद्धांत को जीवंत किया।
श्री गुरु तेग बहादुर के बचपन का नाम त्यागमल था। वे छठे पातशाह श्री गुरु हरगोबिंद साहिब व माता नानकी जी की संतान थे। इनका जन्म 1 अप्रैल, 1621 ई. को अमृतसर में हुआ। प्रचलित धारणा है कि जब भी मानवता पर घोर अत्याचार होता है, तब मानवता की रक्षा और धर्म की स्थापना के लिए, किसी महापुरुष का आगमन होता है। गुरु जी के जन्म के समय, हिन्दुस्तान पर मुगल बादशाह औरंगजेब का राज था जिसका मंसूबा पूरे भारत का इस्लामीकरण करना था।
धर्म परिवर्तन के लिए औरंगजेब द्वारा जारी अत्याचार से सताए हुए तत्कालीन हिंदू नेता पंडित कृपा राम जी कश्मीर से अपने साथियों के साथ आनंदपुर साहिब (पंजाब) में गुरु तेग बहादुर के पास पहुंचे। उन्होंने गुरु जी से औरंगजेब के जुल्म को रोकने तथा धर्म की रक्षा करने की विनती की।
गुरु जी ने उनकी फरियाद सुनकर कहा कि ऐसे अत्याचारों को रोकने के लिए, किसी महापुरुष को बलिदान देना होगा। उस समय बालक गोबिंद राय ने पूरी वार्ता सुनकर अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी से कहा कि, आप जी से बड़ा कोई महापुरुष नहीं है। इसलिए बलिदान आपको ही देना चाहिए। यह सुनकर, गुरु जी ने फरियादियों से कहा कि जाओ, औरंगज़ेब को कह दो, कि यदि गुरु तेग बहादुर जी धर्म परिवर्तन कर लेंगे, तो पूरा भारत इस्लाम कबूल कर लेगा। यह संदेश जब औरंगज़ेब को मिला तो उसने गुरु जी को दिल्ली दरबार में उपस्थित होकर इस्लाम कबूल करने को कहा। तब गुरु जी ने दृढ़तापूर्वक फ़तवा मंजूर करने से इनकार कर दिया। बादशाह ने अपनी अवज्ञा का परिणाम मृत्यु के रूप में कबूलने के लिए कहा। स़ज़ा की तारीख 11 नवंबर, 1675 तय करके चांदनी चौक, दिल्ली में गुरु जी के साथ गए तीन श्रद्धालुओं - भाई दयाला जी, भाई सती दास जी और भाई मती दास जी को क्रमशः देग में उबाला, जलाया और आरे से चीरकर शहीद कर दिया। इसके बाद भी जब गुरु तेग बहादुर घबराए नहीं, बल्कि दृढ़ रहे, तब गुरु जी का शीश भी धड़ से अलग कर दिया। भाई जैता जी वहां से उनका शीश लेकर पंजाब के लिए चल दिये।
भाई जैता जी को दिल्ली से आते हुए, गांव गढ़ी कुशाला (बढ खालसा) सोनीपत में, शीश सहित मुगल फौज ने घेर लिया। इस गांव के, गुरु घर के सेवक भाई कुशाल सिंह दहिया ने अपने शीश को पुत्र के जरिये फौज के हवाले कर दिया और फिर भाई जैता जी फौज को चकमा दे कर, शीश सहित तरावड़ी, अम्बाला से होते हुए श्री आनंदपुर साहिब पहुंचे। उनके शीश को आनंदपुर साहिब पहुंचाने के लिए भाई जैता जी ने सेवा निभाई। पवित्र शरीर का दाह संस्कार लक्खी शाह वंजारा, जो उस समय व िश्व के अमीर लोगों में शामिल थे, ने अपने गांव रायसिना (दिल्ली) में अपने घर में रखकर किया था।
गर्व की बात है कि हमारा हिंदुस्तान गुरुओं, संतांे, महापुरुषों, फकीरों का देश है। यहीं हरियाणा प्रदेश में कुरुक्षेत्र की धरती पर अधर्म के विरुद्ध धर्म की रक्षा के लिए महाभारत का युद्ध हुआ एवं भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया। हरियाणा सरकार की ओर से संत-महापुरुष सम्मान एवं विचार प्रसार योजना के अंतर्गत श्री गुरु नानक देव, गुरु तेग बहादुर जी, गुरु गोबिन्द सिंह जी, बाबा बंदा सिंह बहादुर, धन्ना भगत, संत कबीर और संत रविदास आदि संतों व महापुरुषों के जीवन-चिंतन प्रचार-प्रसार के लिए कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। हरियाणा के लोगों में गुरु तेग बहादुर के प्रति श्रद्धा ही है कि यहां उनकी याद में करीब 28 गुरुद्वारा साहिब हैं। इसीलिए हरियाणा सरकार ने श्री गुरु तेग बहादुर जी का 350वां शहादत समागम ज्योतिसर (कुरुक्षेत्र) में मनाने का फैसला लिया। गुरु तेग बहादुर जी के इस 350वें शहीदी दिवस के समागम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 25 नवंबर, 2025 को भागीदारी होगी। पूरे प्रदेश में चार शोभा यात्राओं में गुरु ग्रंथ साहिब की अगुवाई में लाखों की संख्या में संगत कुरुक्षेत्र पहुंची है।
पहली नवम्बर से 25 नवम्बर, 2025 तक हरियाणा में गुरु साहिब की स्मृति में अनेक आयोजन किए हैं जोकि जन-सहभागिता और आध्यात्मिक एकता की अनोखी मिसाल बने हैं। राज्यभर में से श्रद्धा यात्राएं निकाली गई हैं । प्रदेश के गांव-गांव में कीर्तन, भजन, सत्संग और गुरु साहिब जी की बाणी का पाठ किया गया। हरियाणा में सिरसा स्थित चौधरी देवीलाल विवि में ‘गुरु तेग बहादुर चेयर’ की स्थापना व अंबाला के पॉलिटेक्निक कॉलेज का नाम गुरु तेग बहादुर जी के नाम पर रखने का प्रस्ताव स्वीकृत किया गया है। टोहाना-जींद-नरवाना मार्ग को गुरु तेग बहादुर मार्ग नाम दिया जा रहा है। कलेसर क्षेत्र में गुरु तेग बहादुर वन विकसित किया जा रहा है। यमुनानगर के किशनपुरा में जी.टी.बी. कृषि महाविद्यालय की स्थापना भी प्रस्तावित है। इनका मकसद गुरु तेग बहादुर के त्याग, बलिदान और मानवता के संदेश को भावी पीढ़ियों तक पहुंचाना है।
गुरु साहिब जी के संदेश आज भी हमारे दिलों में उतने ही प्रभावशाली हैं, जितने 350 वर्ष पहले थे। उनकी अमर वाणी और अद्वितीय बलिदान हमें तथा आने वाली पीढ़ियों को सदा प्रेरित करता रहेगा। गुरु जी की शहादत संबंधी, गुरु परंपरा के समकालीन कवि ‘सेनापति’ ने अति सुंदर कहा है—
‘प्रगट भयो गुरु तेग बहादर, सकल सृष्ट पै ढापी चादर’।

