शमीम शर्मा
इस दिवाली पर आमतौर पर सभी को अहसास हुआ कि अब घरों का निर्माण करते समय बरसों से बने आ रहे मकानों के नक्शे पर पुनर्विचार करना होगा। आर्किटेक्ट भी अब कुछ नया सोचने पर बाध्य होंगे क्योंकि ड्राइंग रूम की अब कोई उपयोगिता नहीं रह गई है। वहां रखे आलीशान सोफे-कुर्सियाें की डस्टिंग का काम बढ़ा हुआ है, बैठने वाला कोई नहीं है। दिवाली ने हमें अच्छी तरह समझा दिया है कि नगरों के बेशकीमती प्लाटों पर मकान बनाते समय ड्राइंग रूम बनाने की कोई जरूरत नहीं है।
ड्राइंग रूम वह जगह होती है जहां मेहमान आकर बैठते हैं। पहले इसी जगह को बैठक कहा जाता था क्योंकि वहां बैठकें हुआ करतीं, ठहाके-हुक्के चला करते। चाय के दौर पर दौर चला करते। अब तो न किसी ने आना और न ही हमें कहीं जाना। मान न मान मैं तेरा मेहमान वाली कहावत तो अब पानी भरने चली गई है। कोई भूला-भटका मेहमान आ जाये तो उसे सब इस निगाह से देखते हैं, मानो उसने कोई अपराध कर दिया हो।
दिवाली के मौके पर उपहार हाथों में लिये जिन ड्राइंग रूमों में आने वालों का तांता लगा करता था, इस बार वहां सन्नाटा पसरा था। कोरोना के भय ने आर-जार पर पूरा नियंत्रण कर रखा है। कोई बहुत मजबूरी में ही किसी के यहां जा रहा है। वैसे इन महीनों में चाय-चीनी-बिस्कुटों का खर्चा आधे से भी कम हो गया है। गप्पबाजी भी अब बीते दिनों की बात हो गई है। जब कोई आता-जाता ही नहीं तो बतियाना तो बीते दिनों की बात हो जायेगा। पता नहीं इन दिनों कितने किस्से, जुमले, लतीफे हमारे भीतर ही दफन हो रहे हैं।
दिवाली पर इस बार देश प्रेम की लहर भी देखने को मिली। लोग सोशल मीडिया पर चाइनीज़ आइटमों के बहिष्कार की लगातार अपीलें करते दिखे। लोगों ने स्वदेशी दीये खूब खरीदे। चीनी लाइटों का बहिष्कार किया। इतना ही नहीं, कुछ कट्टर देशप्रेमियों ने तो अपने चीनी के डिब्बों पर लिखा चीनी शब्द हटाकर ‘खांड’ लिख दिया।
पटाखे न चलाने की फरियाद तो हर दिवाली पर होती आ रही है पर इस बार कुछ ज्यादा ही थी। लोगों ने यहां तक प्रचार किया कि चाइनीज पटाखे हरगिज़ न लें, वे ज़हरीले हैं। इस पर किसी ने सवाल उठाया कि भारतीय पटाखों में क्या अमृत घुला हुआ है।
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एक बर की बात है अक ताऊ सुरजा अर ताई रामप्यारी मैं कसूते जूत बाजगे। चार दिन हो लिये बिणा बोल्ले। ताऊ बोल्या—आं ए तै बिना बोल्ले क्युंकर रह ले है? ताई मचलती होई सी बोल्ली—फेर मनाता क्यूं नीं? ताऊ बोल्या—मनाण नै के तू दिवाली है?