बढ़ते जोखिमों के बीच विकास दर अनुमान में बढ़ोतरी
अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने भी भारत को लेकर अपने अनुमान को 6.4 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया है। लिहाजा, 2025 में भारत सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहेगा। हालांकि, अमेरिका, यूरोपियन देशों और उभरते बाजारों की...
अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने भी भारत को लेकर अपने अनुमान को 6.4 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया है। लिहाजा, 2025 में भारत सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहेगा। हालांकि, अमेरिका, यूरोपियन देशों और उभरते बाजारों की वृद्धि भी, विभिन्न कारणों से, तेज़ होने की उम्मीद है।
भारतीय रिज़र्व बैंक ने हाल ही में भारत के अपने सकल घरेलू उत्पाद विकास दर अनुमान को 30 आधार अंकों की वृद्धि देते हुए, चालू वित्त वर्ष के लिए 6.8 प्रतिशत बताया है। इसके बाद, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने भी भारत को लेकर अपने अनुमान को 6.4 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया है। लिहाजा, 2025 में भारत सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहेगा। हालांकि, अमेरिका, यूरोपियन देशों और उभरते बाजारों की वृद्धि भी, विभिन्न कारणों से, तेज़ होने की उम्मीद है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उच्च टैरिफ और भू-राजनीतिक अनिश्चितताएं लगातार बने रहने के बावजूद वैश्विक आर्थिक गतिविधियां लचीलापन लिए हैं।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और उससे जुड़ी तकनीकों और बुनियादी ढांचा विकास, खासकर डेटा केंद्रों में निवेश से चालित है। इससे घरेलू स्तर पर और यूरोप एवं एशिया में भी, डेटा केंद्रों के निर्माण और अन्य आवश्यक इनपुट की मांग बढ़ी है। एसएंडपी ग्लोबल के अनुसार, 2025 में अमेरिका की अनुमानित 1.9 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि का लगभग आधा हिस्सा ऐसे निवेशों से आएगा। हालांकि कुछ लोग कृत्रिम बुद्धिमत्ता क्षेत्र में निवेश को जोखिम भरा मानते हैं।
उभरते बाजारों और एशिया में, विकास दो अलग-अलग चरण में होने की उम्मीद है। वर्ष की पहली छमाही में अमेरिका को निर्यात में तेज़ी आने से लाभ हुआ, जिससे दूसरी छमाही में लागू होने वाली उच्च टैरिफ के असर से बचा जा सका। हो सकता है टैरिफ में और बढ़ोतरी से यह प्रवृत्ति वर्ष के उत्तरार्ध में जारी न रहे।
एशिया में सबसे ज़्यादा अमेरिकी टैरिफ का सामना भारत को करना पड़ा रहा है। हालांकि फार्मास्यूटिकल्स और स्मार्टफोन जैसे क्षेत्र को, जो अमेरिका को होने वाले भारत के कुल निर्यात का एक-चौथाई हिस्सा हैं, टैरिफ से छूट दे रखी है, लेकिन व्यापार समझौते के अभाव में वर्ष की दूसरी छमाही में टैरिफ में और वृद्धि होने की उम्मीद है। इस सबके बावजूद, भारत की विकास दर के पूर्वानुमान को बढ़ा दिया गया है। ऐसा क्यों?
चालू वित्त वर्ष की शुरुआत मज़बूत रही और पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर बढ़कर 7.8 प्रतिशत हो गई, जो उम्मीदों से ज़्यादा रही। इसके पीछे की वजह निजी खपत में बढ़ोतरी, सरकारी पूंजीगत व्यय और सेवा क्षेत्र में हुई वृद्धि रही और इसने पूर्वानुमानों में बढ़ोतरी की।
देश के नियंत्रण से बाहर, लेकिन महत्वपूर्ण आर्थिक निहितार्थ वाले कारक काफी हद तक अनुकूल रहे हैं। कच्चे तेल की कीमतें पिछले वित्त वर्ष में 78.9 डॉलर प्रति बैरल से घटकर इस वित्तीय वर्ष में औसतन 64 डॉलर प्रति बैरल रहने की उम्मीद है। कच्चे तेल की कम कीमतें मुद्रास्फीति और चालू खाता घाटे (सीएडी) को नियंत्रण में रखने में मदद करती हैं, जिससे विकास को बढ़ावा मिलता है।
कैलेंडर वर्ष 2024 और 2025 में मानसून की बारिश सामान्य से अधिक और लंबी चली, और देश में अखिल भारतीय वर्षा स्तर के औसत से 8 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। हालांकि, वर्षा वितरण विकृत रहा और अत्यधिक वर्षा भुगतने वाले इलाकों की संख्या 2025 में दोगुनी हो गई। जहां पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और तेलंगाना में फसल को भारी नुकसान हुआ है वहीं अन्य क्षेत्रों में खेती के अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद है। इसके अतिरिक्त, चावल और गेहूं का आपातकालीन भंडार, अनाज भंडारण मानकों से ऊपर बना हुआ है। सर्दियों की फसलों, जिन्हें ज्यादातर सिंचाई की जरूरत पड़ती हैं, कोे बेहतर हुए भूजल और जलाशय स्तर से लाभ मिलने की उम्मीद है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन को बाहरी स्वस्थ संकेतकों और मज़बूत बैलेंस शीट का साथ मिला हुआ है। चालू खाता घाटा (सीएडी) कम है और पूरे वित्त वर्ष के लिए जीडीपी के 1 प्रतिशत से नीचे रहने की उम्मीद है। अस्थिर पूंजी प्रवाह वाले आज के अनिश्चितता भरे वातावरण में कम सीएडी का वित्तपोषण चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हाल के महीनों में, भारत ने विशुद्ध पूंजी निर्मगन का अनुभव किया है। हालांकि, एक स्वस्थ विदेशी मुद्रा भंडार के साथ कम सीएडी का अर्थ है कि भारत अपने वित्तपोषण के लिए विदेशी प्रवाह पर निर्भर नहीं है।
भारत के निर्यात का लगभग आधा हिस्सा सेवा क्षेत्र की बदौलत है, जो नई अमेरिकी टैरिफ व्यवस्था से वस्तु व्यापार पर पड़ने वाले असर की तुलना में कम प्रभावित रहा है। इस वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में, सेवा क्षेत्र निर्यात में 10.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो वस्तु निर्यात में 3.9 प्रतिशत की वृद्धि से कहीं अधिक रहा।
बड़े और मध्यम आकार के निगमों की बैलेंस शीट मज़बूत हैं। क्रिसिल रेटिंग्स के एक हालिया अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि कॉर्पोरेट क्रेडिट गुणवत्ता मज़बूत है, रेटिंग अपग्रेड की संख्या डाउनग्रेड की तुलना में दो के बदले एक के अनुपात में है। स्वस्थ बैलेंस शीट के बावजूद, वैश्विक अनिश्चितता के बीच निगम आक्रामक निवेश करने में हिचकिचा रहे हैं।
बैंकों की बैलेंस शीट भी मज़बूत है और गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाें (एनपीए) की संख्या कम है, यह स्थिति अनिश्चित समय में झटके जज़्ब करने में सहायक होती है। इस तरह, ऋणदाता और उधारकर्ता, दोनों की, बैलेंस शीट मज़बूत है। चक्रीय आर्थिक सहायता के लिए, नीति निर्माता उपलब्ध नीतिगत गुंजाइश के आधार पर मौद्रिक और राजकोषीय उपाय इस्तेमाल करते हैं।
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने कैलेंडर वर्ष 2025 में रेपो दर में एक प्रतिशत की कमी की है और दरों में इस कटौती का ऋण दरों पर प्रभाव बढ़ाने के लिए, नकद आरक्षित अनुपात में समान आकार की क्रमिक कटौती लाने की घोषणा की है। ये कटौती उपभोक्ता मुद्रास्फीति में तीव्र गिरावट के कारण संभव हुई है, जिसके इस वित्तीय वर्ष में 2.6 प्रतिशत रहने की उम्मीद है।
हालांकि एमपीसी ने अपनी अक्तूबर की नीति बैठक में दरों में कटौती नहीं की, लेकिन उसने बैंकों के बीच आपसी ऋण देने को आसान बनाने के लिए कदम उठाए हैं। इन उपायों से आने वाले महीनों में ऋण वृद्धि में मदद मिलने की उम्मीद है।
इसके विपरीत, घाटे और ऋण को कम करने की आवश्यकता के कारण सरकार की राजकोषीय क्षमता सीमित है। केंद्र सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय पहली छमाही में अग्रिम रूप से किया गया था और दूसरी छमाही में इसके सामान्य होने की उम्मीद है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में चल रहे सुधार अनुपालन को बढ़ाएंगे और समय के साथ अर्थव्यवस्था आकार लेने लगी। ये सुधार निजी खपत को भी बढ़ावा देंगे, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 57 प्रतिशत है।
घटी जीएसटी दरें मध्यम वर्ग की खपत को बढ़ावा देंगी, जो इस वर्ष शुरू की गई आयकर कटौती और ब्याज दरों में कटौती का पूरक होंगी, और मुद्रास्फीति को कम करने में मदद करेंगी।
अमेरिका के साथ व्यापार समझौता बनने से अनिश्चितता कम होगी और विश्वास बढ़ेगा, विशेष रूप से कपड़ा, रत्न एवं आभूषण, समुद्री भोजन जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों को लाभ होगा, जो अमेरिका को भारत के कुल निर्यात का लगभग एक-चौथाई हिस्सा हैं। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के दो-तिहाई से अधिक हिस्से वाले ये क्षेत्र अत्यधिक उच्च टैरिफ के कारण अमेरिकी बाजार में अप्रतिस्पर्धी हो गए हैं।
बहुत से देशों में उच्च सार्वजनिक ऋण स्तर, परिसंपत्तियों की अनाप-शनाप बढ़ी कीमतें और वर्तमान भू-राजनीतिक एवं टैरिफ अनिश्चितताएं वैश्विक वातावरण को जटिल बनाए हुए हैं और भारत के लचीलेपन को चुनौती दे सकती हैं।
लेखक क्रिसिल संस्था के मुख्य अर्थशास्त्री हैं।