Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

गूगल और लखनऊ की जलेबी

ब्लॉग चर्चा

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

ए. गोस्वामी

मोबाइल की घंटी बजी। देखा जिगरी वीडियो कॉल पर था। जिगरी अपना दोस्त है जो कभी भी फ़ोन कर सकता है। ‘बोल’, मैंने कहा। ‘यार, अभी लख़नऊ में हूं’ ज़वाब आया। ‘तो’, मैंने पूछा। ‘मुझे जलेबी खानी है’- उसने कहा। ‘तो खा ले-परेशानी क्या है’, मैंने कहा। ‘ये ही तो परेशानी है, कहां खाऊं?’ उसने कहा ‘गूगल से पूछ, मुझसे क्यों पूछ रहा है?’ मैंने झल्ला कर कहा। ‘अरे यार गूगल तो पता नहीं क्या-क्या बता रहा है किसी से पूछ के यहां आया हूं यहां भी चार दुकानें हैं-देख’ वो मोबाइल घुमाकर वीडियो से चारों तरफ़ दिखाने लगा। ‘रुक रुक-वो देख दाईं तरफ़ जो दो लोग जाते दिख रहे न हैं तुझे’- मैं चिल्लाया। ‘कौन से? वो एक सेहत मंद के साथ जो ठीक-ठाक सेहत वाला जा रहा है वो?’ -वो बोला। ‘हां-हां वही’-मैंने कहा। ‘वो जो बातें कम कर रहे हैं और ठहाके ज्यादा लगा रहे हैं।’ -वो बोला। ‘अरे हां, उनमें से जो सेहतमंद वाला है उससे पूछना, देखना वो फिल्म, ‘मेरे हुज़ूर’ के अभिनेता ‘राजकुमार’ की तरह शॉल एक तरफ करते हुए कहेगा ‘लख़नऊ में ऐसी कौन-सी जलेबी की दुकान है जिसे हम नहीं जानते’ - मैंने आगे कहा कि ‘जलेबी उनके नाम से मशहूर है या वो जलेबी के नाम से ये शोध का विषय हो सकता है लेकिन उनका जलेबी प्रेम किसी शोध का मोहताज़ नहीं क्यूंकि वो सबको पता है।’

Advertisement

‘दूसरे उसके साथ वाले से नहीं पूछूं?’ उसने कहा। ‘नहीं, वो हिमांशु बाजपेयी है उससे नहीं’ -मैंने कहा। ‘कौन हिमांशु बाजपेयी?’- उसने चौंक कर पूछा। ‘अमां यार लख़नऊ में हो और हिमांशु बाजपेयी नहीं जानते? लानत है- किस्सागोई या दास्तानगोई कुछ भी कहो के उस्ताद, साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2021 से सम्मानित ‘क़िस्सा क़िस्सा लखनऊवा’ किताब के लेखक और ढेरों ख़ूबियों के मालिक’- मैंने बताया।

Advertisement

जिगरी की शक्ल देख कर मुझे अंदाज़ा हो गया कि मैं भैंस के आगे बीन बजा रहा हूं। आप लखनऊ के हो तो आप जानते ही होंगे। हिमांशु और इनकी जोड़ी लखनऊ में ‘जय-वीरू’ की जोड़ी के नाम से प्रसिद्ध है। दूसरे हैं अभिषेक शुक्ला। इस किताब में अभिषेक जी की क़रीब 125 ग़ज़लें शामिल हैं जो उन्होंने पिछले 7-8 सालों में कही हैं। एक बात आपको बताता चलूं कि अभिषेक शुक्ला जी की इस किताब का शीर्षक अभिषेक का नहीं बल्कि उनके दोस्त हिमांशु बाजपेयी का दिया हुआ है। खैर लखनऊ की जलेबियों के असली अड्डे गूगल शायद ही बता पाए। लेकिन नाश्ते में दही-जलेबी का लुत्फ तो अलग है ही।

साभार : एगोस्वामी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम

Advertisement
×