दूरगामी रणनीति से बनेंगे पड़ोसियों से अच्छे संबंध
ठीक से देखा जाए, तो मोदी के कालखंड में मालदीव से उतार-चढ़ाव वाले संबंध रहे हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चीन पर दोष मढ़ने की बजाय, भारत को अपने पड़ोसी देशों में चल रही गतिविधियों को ध्यान में रखकर दूरगामी रणनीति बनाने की ज़रूरत थी।
किसी ने सोचा नहीं था, मोदी और मुइज़्ज़ू कभी ‘सेम पेज’ पर आ पाएंगे। यों, पीएम मोदी मालदीव तीसरी बार जा रहे हैं। मगर, राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के शासन के दौरान उनकी यह पहली यात्रा होगी। उनकी इस यात्रा से माले और नई दिल्ली के बीच संबंधों की नई इबारत लिखी जाएगी। विश्लेषकों ने इसे चीन के प्रभाव को ‘पछाड़ने और उससे आगे निकलने’ का प्रयास बताया है। 2025 के भारतीय बजट में, मालदीव को 6 अरब रुपये के आवंटन के बाद माले का भरोसा दिल्ली पर बढ़ा, जो पिछले वर्ष के 4.7 अरब रुपये से अधिक थी। इसे दक्षिण एशियाई लाभार्थियों में सबसे बड़ी वृद्धि बताया गया था। मोदी की मालदीव यात्रा पर केवल चीन-पाकिस्तान नहीं, अमेरिका की भी नज़र है।
1 जनवरी, 2025 को चीन-मालदीव मुक्त व्यापार समझौता (सीएमएफटीए) लागू हो गया, जिस पर 2014 में हस्ताक्षर हुए थे। मालदीव की संसद ने 2017 में इस व्यापार समझौते को मंज़ूरी दे दी थी, लेकिन इब्राहिम सोलिह के नेतृत्व वाली सरकार ने 2018 में इसे निलंबित कर दिया था। पिछले साल जनवरी में, मालदीव और चीन ने पर्यटन सहयोग समझौते सहित 20 प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किए और एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की। मुइज़्ज़ू प्रशासन ने चीन से लिए गए 1.3 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक के ऋणों के पुनर्गठन की भी मांग की।
मालदीव ने पिछले साल चीनी अनुसंधान पोत जियांग यांग होंग-3 को अपने जलक्षेत्र में आने की अनुमति दी थी, जिससे भारत में चिंताएं बढ़ गई थीं। जनवरी, 2025 में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने मालदीव का अचानक दौरा किया, जहां उन्होंने राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू से बातचीत की, और द्विपक्षीय संबंधों को दुरुस्त करने पर ज़ोर दिया। वांग यी को लग रहा था कि भारत-चीन फिर से नज़दीक आ रहे हैं।
यों, जनवरी, 2024 में ही संकेत मिल गया था कि मुइज़्ज़ू भारत से संतुलित सम्बन्ध बनाने को इच्छुक हैं। मुइज़्ज़ू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए तीन मंत्रियों मरियम शिउना, मालशा शरीफ, और महजूम मजीद को निलंबित कर दिया था। 6 से 10 अक्तूबर, 2024 के दौरान मुइज़्ज़ू भारत आये और दिल्ली में पीएम मोदी से मुलाकात की, जहां दोनों ने एक संयुक्त विज़न दस्तावेज़ जारी किया था। उस अवसर पर हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा सहयोग को गहरा करने की योजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी। समझौते में कहा गया था कि भारत मालदीव के रक्षा बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने में मदद करेगा, जिसमें भारत की मदद से निर्मित माले में अत्याधुनिक रक्षा मंत्रालय के भवन का उद्घाटन भी शामिल है।
ऐसा लगता है, मुइज़्ज़ू अपने चीन समर्थक होने का मुलम्मा उतारना चाहते हैं। दो साल से उन्हें ‘प्रो चाइना प्रेसिडेंट’ ब्रांडेड किया गया था। नवंबर, 2023 में भारत-मालद्वीव उभयपक्षीय संबंध सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए, जब मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू, जिन्होंने ‘इंडिया आउट’ का प्रचार किया था। उन्होंने राष्ट्रीय संप्रभुता की चिंताओं का हवाला देते हुए नई दिल्ली को भारत द्वारा उपहार में दिए गए दो हेलीकॉप्टरों और एक फिक्स्ड-विंग विमान का संचालन और रखरखाव करने वाले 89 सैनिकों को वापस बुलाने का आदेश दिया था। इससे पाकिस्तान और चीन दोनों प्रसन्न थे।मालदीव-पाकिस्तान के संबंधों को समझना है तो वहां की संसद को देखिये, जिसका निर्माण पाकिस्तान ने 45 मिलियन रुपये लगाकर किया था। माले के मागू स्थित संसद भवन ‘मज़लिस’ का उद्घाटन 1 अगस्त, 1998 को पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की उपस्थिति में किया गया था। उसके 19 साल बाद, 25 जून, 2017 को मालदीव के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनकी पत्नी कलसूम नवाज शरीफ को आमंत्रित किया था। नवाज़ को दोबारा मालदीव बुलाने से पहले तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन 7 मई, 2015 को इस्लामाबाद भी गये थे। पाक सेना के तत्कालीन प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने मार्च, 2018 के अंत में मालदीव का दौरा किया था। इस समय पाकिस्तान में मालदीव के अधिकांश छात्र देश भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे हैं। 550 से 600 मालदीवियन युवा अपंजीकृत तालिब मदरसों में दीक्षा ले रहे हैं।
वर्ष 1965 में मालदीव एक स्वतंत्र देश बना। भारत, इस द्वीपीय राष्ट्र को मान्यता देने वाला पहला देश था। वर्ष 1972 में भारत ने मालदीव में अपना पहला उच्चायोग स्थापित किया, जबकि 2004 में मालदीव ने नई दिल्ली में अपना पहला पूर्ण राजनयिक मिशन खोला था। ठीक से देखा जाए, तो मोदी के कालखंड में मालदीव से उतार-चढ़ाव वाले संबंध रहे हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चीन पर दोष मढ़ने की बजाय, भारत को अपने पड़ोसी देशों में चल रही गतिविधियों को ध्यान में रखकर दूरगामी रणनीति बनाने की ज़रूरत थी। आप मानें न मानें, पाकिस्तान, चीन, सऊदी अरब और तुर्की का नेक्सस की भूमिका दिल्ली से माले के संबंध बिगाड़ने में दरपेश रही है।
रविवार को अपने बयान में, राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के कार्यालय ने यह नहीं कहा कि प्रधानमंत्री मोदी स्वतंत्रता दिवस समारोह के मुख्य अतिथि होंगे। बल्कि, बयान में यह उद्धृत था कि 26 जुलाई को मालदीव के 60वें स्वतंत्रता दिवस और मालदीव-भारत के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 60वीं वर्षगांठ के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी कई संयुक्त परियोजनाओं का उद्घाटन करेंगे।
ऐसा क्या है, कि मालदीव से हमारी कनेक्टिविटी कम हो जाती है? ‘पीपुल टू पीपुल कॉन्टेक्ट’, भारत की विदेश नीति का अहम हिस्सा है, लेकिन हम भाषाई और सांस्कृतिक रूप से सही से जुड़ नहीं पाए हैं। मालदीव किसी ज़माने में हिन्दू और बौद्ध देश माना जाता था। इसके अंतिम सम्राट, राजा धोवेमी ने वर्ष 1153 में इस्लाम धर्म अपना लिया; और अपना नामांतरण कर इस्लामिक नाम सुल्तान मुहम्मद अल-आदिल रख लिया।
धिवेही वहां की आधिकारिक भाषा है। पाकिस्तान सरकार ने 25 जुलाई, 2024 को ‘धिवेही बहुगे अकादमी’ को 10,000 अमेरिकी डॉलर का दान दिया। धिवेही भाषा अकादमी का प्रतिनिधिमंडल अनुवाद, संगोष्ठियों के बाइ’स पाकिस्तान जाता रहा है। उर्दू और धिवेही के बीच सहयोग, डिजिटाइज़ की संभावनाओं को ये मिलकर आगे बढ़ा रहे सवाल हैं, भारत इस दिशा में पीछे क्यों रह गया? इश्धू लोमाफ़ानु मालदीव में अब तक खोजी गई सबसे पुरानी ताम्रपत्र पुस्तक है। यह पुस्तक 1194 ईस्वी में बौद्ध राजा श्रीगगनआदित्य के शासनकाल में लिखी गई थी। आधुनिक युग में हुसैन सलाउद्दीन ने ‘सियारथुन्नबविया’ लिखा। कवि अद्दू बंदेयरी हसन मानिकुफ़ान, मालदीव भाषा के सबसे महत्वपूर्ण प्रमुख साहित्यकार हैं, जिन्होंने ‘धियोगे रायवरु’ लिखा। अन्य रचनाकारों में बोडुफेनवालहुगे सिदी, मरियम सईद, अमीना फ़ैज़ा, इब्राहिम शिहाब, अब्दुल रशीद हुसैन की रचनाओं के भारतीय अदबी संसार कितना ज्ञात है? यह सवाल उठाना तो बनता है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।