आलोक पुराणिक
मसले टेंशनात्मक हो जाते हैं, जब आपकी जगह लाये गये बंदे ठीक-ठाक नहीं, बहुत ही ठीक-ठाक काम करने लग जाते हैं। सिर्फ सोनम (नोटबंदी फेम) ही बेवफा न थी, सभी बेवफा हैं। क्रिकेट मैचों में दर्शक विराट कोहली को देखकर तालियां बजाते थे, कुछ मैचों में विराट कोहली टीम में न रहे, और उनकी जगह रोहित शर्मा ही कैप्टन रहे, और कोई और खिलाड़ी विराट कोहली की जगह खेला। लोगों ने याद ही न किया विराट कोहली को, क्योंकि जो नये खिलाड़ी टीम में आये हैं, उनकी परफॉरमेंस इतनी शानदार रही है कि पुराने याद नहीं आ रहे हैं।
रवींद्र जडेजा वापस आये हैं, धुआंधार खेल दिखाया। श्रेयस अय्यर ने धुआंधार खेल दिखाया। अब सिलेक्टर के सामने टेंशन यह है कि इन्हें कैसे हटाया जाये। श्रेयस अय्यर और रवींद्र जडेजा को सिर्फ इसलिए बाहर कैसे करें कि विराट कोहली को लाना है। विराट कोहली को अपनी जगह बनानी पड़ेगी दोबारा। शानदार अतीत के आधार पर अब नयी कामयाबी किसी को न मिलनी, न कांग्रेस को न विराट कोहली को।
खराब परफॉरमेंस दिखा दें रवींद्र जडेजा तो टीम संकट में पड़ जाती है, और अगर अच्छी परफॉरमेंस दिखा दें रवींद्र जडेजा तो सीनियर खिलाड़ियों की दोबारा वापसी पर समस्या हो जाती है। परफॉरमेंस अच्छी हो, तो सबको राहत मिलना जरूरी नहीं है। अच्छी परफॉरमेंस से आफत हो जाती है।
पाकिस्तान के एक खिलाड़ी अफरीदी बहुत शानदार खेलते हैं, कुछ पाकिस्तानी लोगों का कहना है कि अगर उन्हें भारत में आईपीएल की नीलामी में शामिल किया जाता, तो उनकी कीमत 200 करोड़ लगती। 200 करोड़ कीमत तो आईपीएल में किसी प्लेयर की न लगी, पर पाकिस्तानियों की उम्मीद है। पाकिस्तानियों की उम्मीदों का कोई अंत नहीं है, भारत के हिस्से वाला कश्मीर भी उनका होगा, इसकी भी उन्हें उम्मीद है। मगर पाकिस्तानी अफरीदी अगर आईपीएल की नीलामी में शामिल होते, तो कई दूसरे खिलाड़ियों को टेंशन हो जाती। अफरीदी पर खर्च करें या ईशान किशन पर, यह सवाल कई आईपीएल टीमों के सामने खड़ा हो जाता।
परफॉरमेंस से ही सब कुछ न मिलता, यह बात कंपनियों से लेकर क्रिकेट तक में लागू होती है। अर्जुन तेंदुलकर पुत्र सचिन तेंदुलकर इस बार तीस लाख रुपये के बिके हैं, पिछली बार वह बीस लाख के बिके थे। रेट में पचास परसेंट का इजाफा हो गया, बिना कोई मैच खेले। कई बार बिना कुछ किये बहुत कुछ मिल जाता है, पर इसके लिए जरूरी है कि आपके बाप ने बहुत कुछ कर दिया हो। पर तकदीर की बात भी है। सबको बाप के नाम से न मिलता।
अभिषेक बच्चन उस तरह से लकी नहीं हैं कि बिना कुछ किये ही रेट बढ़ जायें। वे तो खुद भी थोड़ा-बहुत कर चुके हैं, पर उनके रेट न बढ़ते। धर्मेंद्र के एक बेटे बाबी देओल का भी कमोबेश यही हाल है। बाप की परफॉरमेंस से पॉलिटिक्स के अलावा कहीं और चलना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि पॉलिटिक्स में परफॉरमेंस का कोई खास रोल न होता। पर क्रिकेट और फिल्म में तो कुछ करके दिखाना पड़ता है।