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शतायु जीवन दे सकते हैं अच्छे बैक्टीरिया

मारिया ब्रान्यास मोरेरा का जीवन हमें याद दिलाता है कि दीर्घायु आनुवांशिकी, जीवनशैली और जीव विज्ञान के एक नाज़ुक संतुलन पर निर्भर करती है। हम हर कारक को नियंत्रित नहीं कर सकते, लेकिन अच्छे पोषण से आंत के माइक्रोबायोम की...
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मारिया ब्रान्यास मोरेरा का जीवन हमें याद दिलाता है कि दीर्घायु आनुवांशिकी, जीवनशैली और जीव विज्ञान के एक नाज़ुक संतुलन पर निर्भर करती है। हम हर कारक को नियंत्रित नहीं कर सकते, लेकिन अच्छे पोषण से आंत के माइक्रोबायोम की देखभाल करना स्थायी स्वास्थ्य की दिशा में एक सार्थक कदम है।

दुनिया में कुछ लोग अपनी आयु का शतक पूरा कर लेते हैं और कुछ गिने-चुने लोग अपने शतक में कुछ और साल जोड़ने में कामयाब हो जाते हैं। क्या इन लोगों का दीर्घ जीवन आनुवंशिक कारणों से है या इसके लिए उनका खानपान और दिनचर्या जिम्मेदार है? वैज्ञानिक काफी लंबे अर्से से इन सवालों का उत्तर ढूंढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। स्पेनी महिला मारिया ब्रान्यास मोरेरा द्वारा छोड़े गए एक ‘उपहार’ से उनके शोध प्रयासों को नया बल मिला है। मोरेरा का जब 2024 में 117 वर्ष की आयु में निधन हुआ तो वह विज्ञान के लिए अपने माइक्रोबायोम के नमूने छोड़ गई। हर व्यक्ति के शरीर में रहने वाले लाभकारी जीवाणुओं के समूह को माइक्रोबायोम कहा जाता है। शोधकर्ताओं ने इस नमूने का अध्ययन करने के बाद पाया कि मोरेरा की आंतें दशकों छोटी महिला की आंतों की तरह विविध थीं। वे ऐसे लाभकारी बैक्टीरिया से भरपूर थीं जो दीर्घायु से जुड़े हैं।

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शोधकर्ताओं का कहना है कि मोरेरा की रोजाना योगर्ट (खास विधि से जमाया गया दही) खाने की आदत और भूमध्यसागरीय आहार ने शायद इसमें मदद की होगी। हालांकि हम सभी को ‘भाग्यशाली जीन’ विरासत में नहीं मिलते, फिर भी अपने माइक्रोबायोम का पोषण करना आजीवन स्वास्थ्य बनाए रखने का एक तरीका हो सकता है। सेल रिपोर्ट्स मेडिसिन में प्रकाशित एक शोधपत्र में शोधकर्ताओं ने एक सुपरसेंटेनेरियन (110 वर्ष या उससे अधिक आयु का व्यक्ति) पर संभवतः सबसे विस्तृत वैज्ञानिक शोध प्रस्तुत किया है। अपनी मृत्यु से पहले ब्रान्यास ने इस शोध में भाग लेने पर सहमति व्यक्त की थी जिसका उद्देश्य यह पता लगाना था कि उन्होंने इतना लंबा और स्वस्थ जीवन कैसे जिया।

वैज्ञानिकों ने उसके नमूनों की तुलना उन लोगों के नमूनों से की जिनकी उम्र इतनी असाधारण नहीं थी। उन्होंने पाया कि ब्रान्यास के शरीर में सुरक्षात्मक जीन मौजूद थे जो सामान्य बीमारियों से बचाते हैं। लेकिन उन्होंने आंत के माइक्रोबायोम पर भी ध्यान दिया जिस पर हमारा ज्यादा नियंत्रण है। यह माइक्रोबायोम बैक्टीरिया, कवक और अन्य सूक्ष्मजीवों का विशाल समुदाय है जो हमारी आंतों में रहते हैं। ये भोजन को पचाने, विटामिन बनाने, हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करने और मस्तिष्क से संवाद करने में मदद करते हैं। यद्यपि हमारे जीन हमारे माइक्रोबायोम को आकार देने में छोटी भूमिका निभाते हैं, लेकिन आहार और जीवनशैली कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।

आमतौर पर जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ती है, आंत में सूक्ष्मजीव प्रजातियों की विविधता कम हो जाती है और बिफीडोबैक्टीरियम जैसे लाभकारी सूक्ष्मजीव कम हो जाते हैं। विविधता में इस कमी को दुर्बलता से जोड़ा गया है। ब्रान्यास की आंत का माइक्रोबायोम किसी बहुत कम उम्र के वयस्क की तरह ही विविध था और विशेष रूप से बिफीडोबैक्टीरियम परिवार के जीवाणुओं से भरपूर था। ज्यादातर बुजुर्गों में ये बैक्टीरिया कम हो जाते हैं, लेकिन ब्रान्यास के स्तर अन्य शतायु और अतिशतायु लोगों में बिफीडोबैक्टीरियम के बढ़े हुए स्तर की पिछली रिपोर्टों से मेल खाते थे। शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि इस असामान्य रूप से युवा माइक्रोबायोम ने उनकी आंत और प्रतिरक्षा स्वास्थ्य को सहारा दिया होगा, जिससे उनकी असाधारण दीर्घायु में योगदान मिला।

बिफीडोबैक्टीरिया शिशु की आंत में बसने वाले पहले सूक्ष्मजीवों में से हैं और आमतौर पर जीवन भर लाभकारी माने जाते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि ये प्रतिरक्षा कार्य को बढ़ावा देने, आंत संबंधी विकारों से बचाने और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। ब्रान्यास के आहार से इस बात का सुराग मिला कि उनमें बिफीडोबैक्टीरियम का इतना उच्च स्तर क्यों था। ब्रान्यास ने बताया कि वह रोजाना तीन बार योगर्ट का सेवन करती थी। योगर्ट में जीवित बैक्टीरिया होते हैं जो बिफीडोबैक्टीरियम के विकास को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने भूमध्यसागरीय आहार भी अपनाया, जो खाने का एक ऐसा तरीका है जो आंत के माइक्रोबायोम की विविधता और अच्छे स्वास्थ्य से लगातार जुड़ा हुआ है।

बिफीडोबैक्टीरियम को बढ़ावा देने वाले अन्य खाद्य पदार्थों में केफिर (एक तरह की छाछ) और फर्मेंट की गई सब्जियां शामिल हैं। इनमें प्रोबायोटिक्स अथवा जीवित बैक्टीरिया होते हैं जो आंत में बस सकते हैं और स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकते हैं। लेकिन प्रोबायोटिक्स को ईंधन की आवश्यकता होती है। प्रीबायोटिक्स खाद्य पदार्थों में आहारीय रेशे होते हैं जिन्हें हम पचा नहीं सकते लेकिन जिन पर हमारे सूक्ष्मजीव पनपते हैं। ये रेशे प्याज, लहसुन, केले, जई और फलियों जैसे खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं। प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स मिलकर एक संतुलित माइक्रोबायोम बनाए रखने में मदद करते हैं।

बेशक, यह एक अकेले व्यक्ति पर किया गया अध्ययन था और वैज्ञानिक यह दावा नहीं कर रहे हैं कि केवल उसका माइक्रोबायोम ही उसकी लंबी आयु की व्याख्या करता है। उसकी असाधारण दीर्घायु लगभग निश्चित रूप से कई परस्पर जुड़े कारकों का परिणाम थी जिनमें सुरक्षात्मक जीन, कुशल चयापचय (मेटाबॉलिज्म), कम सूजन और संभवतः आंत के विविध माइक्रोबायोम का समर्थन शामिल है। माइक्रोबायोम अनुसंधान तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन अभी तक कोई नहीं जानता कि ‘आदर्श’ माइक्रोबायोम कैसा दिखता है। ज्यादा विविधता आमतौर पर बेहतर स्वास्थ्य से जुड़ी होती है, लेकिन लंबी उम्र का कोई एक नुस्खा नहीं है। फिर भी, ब्रान्यास का मामला इस बढ़ती हुई आम सहमति को पुष्ट करता है कि एक विविध लाभकारी माइक्रोबायोम का पोषण बेहतर स्वास्थ्य और लचीलेपन से जुड़ा है।

हालांकि हम अपने जीन नहीं चुन सकते, लेकिन हम अपने आंत के सूक्ष्मजीवों को सपोर्ट कर सकते हैं। कुछ आसान उपायों में योगर्ट, दही, केफिर, फर्मेंटेड सब्जियों के साथ-साथ फल-सब्जियां, फलियां और साबुत अनाज खाना शामिल है, जो स्वस्थ सूक्ष्मजीवों के लिए आवश्यक प्रीबायोटिक्स प्रदान करते हैं। भारत में योगर्ट का प्रचलन नहीं है लेकिन योगर्ट का समकक्ष दही एक अच्छा प्रोबायोटिक है। भूमध्यसागरीय शैली का आहार माइक्रोबायोम विविधता और कम रोग जोखिम से जुड़ा हुआ है। इस आहार में फल, सब्जियां, फलियां, साबुत अनाज, जैतून के तेल और मछली पर मुख्य जोर दिया जाता है। ये आदतें 110 साल से ज्यादा जीने की गारंटी तो नहीं देतीं, लेकिन ये कैंसर, टाइप 2 डायबिटीज़ और हृदय रोग के कम जोखिम से जुड़ी हैं। मारिया ब्रान्यास मोरेरा का जीवन हमें याद दिलाता है कि दीर्घायु आनुवांशिकी, जीवनशैली और जीव विज्ञान के एक नाज़ुक संतुलन पर निर्भर करती है। हम हर कारक को नियंत्रित नहीं कर सकते, लेकिन अच्छे पोषण से आंत के माइक्रोबायोम की देखभाल करना स्थायी स्वास्थ्य की दिशा में एक सार्थक कदम है।

लेखक विज्ञान संबंधी मामलों के जानकार हैं।

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