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सोना हो गया सोना, अब किस बात का रोना

तिरछी नजर
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आज सोना ऐसा गरबा खेल रहा है कि आम लोगों के हाथ डांडिया पीटना ही शेष रह गया है। जो ऐसा नहीं कर पा रहे वे दिवाली पूर्व अपना सिर पीट लें, इसकी भी संभावना है।

पुराने लोग सही कहते थे। बचत की आदत डालनी चाहिए। थोड़ा-थोड़ा सोना खरीदकर रखते जाना चाहिए। सोना बड़े काम का होता है। नाते-रिश्तेदार काम आएं न आएं सोना काम आता है। घर के बाहर आनगांव के लिए निकलो तब हाथ में छोटी-मोटी सोने की अंगूठी डालकर निकलो। बाहर कोई ऊंच-नीच हो गई, पैसों का बटुआ खो गया तब यही अंगूठी काम आ सकती है। गिरवी रखकर पैसे उधार ले लो या फिर इसे बेचकर कुछ अधिक रकम का इंतजाम किया जा सकता है।

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कालांतर में डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड और मोबाइल संस्कृति ने पुराने लोगों की बातों को भुला दिया है, लेकिन उनका अनुभव कभी पुराना नहीं पड़ता। इन दिनों उनकी बातें सही प्रतीत हो रही हैं। सोने के बढ़ते दामों को देखकर तो यही लगता है। जिनके पास पुराना सोना है, उनकी तो चांदी ही चांदी हो गई है! संचित किया गया ज़रा-सा सोना, असल सोना हो गया है। आज सोना ऐसा गरबा खेल रहा है कि आम लोगों के हाथ डांडिया पीटना ही शेष रह गया है। जो ऐसा नहीं कर पा रहे वे दिवाली पूर्व अपना सिर पीट लें, इसकी भी संभावना है।

बेचारे जनकलाल हैरान-परेशान मनोचिकित्सक के सामने उपस्थित हुए। नब्ज थामते हुए डॉक्टर उवाचे, ‘आप इतना परेशान क्यों हैं?’ वे बोले, ‘मैं सोना चाहता हूं डॉक्टर साहब।’ डॉक्टर ने उनका हाथ झटक दिया, ‘फिर आप गलत जगह आ गए हैं। आपको ‘गोल्ड शोरूम’ जाना चाहिए।’ जनकलाल को लगा सोने के बढ़े हुए दामों का असर डॉक्टर पर भी हुआ है। वह आंखें बंद करने का अभिनय करते हुए बोले, ‘आप समझ नहीं रहे हैं सर। मैं सोना चाहता हूं... सोना।’ डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए समझाया, ‘ओह अच्छा! ऐसा करें.. सोने के बारे में सोचना बंद कर देवें बस।’ जनकलाल पिनक गए, ‘मेरी इतनी हैसियत कहां कि सोने के बारे सोच भी सकूं।’ जवाब सुनकर मनोचिकित्सक को लगा कि ह ो न हो मरीज ‘सोना-पीड़ित’ हो चुका है।

दोनों को सोने के बढ़े हुए दाम को लेकर डांडिया खेलते देख श्रीमती जनकलाल भी बीच में कूद पड़ीं, ‘डॉक्टर, इन्हें नींद न आने की बीमारी है। रात-रात भर सो नहीं पाते। बैठे रहते हैं।’ डॉक्टर बोले, ‘वही तो मैं समझा रहा हूं। नींद के बारे में सोचने से नींद दूर भाग जाती है। देखो, जैसे प्यार करने के बारे में आदमी को सोचना नहीं पड़ता। वह प्यार में पड़ जाता है। ऐसा समझो, वह प्यार में गिर जाता है। इसलिए सोचो मत, नींद में गिर जाओ बस।’ श्रीमती जनकलाल के कानों में झूलते सोने के झुमके को देख मनोचिकित्सक ने मशविरे की फीस बढ़ा दी।

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