पुष्परंजन
कुछ हफ्तों बाद इमरान ख़ान ने चुप्पी तोड़ी है। 19 अगस्त को पाक पीएम बोले कि सऊदी अरब से हमारे रिश्ते ख़राब होने की जो हवाबाज़ी चल रही है, उसमें दम नहीं है। हमारे संबंध दुरुस्त हैं। प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने दुनिया न्यूज़ को दिये एक इंटरव्यू में यह बात कही। संभवतः वह अपने आर्मी चीफ के एक दिवसीय सऊदी यात्रा के नतीज़ों की प्रतीक्षा कर रहे थे। पाक सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा सोमवार को रियाद गये थे। आईएसपीआर के डीजी मेजर जनरल बाबर इफ्तिखार ने बताया कि इस विवाद से पहले सेना प्रमुख का समय तय हो चुका था। सैन्य मामलों पर ही बातचीत करनी थी। मगर, मीडिया उस मुलाक़ात का मयार समझ रहा था, कि तू मुझसे ख़फा है तो मनाने के लिए आ।
पाकिस्तान की नई मुश्किलें विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी की वजह से पैदा हुई हैं। कश्मीर इश्यू पर सऊदी अरब का पीछे हट जाना पाक के कष्ट का कारण है। कुरैशी दरअसल, 57 सदस्यीय ओआईसी में कौंसिल ऑफ फॉरेन मिनिस्टर्स (सीएफएम) की बैठक कश्मीर पर आहूत करना चाहते थे, मगर सऊदी अरब इसके पक्ष में नहीं था। कुरैशी कुछ महीनों सुषुप्त ज्वालामुखी की तरह बैठे थे, फिर अचानक से फट पड़े। 5 अगस्त, 2020 को पाक विदेशमंत्री कुरैशी ने एआरवाई न्यूज़ से कहा था, ‘यदि सऊदी अरब कश्मीर के इश्यू को ओआईसी के मंच पर नहीं उठाने दे रहा, तो मैं पीएम इमरान ख़ान से कहूंगा कि वो इस्लामिक राष्ट्रों के इस संगठन की बैठक आहूत करें। वो हमारे साथ खड़े होने को तैयार है।’ शाह महमूद कुरैशी के बयान से सऊदी अरब हैरान कि हमारी ही बिल्ली हमीं को म्याऊं किसके दम पर कर रही है?
यह रियाद में बैठे सऊदी कूटनीतिक पीठ पीछे ताक़तों को भी भली-भांति समझ रहे थे। 27 मई, 2020 को जेरूसलम पोस्ट ने ओआईसी के अंदर सऊदी अरब के विरुद्ध बन रही एक नई धुरी की चर्चा की थी। इसमें तुर्की, मलेशिया, बांग्लादेश, ईरान, अफग़ानिस्तान को जोड़ने के वास्ते पाक विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी ने सबसे अधिक सक्रियता दिखाई है। जेरूसलम पोस्ट ने जानकारी दी कि इस इलाके में एक नया नेक्सस तैयार हो रहा है, जिसे एकजुट करने के वास्ते पाकिस्तान सक्रिय है। इस्राइली अखबार के अनुसार, ‘सितंबर, 2019 में न्यूयार्क में कुरैशी ने मलेशिया और तुर्की के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक कर इसका खाका तैयार किया था।’
पाक विदेशमंत्री 5 अगस्त, 2019 से ही सऊदी अरब की कश्मीर पर चुप्पी को लेकर खुन्नस में हैं। शाह महमूद कुरैशी थिंक टैंक के स्तर पर इस नेक्सस को मज़बूती दे रहे हैं, उसका उदाहरण इस्लामाबाद पॉलिसी इंस्टीच्यूट द्वारा 17 अगस्त, 2020 को आहूत वेबिनार है। इस वेबिनार में कश्मीर, चीन, ईरान, तुर्की, बांग्लादेश और नेपाल से वेब द्वारा जुड़े थिंक टैंक के रणनीतिकारोें को पाक विदेश मंत्री बता रहे थे कि उत्तरी आयरलैंड में जैसा हुआ, उसी आधार पर हम अपनी रणनीति कश्मीर को लेकर बनाएंगे।
शाह महमूद कुरैशी के साथ एक दूसरी दिक्क़त घरेलू राजनीति में भी है। उनके अंदर का पीएम मैटेरियल कई बार परवान चढ़ता है, जिसे लेकर इमरान ख़ान हमेशा चौकन्ने रहते हैं। नौ साल पहले 27 नवंबर, 2011 को द एक्सप्रेस ट्रिब्यून में एक ख़बर छपी थी कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी गठबंधन को मिलाकर जो सरकार बनने वाली है, उसके ‘पोटेंशियल प्राइम मिनिस्टर’ शाह महमूद कुरैशी हैं। मगर, होनी को कुछ और मंज़ूर था। पीएम बन गये यूसुफ रज़ा गिलानी और विदेश मंत्री के पद से शाह महमूद कुरैशी को संतोष कर लेना पड़ा। परोसी थाली न पाने का यह सिलसिला इमरान ख़ान तक जारी है। शाह महमूद कुरैशी की जड़ें मुलतान में उनके पिता के ज़माने से मज़बूत हैं। वो सीनेट के मेंबर रह चुके थे। सुहरावर्दी सूफी मतावलंबियों पर उनके ख़ानदान की पकड़ है। इमरान ख़ान की पार्टी पीटीआई में शाह महमूद कुरैशी दूसरे नंबर पर हैं। ऐसी शख्सियत का विदेश मंत्री पद से हटाया जाना नामुमकिन-सा ही लगता है।
मगर, सऊदी अरब के विरुद्ध बयानबाज़ी के हवाले से इमरान कैबिनेट की मानवाधिकार मंत्री डॉ. शिरीन मज़ारी ने शाह महमूद कुरैशी को काफी भला-बुरा कहा है। डॉ. शिरीन मज़ारी ने कहा कि बुरकिना फासो से भी गई गुज़री हमारी विदेश नीति है। बुरकिना फासो यूएन में अमेरिका के विरुद्ध प्रस्ताव लाने में कामयाब रहा था, हमारे कुरैशी साहब तो कश्मीर पर इतने गोते खाने लगे कि सऊदी अरब से संबंध बिगाड़ बैठे।
एक बात है, कुरैशी की मुंहजोरी की वजह से पाकिस्तान कंगाली में आटा गीला वाली हालत से गुज़रने लगा है। उस पर सऊदी अरब का तीन अरब डॉलर का क़र्ज है, जो कैश रिजर्व की शक्ल में है। रियाद की तरफ से चिट्ठी आई है कि पाकिस्तान कम से कम एक अरब डॉलर चुकता करे। यह चिट्ठी केवल उसे उसकी औकात दिलाने के वास्ते भेजी गई है। पाकिस्तान को सालाना 3.2 अरब डॉलर की तेल व गैस की सप्लाई होती रही है, जिसका हिसाब-किताब दुरुस्त नहीं होने की वजह से जुलाई के बाद समझौते का नवीकरण नहीं किया गया है। डॉ. शिरीन मज़ारी ने इन सारे सवालों को उठाया है, और इसका सारा ठीकरा विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी पर फोड़ा है।
सऊदी अरब के रणनीतिकार समझ चुके हैं कि शाह महमूद कुरैशी कश्मीर के नाम पर किस तरह पाकिस्तान में अपनी छवि मज़बूत कर रहे हैं। इससे शायद उन्हें इमरान ख़ान से भी मज़बूत नेता मान लिया जाए। शाह महमूद कुरैशी की वानर लीला पाकिस्तान की सरहदों तक सीमित रहती, तो सऊदी अरब के लिए चिंता का विषय नहीं था। यहां तो रियाद के खिलाफ खेल 57 सदस्यीय ओआईसी में हो रहा है। वह भी कश्मीर के नाम पर। शिन्चियांग में उईगुर मुसलमानों पर हुए सितम को लेकर एक बार भी चीन के विरुद्ध नहीं बोलने वाले पाकिस्तान की नीयत को सऊदी अरब भी बख़ूबी समझता है।
पाकिस्तान, आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) में एक नया पावर सेंटर का सृजन तुर्की, मलेशिया, ईरान, बांग्लादेश और अफग़ानिस्तान के सहयोग से चाहता है, यह बात मिडिल ईस्ट के कूटनीतिक गलियारों में लोगों की समझ में आ रही है। सऊदी अरब के लाइन ऑफ एक्शन से स्पष्ट है कि उसकी कूटनीति की प्राथमिकता व्यापार है। एक तरफ़ क़र्ज़ से लदा पाकिस्तान है, दूसरी ओर चीन, अमेरिका, जापान के बाद चौथा ट्रेडिंग पार्टनर भारत है। सऊदी अरब का भारत से सालाना व्यापार 33.7 अरब डॉलर का है। 18 फीसद क्रूड ऑयल और 30 प्रतिशत एलपीजी का खरीदार देश भारत के खिलाफ क्यों जाए सऊदी अरब?
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के
नई दिल्ली संपादक हैं।