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जेन ज़ेड के जुनून से जले है अपना खून

तिरछी नजर

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रात में शोरूम के दरवाजे जब खुले इन रणबांकुरों के चेहरे उस समय ऐसे खिल गए मानो मंदिर के कपाट खुल गए हों। उनके चेहरे बिना महंगी क्रीम के भी ऐसे दमक उठे मानो दीपक की लौ...

दिन शुक्रवार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पितरों की आत्मा की शांति का महत्वपूर्ण दिन था। इस दिन नदी के तट पर लोग तर्पण कर रहे थे। घरों में पितरों के नाम के भोग के लिए पूड़ी और गुलगुले बन रहे थे। घर के बुजुर्ग आज के दिन की महत्ता को बता रहे थे। घर की गृहिणियां कुत्ते, चींटी, गाय और कौवे के लिए कौर निकल रही थी। पर जेन ज़ेड वालों की आत्मा को तो शान्ति तब जाकर मिली जब आई फोन 17 की लॉन्चिंग हुई। रात्रि 12 बजे से शोरूम खुलने के इंतजार में लाइन में खड़े ये रणबांकुरे वाकई तारीफ के लायक हैं। सच कहूं तो पीठ ठोकने का मन कर रहा है और अपना सिर पीटने का...। हमने ऐसे नौनिहालों को जन्म दिया है जो एक मोबाइल के लिए रात भर जागकर पैर तुड़वाने को भी तैयार है।

बारह बजे से शोरूम के बाहर लाइन लग चुकी थी। देखने में ऐसा लग रहा था मानो रणभूमि के लिए योद्धा तैयार खड़े हों बस ‘यलगार हो’ की हुंकार भरी जाएगी और सब टूट पड़ेंगे। मीडिया वाले भी नहा-धोकर उनके पीछे पड़े थे। वे भी किसी तीर्थ यात्रा की कवरेज जैसा उत्साह दिखा रहे थे। कैमरा और माइक लेकर ऐसे टूट पड़े थे जैसे कोई महाकुंभ का महत्वपूर्ण स्नान हो। इसकी कवरेज में डुबकी लगाकर ही शांति मिलेगी। रात में शोरूम के दरवाजे जब खुले इन रणबांकुरों के चेहरे उस समय ऐसे खिल गए मानो मंदिर के कपाट खुल गए हों। उनके चेहरे बिना महंगी क्रीम के भी ऐसे दमक उठे मानो दीपक की लौ... वे भावविह्वल हो रहे थे। उन्हें देख कुछ-कुछ ‘अखियां हरि दर्शन को तरसी’ टाइप फ़ीलिंग आ रही थी। कुछ ने वहीं मीडिया के सामने डब्बे को लहराते हुए दिखाया। मानो जंग फ़तह करके आए हों तो कुछ उनसे भी एक क़दम आगे थे। उन्होंने उस डिब्बे को वहीं खोलकर वीडियो बनाया। माफ़ कीजिए हम जेनेरेशन एक्स वाले ये सब चोंचले कहां जानेंगे।

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उन्हें देख हमें अपनी जवानी के दिन याद आ गए। जब हम इसी तरह रात-रात भर लाइन लगाए सिलेंडर के लिए खड़े रहते थे। सिलेंडर का ट्रक आता और ये खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल जाती। कुर्सी, दरी कभी-कभी चारपाई डालकर भी हम एजेंसी के खुलने का इंतजार करते। रात भर मच्छरों से कटवा कर किसी तरह हमें सिलेंडर प्राप्त होता पर सिलेंडर पाकर हम इन जेन जैड की तरह रोते नहीं थे और न ही भावविह्वल होते थे । बस इस बात से ही खुश हो जाते थे कि महीने भर की चिंता अब खत्म है। अब हमारा परिवार एक साथ बैठकर गर्मागर्म दाल-चावल खाएगा। और ये आईफोन 17 लाकर भी पगला-पगला कर रो रहे हैं और हंस भी रहे हैं।

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सच कहें तो हम भी रो और हंस रहे हैं कि हमने ऐसे नौनिहालों को जन्म दिया है।

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