गांधी ने किये थे फांसी रुकवाने के प्रयास
महात्मा गांधी ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा से बचाने के लिए लगातार प्रयास किए। गांधी जी ने अपने सिद्धांतों के आधार पर कई बार वायसराय से अपील की और फांसी की सजा को स्थगित करने की बात कही। उनके इस संघर्ष को कई प्रमुख नेताओं और इतिहासकारों ने भी सराहा।
डॉ. रामजीलाल
भारत के तीन महान क्रांतिकारियों—भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी। विरोधियों द्वारा दुष्प्रचार किया जाता रहा है कि गांधी जी ने तीन महान क्रांतिकारियों की जान को बचाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया। तथ्य बताते हैं कि गांधी जी ने उनका जीवन बचाने हेतु भरसक प्रयास किए।
गांधी जी सत्य-अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए शांतिपूर्ण तरीके से स्वतंत्रता चाहते थे। इसके बिलकुल विपरीत यह प्रचार किया जाता है कि भगत सिंह व साथी हिंसात्मक साधनों से स्वतंत्रता चाहते थे। भगत सिंह ने दो घटनाओं—केंद्रीय असेंबली बम कांड व जॉन सांडर्स की हत्या को छोड़कर कोई हिंसा नहीं की । उन्होंने माना विचारों से जागरूक व जनता को लामबंद करके ही क्रांति आ सकती है। भगत सिंह व साथियों द्वारा भी अहिंसात्मक तरीकों को अपनाया गया।
30 अक्तूबर, 1928 को साइमन कमीशन जब लाहौर रेलवे स्टेशन पर पर पहुंचा तो शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों द्वारा ‘साइमन कमीशन गो बैक’ के नारे लगाए गए। इसका नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। लाहौर के पुलिस अधीक्षक, जेम्स ए. स्कॉट ने पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज करने का आदेश दिया। जिसके परिणाम स्वरूप 17 नवंबर, 1928 को लाजपत राय की मृत्यु हो गई। इस राष्ट्रीय अपमान का बदला लेने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने जेम्स ए. स्कॉट को मारने की योजना बनाई। परंतु गलती से उन्होंने जेपी सांडर्स को मार दिया। फिर क्रांतिकारियों पर ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ (1930) नाम से मुकदमा चला।
10 जुलाई, 1929 को मुकदमा शुरू हुआ। सात अक्तूबर, 1930 को ट्रिब्यूनल ने तीनों महान क्रांतिकारियों—भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 24 मार्च, 1931 को फांसी देने की सज़ा की तिथि निर्धारित की। लेकिन जन आक्रोश को देखते हुए एक दिन पूर्व 23 मार्च, 1931 को लाहौर जेल में फांसी दे दी गई।
अक्सर कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सज़ा से बचाने के लिए प्रभावशाली ढंग से प्रयास नहीं किया। दरअसल, गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन, हर्बर्ट एमरसन, यशपाल, मन्मथनाथ गुप्त इत्यादि का मानना रहा है कि गांधी-इरविन दिल्ली समझौते की शर्तों में क्रांतिकारियों को फांसी से बचाने की शर्त नहीं रखी गई।
दरअसल, महात्मा गांधी ने वायसराय को पत्र लिखा था, जिसमें फांसी को स्थगित करने की मांग की गई थी। इस दृष्टिकोण का समर्थन करने वालों में नेताजी सुभाष बोस, डॉ. पट्टाभि सीतारमैय्या, मीरा बेन, एडवोकेट आसिफ अली, इतिहासकार वीएन दत्ता, पत्रकार रॉबर्ट बर्नेज़, भगत सिंह के एक साथी जितेन्द्र नाथ सान्याल, सी.एस. वेणु इत्यादि प्रमुख हैं।
महात्मा गांधी ने सर्वप्रथम 4 मई, 1930 को मुकदमे से संबंधित न्यायाधिकरण के गठन की आलोचना की थी। 11 फरवरी, 1931 को भगत सिंह व उनके साथियों को फांसी की सज़ा से बचाने के लिए की गई अपील को प्रिवी कौंसिल (लंदन) द्वारा ठुकरा दिया गया। महात्मा गांधी–इरविन समझौते के लिए 17 फरवरी, 1931 से 5 मार्च, 1931 तक मीटिंगें हुईं और पत्राचार भी हुआ। महात्मा गांधी ने 18 फरवरी, 1931 को गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन से फांसी को कम करने की बात की। महात्मा गांधी ने वायसराय से कहा, ‘अगर आप वर्तमान माहौल को और अधिक अनुकूल बनाना चाहते हैं, तो आपको भगत सिंह की फांसी को स्थगित कर देना चाहिए। इरविन ने गांधी जी को उत्तर दिया, ‘सज़ा कम करना कठिन है, लेकिन निलंबन निश्चित रूप से विचार करने योग्य है।’ 7 मार्च, 1931 को महात्मा गांधी ने दिल्ली में एक सभा में कहा, ‘मैं किसी को भी फांसी पर चढ़ाये जाने के लिए पूरी तरह सहमत नहीं हो सकता। भगत सिंह जैसे बहादुर व्यक्ति के लिए तो बिल्कुल नहीं।’ 19 मार्च, 1931 को गांधी ने फिर से लॉर्ड इरविन से सज़ा कम करने की अपील की, जिसे इरविन ने मीटिंग की प्रोसिडिंग में नोट कर लिया। बीस मार्च, 1931 को महात्मा गांधी ने लॉर्ड इरविन के गृह सचिव हर्बर्ट इमर्सन से मुलाकात की। गांधी जी ने इरविन से 21 मार्च, 1931 और फिर 22 मार्च, 1931 को फिर मुलाकात की और उनसे सज़ा कम करने का आग्रह किया। 23 मार्च, 1931 को गांधीजी ने वायसराय को पत्र लिखा :- ‘शांति के हित में अंतिम अपील की आवश्यकता है। यदि पुनर्विचार के लिए कोई जगह बची है, तो मैं कहूंगा लोकप्रिय राय सज़ा में कमी की मांग करती है। जब कोई सिद्धांत दांव पर नहीं होता है, तो अक्सर उसका सम्मान करना कर्तव्य होता है। यदि सज़ा में कमी होती है तो आंतरिक शांति को बढ़ावा मिलने की सबसे अधिक संभावना है। फांसी की स्थिति में, शांति निस्संदेह खतरे में है... इन लोगों की जान बचाना सार्थक है, मैं आपसे आग्रह करूंगा कि आप इस कार्य को आगे की समीक्षा के लिए स्थगित कर दें। तब इरविन ने लिखा, ‘यह महत्वपूर्ण था कि अहिंसा के पुजारी ने अपने स्वयं के मूल रूप से विरोधी पक्ष के समर्थकों के पक्ष में इतनी गंभीरता से वकालत की।’
न्यूज़ क्रॉनिकल के पत्रकार रॉबर्ट बर्नेज़ ने अपनी पुस्तक ‘द नेकेड फ़कीर’ में उल्लेख किया है कि गांधी, के तर्कों के कारण इरविन ‘सज़ा को निलंबित करने के बारे में सोच रहे थे, लेकिन पंजाब की नौकरशाही ने सामूहिक इस्तीफे की धमकी से उन्हें दबा दिया।’ राष्ट्रीय अभिलेखागार द्वारा प्रकाशित एक किताब में गांधी जी ने लिखा कि अंग्रेजी सरकार के पास क्रांतिकारियों के हृदय को जीतने का ‘स्वर्णिम अवसर’ था परंतु सरकार इसमें असफल रही। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि गांधी जी ने भगत सिंह को बचाने में ‘सर्वोत्तम’ प्रयास किया।
लेखक दयाल सिंह कॉलेज, करनाल के पूर्व प्राचार्य हैं।