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तकनीकी दक्षता से युद्ध संचालन में शूरवीरता

नये दौर के युद्ध
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निस्संदेह, 21वीं सदी के युद्ध निरंतर स्वरूप बदलते जा रहे हैं। अब आमने-सामने की लड़ाई के स्थान पर आधुनिक मिसाइलों व ड्रोन शक्ति का उपयोग निर्णायक साबित हो रहा है। लेकिन इस युद्ध में आर्थिक क्षति ज्यादा है।

सुरेश सेठ

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वाकई इस सदी में युद्ध और शौर्य के मायने बदल गए हैं। अब आमने-सामने की लड़ाइयों की जगह तकनीकी आधारित युद्ध ने ले ली है। जहां शौर्य का मूल्यांकन सैनिकों द्वारा आधुनिक हथियारों और तकनीक के प्रभावी उपयोग से होता है। आज युद्ध केवल सेना नहीं, बल्कि रक्षा उद्योग और प्रचार तंत्र भी मिलकर लड़ते हैं।

आज के युद्धों में आमने-सामने की लड़ाई लगभग खत्म हो चुकी है। अब सटीक मिसाइलों और ड्रोनों के जरिये सैकड़ों मील दूर से दुश्मन को निशाना बनाया जाता है। शूरवीरता अब तकनीकी दक्षता से युद्ध संचालन में झलकती है। ड्रोनों के युद्ध में लक्ष्य महत्वपूर्ण होता है, न कि सैनिक की उपस्थिति। रूस-यूक्रेन युद्ध इसका ताजा उदाहरण है, जहां यूक्रेनी ड्रोन हमलों से रूस के हवाई ठिकानों को भारी नुकसान हुआ।

सेना के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान के अनुसार, आधुनिक युद्धों का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है। अब युद्ध कृत्रिम मेधा और हाइपरसोनिक तकनीक से संचालित होंगे, जिसके लिए सैन्य बलों को तकनीकी रूप से प्रशिक्षित करना जरूरी है। इन युद्धों में जान की क्षति कम, लेकिन आर्थिक तबाही अधिक होती है। साथ ही, युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि प्रचार तंत्र से भी लड़े जाते हैं, जहां दुश्मन के झूठ का सामना सच से करना पड़ता है।

भविष्य की चुनौतियों को यदि आने वाले युद्धों के संदर्भ में देखा जाए, तो स्पष्ट होता है कि धरती का सच, राजनीति का सच और युद्ध के परिदृश्य अब बदल चुके हैं। तकनीकी बदलाव इतनी तेजी से हुए हैं कि पारंपरिक शौर्य पीछे छूट गया हैै।

पहले युद्ध उद्योगों की तबाही का प्रतीक माने जाते थे, लेकिन अब बिना उद्योगों के सहयोग और समर्थन के युद्ध लड़ा ही नहीं जा सकता। एक ओर जहां सेनानायक युद्ध का नेतृत्व करते हैं, वहीं दूसरी ओर उद्योग जगत भी एक समानांतर युद्ध लड़ता है। अतः यदि हमारे सेनानायक यह कहते हैं कि भारत को हथियारों के उत्पादन में आत्मनिर्भर होना चाहिए, तो यह बात पूरी तरह सही है। न केवल आत्मनिर्भरता, बल्कि रणनीति में अधुनातन हथियारों का निरंतर प्रयोग और उनका नियमित नवीनीकरण भी आवश्यक है।

अब युद्धों में सैंसर, लंबी दूरी तक मार करने वाले हाइपरसोनिक हथियारों, कृत्रिम मेधा, मशीन लर्निंग और क्वांटम तकनीकों का प्रयोग हो रहा है। शूरवीर पायलटों की जगह अब सटीक निशाना साधने वाले ड्रोन ने ले ली है।

हाल ही में वायुसेना प्रमुख ने कहा कि सेना के सशक्तीकरण की बड़ी-बड़ी योजनाएं तो घोषित की जाती हैं, लेकिन वे समय पर पूरी नहीं होतीं। उन्होंने तेजस विमानों की आपूर्ति में देरी को विशेष रूप से चिन्हित किया। यदि कोई योजना घोषित की जाती है, तो उसका समय पर क्रियान्वयन भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने भी कहा कि हमें युद्ध की सच्चाई का सामना करना चाहिए। अपनी त्रुटियों का आकलन कर उन्हें तत्काल सुधारना आवश्यक है। तत्पश्चात दोगुने उत्साह के साथ आक्रामक रणनीति अपनानी चाहिए।

जहां तक प्रचार तंत्र का प्रश्न है, वह भी अब युद्ध का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। आज युद्ध केवल सैनिकों और हथियारों के बीच नहीं, बल्कि प्रचार तंत्रों के बीच भी लड़े जाते हैं। कई समृद्ध देशों ने हथियार निर्माण को व्यापार बना लिया है। उनके लिए युद्ध एक सतत बाजार बन गया है—जहां उनके रक्षा उत्पादों की खपत निरंतर बढ़ती रहे। यही कारण है कि युद्ध का माहौल बनाए रखना भी कुछ देशों की नीति का हिस्सा बन गया है—चाहे वह रूस-यूक्रेन युद्ध हो, चीन और ताइवान के बीच तनाव हो या भारत-पाकिस्तान के बीच जारी छद्म युद्ध।

इस परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी विजय के दावे दुश्मन के झूठ पर भारी पड़ें। हमारा प्रचार तंत्र इतना सशक्त होना चाहिए कि वह दुनिया को सच्चाई बता सके—कि हमने यह युद्ध आतंकवादी गतिविधियों को समाप्त करने के लिए लड़ा था, जो भारत के आम नागरिकों पर हिंसा थोप रही थीं। यह वही हिंसा थी, जिसने महिलाओं का सिंदूर मिटाया और बच्चों के सिर से पिता का साया छीन लिया।

आज के युद्ध आम आदमी की सुरक्षा के लिए लड़े जा रहे हैं—मगर अब न घोड़ों और रथों से, न तीर और तलवार से, बल्कि आधुनिक तकनीकी अनुसंधान और प्रौद्योगिक नवाचारों के जरिए। परमाणु युद्ध की धमकी से अधिक कारगर अब प्रौद्योगिक युद्ध सिद्ध हो रहे हैं।

ऑपरेशन सिंदूर में भारत की सफलता इसलिए उल्लेखनीय रही, क्योंकि हमने नवीनतम हथियारों का सटीक और कुशलतापूर्वक उपयोग किया। यही सफलता हमें भविष्य में चौकसी और तत्परता के साथ हर परिस्थिति में युद्ध लड़ने में सक्षम बनाएगी। यही वक्त की मांग भी है।

लेखक साहित्यकार हैं।

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