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चूहों के मौलिक अधिकार और जांच आयोग

तिरछी नज़र
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चूहे लोकतांत्रिक तरीके से बेखौफ उछल-कूद करते रहे। कुतरने के अपने मौलिक अधिकार का उपयोग करने से पीछे नहीं हटे, जो पेस्टीसाइड चूहों को खत्म करने के लिए ताबड़तोड़ खरीदे थे, उससे चूहों की सेहत पहले से बेहतर हो गई।

वैसे तो आमतौर पर अस्पताल में डॉक्टर, नर्स और मरीज की ही आमद होती है। मगर जब अस्पताल सरकारी हो तो इनके अलावा बलशाली मच्छर, सरपट दौड़ती छिपकलियां और बेखौफ चूहे भी बहुतायत में दृष्टिगत होते हैं। जो लकड़ी का सामान, खिड़की दरवाजों के पर्दे, बरसों से धूल खा रही मेडिकल बिल की फाइलें और बड़े-बड़े डाक्टरों की कुर्सियां कुतर जाते हैं। वैसे भी डाक्टर साहब अपनी निजी प्रैक्टिस की चिंता में इतने लीन रहते हैं कि उनका ध्यान न कुर्सी पर जाता है और न ही उत्पात मचाते चूहों पर।

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बीते दिनों एक बड़े शहर का सरकारी अस्पताल देश भर में सुर्खियों में आ गया। हुआ यूं कि चूहे सामान और मृत शरीर को कुतरते-कुतरते वार्ड में भर्ती नन्हे-नन्हे मासूम बच्चों की अंगुलियां कुतर गए। संवेदनहीनता की पराकाष्ठा के इस युग में जब खबर फैली तो पहले तो दबाने का भरपूर प्रयास किया गया, लेकिन जब मामला संज्ञान में आया तो प्रशासन भी अपनी कुंभकर्णी नींद से जागा। चूहों को सबक सिखाने का मिशन तैयार किया गया, जिसका खर्च लाख्ाों के ऊपर बैठ गया। मगर चूहों की बढ़ती आबादी पर कोई असर नहीं पड़ा। कारिंदे नित नए बिल लगाकर सरकारी मद का मनचाहा उपयोग करते रहे। वहीं दूसरी ओर चूहों का दल यहां-तहां बिल बनाकर सतह को पोला करता गया।

चूहे लोकतांत्रिक तरीके से बेखौफ उछल-कूद करते रहे। कुतरने के अपने मौलिक अधिकार का उपयोग करने से पीछे नहीं हटे, जो पेस्टीसाइड चूहों को खत्म करने के लिए ताबड़तोड़ खरीदे थे, उसमें जमकर भ्रष्टाचार हुआ। चूहों की सेहत पहले से बेहतर हो गई। नकली दवा चूहों के लिए औषधि साबित हुई। वे अंगुलियों के साथ-साथ पंजे को कुतरने की क्षमता रखने लगे।

बहरहाल, चूहों से अस्पताल को मुक्त करने के लिए एक उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन कर दिया गया है, जो यह पता लगाएगी कि चूहों का अस्पताल में बने रहने का कारण क्या है। चूहों की संख्या कितनी है। कितने नर और कितनी मादा है। चूहे किसी विशेष प्रजाति से सम्बन्धित तो नहीं हैं, इनके उन्मूलन से किसी पशु प्रेमी की भावना आहत तो नहीं होगी। चूहों से निजात पाने के लिए विशेष बजट की भी आवश्यकता होगी, जो प्राथमिकता से स्वीकृत किया जाएगा। ऐसे अनेक बिंदुओं पर विचार किया जाएगा, जिसकी कोई समय सीमा नहीं होगी। जब तक जांच की रिपोर्ट लागू होगी तब तक चूहे कई मासूमों के अंगों को कुतर चुके होंगे। इस प्रकार कई जांच कमेटियों का गठन पहले भी किया जा चुका है। उनकी भी रिपोर्ट आना अभी बाकी है। लगता है, इंतजार करना ही इस देश की जनता की विडंबना है।

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