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पुर्तगाली अतीत से सनातन संस्कृति की ओर

गोवा मुक्ति दिवस

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विवेक शुक्ला

गोवा की इमेज इस तरह की बनाई जाती रही कि मानो ये भारत में यूरोप का कोई अंग हो। हां, गोवा पर लंबे समय तक पुर्तगाल का नियंत्रण रहा। उसका असर होना लाजिमी है। अब गोवा अपने सनातन और भारतीय मूल्यों से जुड़ने को बेकरार है। शताब्दियों लंबे विदेशी प्रभाव और हस्तक्षेप के बावजूद गोवा लगातार भारतीय परंपरा के साथ जुड़ा रहा। जिस गोवा के सांस्कृतिक आकर्षण को लेकर कभी एलेक पद्मसी जैसे दिग्गज लेखक कहते थे कि समुद्र के किनारे भारत का यह हिस्सा वेस्टर्न कल्चर का ईस्टर्न गेटवे है, वह गोवा आज सनातन और अध्यात्म के साथ अपने सांस्कृतिक डीएनए पर नाज कर रहा है।

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इस बात में कहीं कोई दोराय नहीं कि भारतीय स्वाधीनता संघर्ष को विचार और नेतृत्व की एक सीध में देखने की चूक जाने-अनजाने खूब हुई है। पर यह चूक आज दीर्घायु नहीं बल्कि दिवंगत है। भारतबोध की समझ और रोशनी में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को देखने की ललक आज हर तरफ है। ललक की इस लाली में जहां स्वाधीनता को लेकर भारतीय मूल्य की गहरी जड़ों की हम शिनाख्त कर पाए हैं, वहीं गोवा मुक्ति संघर्ष जैसे सुनहरे पन्ने भारत के गौरवशाली इतिहास से प्रमुखता से जुड़ रहे हैं। गोवा को पुर्तगालियों के 450 सालों के राज से 19 दिसंबर, 1961 को आज़ादी मिली थी जब भारतीय सेना ने कार्रवाई करते हुए सिर्फ 36 घंटे में गोवा को आजाद कराया था। तब से हर साल 19 दिसंबर को गोवा मुक्तिदिवस मनाया जाता है। समाजवादी चिंतक और राजनेता डॉ. राममनोहर लोहिया ने 18 जून, 1946 को मडगांव में पुर्तगाली औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गोमंतकों में संघर्ष करने का आह्वान किया था। गोवा के लोग खुद को लोहिया जी का ऋणी मानते हैं, जबकि डॉ. लोहिया कहा करते थे- मेरा गोवा पर नहीं, गोवा का मुझ पर ऋण है। गोवा भारतीय आस्था और परंपरा का स्वर्ण कलश बनके जगमगा रहा है, वह अभूतपूर्व है। बड़ी बात यह कि गोवा की इस चमक में विरासत और विकास का गुणसूत्र भी हमें दिखता है।

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बेशक, डॉ. प्रमोद सावंत आज जब अपने प्रदेश की परंपरा और संस्कृति के बारे में बात करते हैं तो यह साफ दिखता है कि वे अपने प्रदेश के विकास और समृद्धि के बीज सनातन मूल्य में देखते हैं, भारत की अध्यात्म यात्रा में देखते हैं। राजनीतिक तौर पर देखें तो गोवा वह राज्य है, जहां जनसंघ के जमाने से भाजपा की जड़ें गहरी रही हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय अक्सर कहा करते थे कि गोवा ने न सिर्फ पुर्तगालियों के खिलाफ लंबा संघर्ष किया, बल्कि गुलामी के खिलाफ भारतीय मूल्य और संस्कार का शानदार आदर्श भी दुनिया के सामने रखा। गौरतलब है कि अंग्रेजों ने भारत पर करीब दो सौ साल शासन किया, लेकिन गोवा के लोगों ने साढ़े चार सौ साल तक पुर्तगालियों को सहा।

इतिहास बताता है कि तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद गोवा भारत का वह हिस्सा है, जहां मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ। 16वीं शताब्दी में जिस मंदिर को पुर्तगालियों ने नष्ट किया था, उस सप्त कोटेश्वर मंदिर को छत्रपति शिवाजी जी ने बनवाया। आज जब सावंत सरकार ने छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा बनवाए गए इस मंदिर के पुनरुद्धार का बीड़ा उठाया है तो यह निस्संदेह एक बड़ी सांस्कृतिक पहल है। मुख्यमंत्री सावंत का संकल्प और उनकी प्रतिबद्धता गोवा के सांस्कृतिक इतिहास का ऐसा आख्यान साबित होने जा रहा है, जिसका मूल्यांकन महज राजनीतिक आधार पर नहीं किया जा सकता।

गोवा के संबंध में यह महत्वपूर्ण है कि यहां की लगभग 60 फीसद जनसंख्या हिंदू है। ईसाइयों की संख्या 28 फीसद है। खास बात यह है कि यहां के ईसाई समाज में भी हिंदुओं जैसी सामाजिक व्यवस्थाएं और परंपराएं हैं। यहां की निर्माण और वास्तु परंपरा में हिंदू प्रभाव साफ दिखाई देता है। मंगेशी मंदिर, शांता दुर्ग मंदिर, महादेव मंदिर, चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर, ब्रह्मा मंदिर, महालसा नारायणी मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर, सप्तकोटेश्वर मंदिर और कामाक्षी मंदिर आदि हिंदू आस्था से लंबे समय से जुड़े रहे हैं। दरअसल, 1000-1200 साल पहले तक तो स्थिति यह थी कि गोवा की सांस्कृतिक पहचान कोंकण काशी के रूप में थी।

पिछले एक दशक में देश में विकास और समृद्धि के जो आख्यान लिखे गए, आज गोवा उसका महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सौ प्रतिशत घरों में नल से जल और बिजली आपूर्ति करने वाला देश का पहला राज्य है। इतना ही नहीं, यह पहला राज्य है कि जहां प्रत्येक गांव में सड़कें हैं। केंद्र सरकार की योजनाएं लागू करने के मामले में भी गोवा बाकियों के लिए नजीर है। पूरे राज्य में उज्ज्वला योजना सौ प्रतिशत लागू की गई। गोवा आज केरोसीन फ्री स्टेट है। यह शत-प्रतिशत शौचालय निर्माण वाला देश का पहला राज्य है। ऐसी योजनाओं की संख्या एक-दो नहीं, बल्कि 13 हैं, जिनमें गोवा बाकी प्रदेशों के मुकाबले शीर्ष पर है।

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