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वर्दी में फौजी से लेकर यूनिकॉर्न बनने तक

युद्धक्षेत्र से लेकर स्टार्टअप तक, निष्ठा भारत का सबसे ज्यादा अप्रयुक्त संसाधन है। यह ऑपरेशन सिंदूर में साबित भी हुआ। प्रतिवर्ष 70,000 प्रशिक्षित सेवानिवृत्त फौजी देश के अर्थतंत्र में शामिल होते हैं। इस नवीकरणीय पूंजी में कौशल, निर्णय शक्ति छिपी...
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युद्धक्षेत्र से लेकर स्टार्टअप तक, निष्ठा भारत का सबसे ज्यादा अप्रयुक्त संसाधन है। यह ऑपरेशन सिंदूर में साबित भी हुआ। प्रतिवर्ष 70,000 प्रशिक्षित सेवानिवृत्त फौजी देश के अर्थतंत्र में शामिल होते हैं। इस नवीकरणीय पूंजी में कौशल, निर्णय शक्ति छिपी है। एक द्वितीय लाभांश नीति बनाकर इन सेवानिवृत्त दिग्गजों को उन नियोक्ताओं से जोड़ सकते हैं, जो इन्हीं क्षमताओं को ढूंढ़ रहे हैं।

भारत की अधिकांश नीतिगत शब्दावली अभी भी सैनिकों की पेंशन को एक ‘बोझ’ के रूप में वर्णित करती है। जबकि यह एक ग़लतफ़हमी है। जिसे दायित्व कहा जाता रहा है, वह दरअसल एक विलंबित मान्यता है। जिसे लागत कहकर खारिज किया जाता है, वह असल में गणतंत्र के लिए द्वितीय लाभांश है। कुरुक्षेत्र से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक, निष्ठा भारत में निरंतर क्रम है, और यह 40 साल उम्र में खत्म नहीं हो जाती।

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ऑपरेशन सिंदूर इसका ताज़ा प्रमाण है : 22 मिनट की सटीकता, 88 घंटे की सतर्कता, और फिर युद्धबंदी। आज की बिखरी विश्व व्यवस्था में बहुत कम राष्ट्र अपने पास इतने बड़े पैमाने का अनुशासन होने का दावा कर सकते हैं। निष्ठा कोई नई नहीं है। इसने 1971 में टैंकों को मेघना नदी पार करवा दी, 2025 में इसी ने दृष्टि की सीमा से परे ठिकानों पर सटीक आयुधों की मार का प्रदर्शन किया। निष्ठा भारत की सबसे बड़ी रणनीतिक विरासत है।

पेंशन के मायने ही गलत : ब्रिटिश हुकूमत ने पेंशन की रूपरेखा एक मान्यता के रूप में नहीं बनाई थी। एक ऐसा बंधन, जो वफादारी को बांधे रखने में पर्याप्त, लेकिन अपने हाल पर छोड़ देने में सदा नाकाफी। आजाद भारत को यह रूपरेखा विरासत में मिली, और अर्थशास्त्रियों ने पेंशन को आर्थिक घाटा व निकासी मान, इस गलती को और पुख्ता किया।

लेकिन जिसे हमारे बहीखाते ‘पेंशन बोझ’ कहते हैं, वह वास्तव में नवीकरणीय पूंजी है : प्रति वर्ष 70,000 प्रशिक्षित सेवानिवृत्त फौजी, बिना किसी पुन: उपयोग योजना के, देश के अर्थतंत्र में शामिल होते हैं। उनपर लगे प्रत्येक रुपये में दशकों के कौशल, निर्णय शक्ति और सहनशीलता छिपी है, एक ऐसी पूंजी जिसे कोई अन्य राष्ट्र इतनी आसानी से व्यर्थ जाने देना नहीं चाहेगा।

हमारा अंध बिंदु : एक राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक के एक लेख में भानु प्रताप ने लिखा है : ‘अग्रणी व्यवसायियों को अक्सर शिकायत रहती है कि देश में कुशल मानव पूंजी की कमी है, हालांकि इसका निर्माण करने को निवेश करने में वे सदा अनिच्छुक रहे।’ इस बीच, हर साल हमारा गणतंत्र अपनी सबसे अनुशासित, मिशन को तैयार प्रतिभा को फालतू हुआ मानता आ रहा है, जबकि उन्हीं क्षेत्रों में कुशल कामगार लाने या पुनः प्रशिक्षण पर अरबों खर्चे जाते हैं। यह अकुशलता नहीं बल्कि औद्योगिक अनदेखी है। सही नीति से स्थिति सुधर सकती है।

प्रतिबद्धता बनाम अनुबंध : भारत स्थायी भरोसे की अहमियत समझता है; यह स्मृति में अंकित है। फिर भी, नीतिगत शब्दावली में, उस भराेसेेे को का अर्थ अक्सर रोज़गार से जोड़ दिया गया है। एक ऐसे लोकतंत्र में, जहां नौकरी ताकत पाने का शॉर्टकट हो, पेंशन को हक जताना मान लिया गया। बेढंगी योजनाएं नौकरी को अनुभव पाने का जरिया और प्रतिज्ञा को अनुबंध के रूप में देखने लगीं।

अल्प-सेवा योजनाओं का मोल : वे भर्ती को व्यापक बनाती हैं और युवा ऊर्जा लेकर आती हैं। जो लोग सेना छोड़ देते हैं, वे समाज में अनुशासन साथ लेकर जाते हैं। किंतु अनुबंध, सोच-समझकर कुछ ऐसा बनाया गया है कि भर्ती होते वक्त से ही सेवानिवृत्ति के लिए भी मानसिक तैयार कर दे। दूसरा लाभांश लंबी सेवा पर निर्भर करता है, जहां प्रतिबद्धता, निर्णय क्षमता और फिर आगे पूंजी के रूप में परिपक्व हो जाती है। दृढ़ता तभी बढ़ती है जब सैनिक वर्दी को अपना घर, सम्मान और कई मामलों में विरासत होने का दावा कर सके। द्वितीय लाभांश की राह लंबी है, यह अनुभव को नवीनीकरण से जोड़ता है, जहां नवोन्मेष करने वाले को अपने लिए बीज मिल सकते हैं।

विदेशों में विरोधाभास : जहां भारत में निष्ठा को बोझ का नाम दिया जा रहा है वहीं दूसरे देशों ने इसे कतई त्याग दिया : रूस और यूक्रेन फिर से सामूहिक सैन्य भर्ती करने पर निर्भर हो गए हैं-संख्याबल बनाए रखने को अनुभव से समझौता और मारे गये सैनिकों की जगह लेने के लिए नए युवा लाना। पश्चिम एशिया सशस्त्र लड़ाकू गुटों में बंटा हुआ है, जहां निष्ठा अर्जित नहीं, खरीदी जाती है। नतीजन, अंतहीन लड़ाइयां, बरसों खिंचने वाले युद्ध, जिनको केवल बही खातों और हताहतों के आंकड़ों से मापा जाता है। इसके उलट, भारत के पास सेवानिवृत्त फौजी रूपी अनुशासित लाभांश उपलब्ध हैं - बतौर अनाड़ी रंगरूट नहीं, न ही भाड़े के बंदूकधारी, बल्कि उच्च कौशल और निर्णय दक्षता प्राप्त स्त्री-पुरुष।

घर में व्यर्थ जाता लाभांश : हर साल हज़ारों सैनिक अपनी पेशेवर क्षमता के चरम पर सेवानिवृत्ति श्रेणी में शामिल हो जाते हैं - अगुवाई करने की दक्षता प्राप्त इंजीनियर, आपूर्ति शृंखला में पारंगत,चिकित्सक, संचार विशेषज्ञ आदि। गणतंत्र इस पूंजी को आकार देने में दशकों लगा देता है, लेकिन फिर इनके पुन: उपयोग की कोई योजना न बनाकर, इसको व्यर्थ जाने देता है। फौज में आपूर्ति शृंखला में काम चुका एक पूर्व सैनिक इस क्षेत्र में कमियां दूर कर सकता है। फील्ड अस्पतालों में प्रशिक्षित नर्सिंग सहायक गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को विस्तार दे सकती है। उन्नत प्रणालियों में कुशलता अर्जित कर चुके एक तकनीशियन को सेवानिवृत्ति उपरांत अक्सर बैंक गार्ड लगाकर उसका सारा अनुभव बेकार जाने दिया जाता है। फौजियों से बनी प्रादेशिक सेना को भी पुनर्कल्पित कर,नागरिक सुरक्षा में व्याप्त कमियों को पाटा जा सकता है। ये पुनर्निवेश की बाट जोहते लाभांश हैं।

सेवा कौशल से यूनिकॉर्न कपंनी बनने तक : गणतंत्र पहले से ही ऐसे सैन्य कौशल गढ़ता आया है जो किसी स्टार्टअप अर्थतंत्र में सबसे अधिक मांग वाली क्षमताओं को प्रतिबिंबित करते हैं: तनाव में भी सही निर्णय क्षमता, बड़े पैमाने पर रसद पहुंचाना, फील्ड में तकनीक उपयोग, विपरीत परिस्थितियों में धीरज कायम रखना और अनिश्चितता भरे माहौल में दल की नेतृत्व क्षमता। ये कोई कपोल-कल्पित अवयव नहीं हैं; बल्कि यूनिकॉर्न (बिलियन डॉलर की कंपनी) बनाने में जरूरी डीएनए हैं। एक द्वितीय-लाभांश नीति परस्पर जरूरतों का मिलान कर करके, सेवानिवृत्त दिग्गजों को उन नियोक्ताओं से जोड़ सकती है, जो इन्हीं क्षमताओं को ढूंढ़ रहे हैं, मसलन, साइबर, एआई, स्वास्थ्य सेवा, आपूर्ति शृंखला, स्वच्छ ऊर्जा आदि क्षेत्र में। भारत जिन्हें अब व्यर्थ जाने दे रहा, वह अरबों डॉलर के उद्यमों की अगली लहर के लिए कच्चा माल है।

वैश्विक प्रमाण : पश्चिमी सेवानिवृत्त फौजी साइबर सुरक्षा, आपूर्ति शृंखला और एआई क्षेत्र में यूनिकॉर्न कंपनियां खड़ी कर चुके हैं, जिन्होंने रणभूमि में समस्या आने पर त्वरित सही निर्णय लेने में अर्जित अपने अनुभवों को अरबों डॉलर कमाने में बदल दिया। दक्षिण कोरिया में, अनिवार्य सेना सेवा ने जहाज निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स और गेमिंग उद्योग में अग्रणी लोगों को जन्म दिया है, जो उसकी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हैं। इस्राइल ने सेवानिवृत्त फौजियों को अपने स्टार्टअप अर्थतंत्र की नींव बना दिया। भारत के पास इसका अपना प्रमाण है। नौसेना अधिकारी आरोग्यस्वामी पॉलराज ने सोनार सिस्टम पर काम करते वक्त के अनुभव से मीमो (मल्टीपल इनपुट और मल्टीपल आउटपुट) तकनीक का विकास किया, जो आधुनिक वायरलेस नेटवर्क उपकरण का आधार है। अरबों उपकरण उनकी इस खोज पर निर्भर हैं, जबकि भारत इसका बहुत कम लाभ उठा पाया।

युद्ध का बदलता स्वरूप : अब युद्धक क्षमता का मूल्यांकन केवल संख्याबल और मारक क्षमता से नहीं मापा जाता। विदेशों में,सर्वोत्तम हार्डवेयर उपयोग हेतु तैनात हैं, फिर भी यूक्रेन युद्ध बिना किसी समाधान अपने चौथे वर्ष में भी जारी है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, हमने कुछ अलग देखा यानी किफ़ायती आयातित एवं स्मार्ट स्वदेशी आयुध एवं उपकरण, जो अनुभवी और गहन प्रशिक्षित संज्ञानात्मक ‘स्किनवेयर’ द्वारा संचालित हैं। युद्ध विराम से पहले 22 मिनट और 88 घंटे तक टकराव चला, उसके बाद संयम बरतने वाली शानदार राजनीतिक रणनीति। यह किसी दुश्मन के लिए अनुशासन-चालित, असहनीय सम्मिश्रण होता है।

ईश्वरीय कृपा और धुरी : विदेशों में जिन संघर्षों को हम आज देखते हैं, वे एक अग्नि परीक्षाएं हैं, उनके के लिए महंगी, किंतु हमारे लिए शिक्षाप्रद। यह अनुबंध की सीमाओं को उजागर करता है, और हमें याद दिलाता है कि क्या ज्यादा देर तक टिकाऊ है। सबक स्पष्ट है कि भारत का द्वितीय लाभांश घर बैठा इंतज़ार कर रहा है, वर्दी पहनकर सेवा करने और यूनिकॉर्न कंपनी बनाने की संभावना लिए।

निवारण का हमारा नुस्खा : किफ़ायती और स्मार्ट (एआई युक्त) युद्धक सामग्री। द्वितीय लाभांश से निर्मित यूनिकॉर्न कंपनियों का साथ। निष्ठा जो कभी सेवानिवृत्त नहीं होती। रीढ़ के रूप में देशभर में फैली हमारी विरासत एक ताकत है। यह 1971 में कारगर रही व 2025 में भी काम कर गई। यह निरंतर क्रम है। हमारा प्रतिज्ञापत्र हमारी निष्ठा है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है। संयम से तपकर सख्त हुई हमारी विरासत हमारी शक्ति है।

आत्मनिर्भरता हमारा भविष्य है - कालातीत, अविभाज्य और हमारा अपना।

लेखक पश्चिमी सैन्य कमान के पूर्व कमांडर व पुणे इंटरनेशनल सेंटर के संस्थापक सदस्य हैं।

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