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प्रदूषण से यारी, हवा पर धुएं की सवारी

तिरछी नज़र

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केवल गाल बजाने और अंगुली उठाने से धुआं रुकेगा नहीं। हर व्यक्ति को इसकी ज़िम्मेदारी लेनी होगी, वरना बातें रुकती कहां हैं, हवा हो जाया करती हैं!’

इन दिनों एनसीआर दिल्ली में बात निख़ालिस हवा पर टिकी है। कहते हैं वह बिना बात के बिगड़ गई है? बातें तो अक्सर हवा हो जाया करती हैं। सारी सीमाएं तोड़कर कहीं भी पहुंचने में सक्षम हो जाती हैं। उन कानों तक भी पहुंच जाती हैं जहां नहीं पहुंचना चाहिए। बिगड़ी बातें फौरन हवा होती हैं। कानों-कान हो जाती हैं और फिर बिगड़ी बात बनने की कोई गुंजाइश नहीं रहती। बात बिगड़ती ही चली जाती है!!

अभी हवा, धुएं की बुरी संगत में है। धुआं किसी का सगा नहीं होता। आग का भी नहीं, जिससे वह पैदा होता है! धुआं अपनी जननी को छोड़कर उड़ जाता है। हर बरस की तरह इस बार भी देश की राजधानी में जा घुसा है। आतंक फैला रहा है। दमघोंटू हो गया है। गली-मोहल्ले में बदहवास घूम रहा है। जनपथ पर मार्चपास्ट कर रहा है। एयरपोर्ट पर यात्रियों को धमकाने में जुटा है।

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कुल मिलाकर धुआं चर्चा में है। इंटरनेट पर दौड़ रहा है। व्हाट्सएप और फेसबुक पर अफवाहों की मानिंद फैल रहा है। अखबारों की सुर्खियां बना हुआ है। टीवी पर छाया हुआ है। मास्क व्यापारियों की उगाही का हथियार बना हुआ है। धुएं पर सवार सवाल, जुबान दर जुबान जुगाली हो रहे हैं। इन सवालों के न कोई जवाब हैं, न ही कोई हल। किसी पत्रकार ने एक मास्कधारी नेता के सामने माइक अड़ाते हुए पूछा, ‘देश की राजधानी में वायु प्रदूषण का ये हाल है? आप क्या कहेंगे?’ नेताजी कार में अंतर्ध्यान होने के पूर्व उवाचे, ‘आप भी मास्क लगाकर रखिए।’

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धुएं का गुबार नेता जी की कार के पीछे दौड़ा। वह उनके जवाब से असंतुष्ट था। अब तो धुएं का भी दम घुटने लगा था। दिल्ली स्टेशन पहुंचकर एक यात्री के गले से लिपट गया। बिलखते हुए बोला, ‘इसमें मेरी गलती नहीं है। ग़लती मानवीय भूल और लापरवाही की है। बिना आग के धुआं नहीं उठता। बिना सहारे तो मैं चल भी नहीं सकता। मेरी तासीर ऐसी है कि पैदा होते ही हवा पर सवार हो लेता हूं। जहां हवा ले जाती है वहीं चल देता हूं। राजनीति के गलियारों में अक्सर हवाएं घूमती हैं। दिल्ली के गलियारे हवाओं के लिए मुफीद हैं।’ धुआं अब भी संतुष्ट न था। सो बोलता ही गया, ‘लोगों को अपने गिरेबान में झांककर देखना चाहिए। उनकी अज्ञानता की आग जहरीले धुएं की ज़िम्मेदार है। वे पर्यावरण के प्रति चेतना शून्य हैं। केवल गाल बजाने और अंगुली उठाने से धुआं रुकेगा नहीं। हर व्यक्ति को इसकी ज़िम्मेदारी लेनी होगी, वरना बातें रुकती कहां हैं, हवा हो जाया करती हैं!’

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