सौरभ जैन
सुबह उन्होंने बापू की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। अपने लंबे भाषण में ‘बापू अमर रहें’ के नारे लगाए। यूं तो बापू से उनका कोई विशेष प्रेम नहीं था। सरकारी आयोजन को मिलने वाले मीडिया कवरेज की लालसा उन्हें माइक तक ले आती थी। बापू के सहारे वे अपनी प्रसिद्धि देख रहे थे। सुबह अखबारों में अपनी बड़ी-सी फोटो देखने की उम्मीद से वे रात में जल्दी सो गए। यह क्या, रात में अचानक बापू उनके सपने में आ गए। वे घबराए… डर के मारे चिल्लाए ‘दूर रहिये मुझसे, चले जाइये…!’ बापू ने कहा-डरो मत मेरे पास कोई शस्त्र नहीं है, मैं अहिंसावादी हूं, किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता।
‘किधर है मेरी एसपीजी… गार्ड्स देखो, धोती में यह कौन चला आया है…!’ ‘अरे! भाई तुम शांत रहो, यह लाठी भी मेरे सहारे के लिए है। मुझे देखकर तुमको कितना पसीना आ रहा है। रुको, मैं पानी लेकर आता हूं।’ बापू ने पानी का गिलास आगे बढ़ाया। पानी गले के अंदर और आवाज बाहर निकली, ‘कौन हैं आप?’ बापू बोले, ‘मैं वही हूं, जिसकी प्रतिमा पर सुबह तुमने माला पहनाई थी।’
जो दिन भर बापू नाम की माला जपते हैं, यदि बापू उनके सपने में भी आ जाये तो वे डर जाते हैं। इस देश के नेताओं ने बापू की तस्वीर से ही प्रेम किया है। चाहे कोई उनका कितना ही विरोध करे मगर उनकी तस्वीर वाले नोट को कोई भी इस आधार पर अस्वीकार नहीं करता कि वह बापू का विरोधी है। हर बापू विरोधी उनकी तस्वीर वाले नोट का प्रेमी होता है। जब बात धन की आती है तब विचारधारा को लकवा मार जाता है। वैसे बापू अपरिग्रह का पालन करते थे, नेताओं ने अपने अपरिग्रह की लिमिट करोड़ों तक कब बढ़ा ली, पता ही नहीं चला। बापू के अपरिग्रह की परिभाषा अलग थी, नेताओं ने शहरों के नामों की तरह अपरिग्रह को भी बदल दिया।
अब देश में आज़ादी का अमृत महोत्सव और महापुरुषों का अपमान, यह दोनों एक साथ चल रहा है। कुछ दिनों में कोई न कोई बापू के बारे में कुछ ऐसा बोल ही देता है जो उसे नहीं बोलना चाहिए। राजनीति का एक बड़ा वर्ग मजबूरी में बापू-बापू करता है, क्योंकि उनके पास करने को दूसरा कुछ नहीं है। विदेशों में सम्मान भी बापू के नाम से ही मिलता है। अब कोई अमेरिका जाए और कहे कि वह गोडसेवादी है तो उसे वापसी का टिकट भी नहीं मिलेगा। यह बात अलग है कि हमारे यहां वह चुनाव जीत जाता है।
इस देश की विडंबना देखिए, गांधी ने क्या कहा, यह बहुत कम लोग जानते हैं, गांधी के बारे में उन्होंने क्या कहा, यह सबको पता है। अच्छाई और बुराई के प्रसार की गति में यही अंतर होता है। इस देश में यही हो रहा है, बुराई बेरोकटोक 4जी स्पीड में फॉरवर्ड हो रही है। गांधीजी के विचारों को स्ट्रगल करना पड़ रहा है। वे गांधी का विरोध इसलिए नहीं करते कि वे उनके बारे में सब कुछ जानते हैं, बल्कि इसलिए करते हैं कि उन्हें बापू के बारे में कुछ नहीं पता।