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जनतंत्र की अनिवार्य शर्त स्वतंत्र अभिव्यक्ति

विश्वनाथ सचदेव हाल ही में संपन्न हुए जी-20 आयोजन की ‘शानदार सफलता’ के बारे में बहुत कुछ कहा जा चुका है। यह बात अपने आप में कम महत्वपूर्ण नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी के आलोचक भी यह बात स्वीकार कर रहे...

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विश्वनाथ सचदेव

हाल ही में संपन्न हुए जी-20 आयोजन की ‘शानदार सफलता’ के बारे में बहुत कुछ कहा जा चुका है। यह बात अपने आप में कम महत्वपूर्ण नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी के आलोचक भी यह बात स्वीकार कर रहे हैं कि कुछ सदस्य देशों के विरोध के बावजूद इस सम्मेलन में एक ‘सर्वसम्मत’ सामूहिक विज्ञप्ति जारी की जा सकी। भारत से लेकर अमेरिका तक के कॉरिडोर का मुद्दा हो या रूस-यूक्रेन का मुद्दा या फिर अफ्रीकी यूनियन को जी-20 का सदस्य बनाने का मामला, इन सबको भारत की दृष्टि से जी-20 की महत्वपूर्ण उपलब्धियों के रूप में ही गिना जायेगा। जहां तक इस पूरे आयोजन का सवाल है, निश्चित रूप से यह भव्य और शानदार था। मज़ाक में ही सही, पर कहा जा रहा है कि जी-20 के आगामी मेज़बान के लिए आयोजन की यह भव्यता एक बड़ी चुनौती बन जायेगी।

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आयोजन की समाप्ति पर हमारे प्रधानमंत्री मीडिया से ‘मिलने’ आये थे। उम्मीद की जा रही थी कि वे संभवत: मीडिया को संबोधित करेंगे, पर वह हाथ हिलाते हुए ‘सबको धन्यवाद’ कह कर ही उत्सुक मीडिया के सामने से निकल गये। मीडिया की निराशा स्वाभाविक है। सच पूछा जाये तो यह एक मुद्दा है जिसे लेकर भारत में, और भारत से बाहर भी, चर्चा हो रही है। हमारे प्रधानमंत्री प्रेस के सवाल-जवाब से कतराते हैं, यह बात जग-जाहिर है। भाजपा सरकार के दो कार्यकाल पूरे हो रहे हैं। इन लगभग नौ सालों में प्रधानमंत्री का एक भी प्रेस-सम्मेलन में भाग न लेना चर्चा का ही नहीं, आलोचना का विषय भी बना हुआ है। और यह भी सही है कि प्रधानमंत्री मोदी इस आलोचना से परेशान होते हुए भी नहीं दिख रहे। लगता है उन्हें विश्वास है कि उनका मीडिया-प्रबंधन इस आलोचना से आसानी से उबर सकता है।

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दुनिया भर के मीडिया कर्मी इस सम्मेलन को कवर करने के लिए आये हुए थे। सबके पास पूछने के लिए कुछ था। खासकर दुनिया के इतने बड़े-बड़े नेताओं का सम्मेलन मीडिया के लिए भी एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। उम्मीद की गयी थी कि सम्मेलन की संयुक्त विज्ञप्ति के जारी किये जाने के अवसर पर राष्ट्राध्यक्षों की द्विपक्षीय वार्ताओं के बारे में बड़े नेता मीडिया से मुखातिब होंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। और कहा यह जा रहा है कि सम्मेलन के मेज़बान राष्ट्र भारत ने ऐसा कुछ होने नहीं दिया। भारत-अमेरिका की द्विपक्षीय वार्ता के बाद मीडिया को बहुत उम्मीद थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री सामूहिक रूप से मीडिया को संबोधित करेंगे- फिर चाहे यह संबोधन प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान हुए एक-एक सवाल जैसा ही क्यों न हो। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं।

यह नहीं बताया जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के साथ आये पत्रकारों को संबोधित करने का अवसर उन्हें नहीं दिया गया। अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रवक्ता के अनुसार ‘राष्ट्रपति बाइडेन ऐसी प्रेस-वार्ता के लिए तैयार थे, पर मेज़बान राष्ट्र की असहमति के कारण ऐसा हो नहीं पाया।’ अपने मीडिया से राष्ट्रपति बाइडेन ने बात तो की, पर भारत में नहीं, इंडोनेशिया में। वहां पहुंचकर उन्होंने यह कहना भी ज़रूरी समझा कि उन्होंने जी-20 सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी से हुई बातचीत में प्रेस की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा का मुद्दा भी उठाया था। भारत की ओर से अभी तक इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है, पर अपने आप में यह बात कम महत्वपूर्ण नहीं है कि भारत और अमेरिका के नेताओं ने इस विषय पर बातचीत की। अमेरिकी राष्ट्रपति ने वियतनाम में जाकर बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से ‘मानवीय अधिकारों, प्रेस की स्वतंत्रता और सिविल सोसायटी के सम्मान’ करने की बात कही थी। ज्ञातव्य है कि प्रधानमंत्री मोदी जब अमेरिका की राजकीय यात्रा पर गये थे तब भी वार्ता के दौरान यह मुद्दे उठे थे और बाद में चर्चा का विषय भी बने थे।

प्रेस की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा का सवाल जनतांत्रिक मूल्य और आदर्शों के साथ जुड़ा है। अमेरिका और भारत दोनों जनतांत्रिक देश हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के संदर्भ में दोनों देश अपनी प्रतिबद्धता घोषित करते रहते हैं। दोनों देशों के संविधानों में इसका स्पष्ट उल्लेख किया गया है। इसीलिए यह बात थोड़ी अजीब लगी थी जब बड़े नेताओं ने मीडिया से सीधे बात करने में अपनी असमर्थता दिखायी। आखिर वह क्या विवशता थी जिसके चलते इस आशय का निर्णय किया गया। इस जी-20 सम्मेलन में मीडिया के लिए विशेष प्रबंध किये गये थे। इस बात की भी सावधानी बरती गयी थी कि मीडिया को दी गयी सुविधाओं का समुचित प्रचार हो। लेकिन सम्मेलन के आखिरी दिन प्रधानमंत्री मोदी का मीडियाकर्मियों के सामने से हाथ हिलाते हुए निकल जाना यह भी बता रहा था कि कहीं कुछ है जो हमारे प्रधानमंत्री को मीडिया से परहेज़ रखने के लिए विवश करता है।

प्रधानमंत्री मोदी की सरकार का दूसरा कार्यकाल समाप्त होने जा रहा है। वे शायद दुनिया के अकेले ऐसे जनतांत्रिक नेता होंगे जिसने प्रेस से एक निश्चित दूरी बनाये रखना ज़रूरी समझा है। प्रधानमंत्री की एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं हुई पिछले नौ-दस सालों में। एक बार ज़रूर आये थे प्रधानमंत्री पत्रकारों के समक्ष, पर तब उनसे पूछे गये सवालों के जवाब गृहमंत्री अमित शाह ही दे रहे थे। उस ‘प्रेस-वार्ता’ में प्रधानमंत्री ने पूरा समय चुप्पी साध रखी थी।

यहां यह कहना ज़रूरी है कि अपने इस लंबे कार्य-काल में प्रधानमंत्री जी ने कुछ पत्रकारों से बात अवश्य की है। टीवी पर भी बात करते हुए दिखे हैं प्रधानमंत्री। पर कुल मिलाकर यह ऐसे ही पत्रकार थे जो उनसे यह जानना चाह रहे थे कि ‘वह आम काटकर खाना पसंद करते हैं या चूस कर’!

यह विस्मय का चिह्न हटना ही चाहिए। प्रेस की स्वतंत्रता और महता जनतांत्रिक व्यवस्था का अभिन्न और ज़रूरी अंग है। न इसकी उपेक्षा होनी चाहिए, न इसका दुरुपयोग। दुर्भाग्य से जी-20 के इस शानदार आयोजन में यह कमी कहीं न कहीं खलने वाली है। जनतंत्र की जननी कहते हैं हम अपने देश को। आयोजन के दौरान राजधानी दिल्ली में इस आशय के ढेरों पोस्टर भी लगे थे। लेकिन स्वतंत्र और सजग प्रेस की यह जनतांत्रिक शर्त कहीं न कहीं अधूरी रह गयी। इस ‘भव्य’ और ‘सफल’ आयोजन के कर्ता-धर्ताओं को यह अवश्य बताना चाहिए कि अमेरिकी पत्रकारों को भी अमेरिका के राष्ट्रपति से बात करने के लिए वियतनाम तक पहुंचने का इंतजार क्यों करना पड़ा? और यह भी कि अमेरिकी प्रवक्ता का यह कहना कितना उचित है कि भारत के प्रधानमंत्री- कार्यालय ने अनुमति नहीं दी थी, अन्यथा राष्ट्रपति बाइडेन तो प्रेस- वार्ता के लिए तैयार थे?

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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