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शब्दों में फूल और जेब में बारूद

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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शमीम शर्मा

‘शांति के मसीहा’ अब ‘बारूद के माफिया’ हैं जो शांति का नारा देकर पहले जंग करवाते हैं, सिर फुड़वाते हैं फिर हेलमेट बेचते हैं। जो हर मुल्क को बारूद की घुट्टी पिलाने का धंधा करते हैं वे ही शांति के कबूतर बनने की फिराक में हैं। कमाल के लोग हैं जो दुनिया की छाती पर सुख-चैन का नाटक करते हुए छुरी फेर रहे हैं। एक हाथ में अमन का ध्वज और दूसरे से धोबी पछाड़ दे रहे हैं। यह कूटनीति है या कपटनीति? महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला जैसे शांति के असली दूतों की आत्मा जब इन नकली शांति-पुरोधाओं के कारनामे देखती होगी तो कराह उठती होगी।

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दुनिया का हर शक्तिशाली देश अब कमजोर के सीने पर बैठकर बोल रहा है कि बोल शांति। और दूसरे ही पल हजारों लोगों की छाती और छत दोनों गायब कर देता है। ये वे लोग हैं जो हाथ में चाकू लेकर गले मिलते हैं। हिरण को शेर के साथ लंच करने के न्यौते भेजते हैं।

दुनिया को शांति का उपदेश देने वालों की जेब में नये-नये बम-मिसाइल का ब्लू प्रिंट होता है। ये वो लोग हैं जो हथियारों की बिकवाली कर नोबेल पीस प्राइज पर निगाह रखते हैं। इनके दफ्तर में टेबल के नीचे परमाणु बटन होता है। ये वो लोग हैं जो शांति की बात ऐसे करते हैं जैसे कसाई हलवाई बनने का दावा करे। ये ही लोग बारूद की दुकान में शांति की अगरबत्ती बेचने का नाटक करते हैं। ये शांति के सौदागर नहीं, बारूद के व्यापारी हैं। जो सचमुच शांति चाहता है, वो पहले अपने हथियार ज़मीन पर रखता है, न कि दूसरे की कमर में छुरा घोंपकर यह कहता है कि हम लायेंगे तुम्हारे लिये शांति।

आज जरूरत है कि दुनिया इन नकली शांति-पुरुषों की असलियत पहचाने। उनसे सावधान रहना होगा जिनके शब्दों में फूल हों और जेब में बारूद। जो खुद मिसाइल पर बैठकर प्रवचन देता है, वो न तो गुरु हो सकता है, न रक्षक, वह सिर्फ सौदागर होता है... हथियारों का, झूठ का और मौत का।

जिनके बम बच्चों की किताबें जला दें, उन्हें शान्ति रक्षक नहीं, मानवता का अपराधी कहते हैं। जो हथियार बेचकर शांति लाना चाहता है, वो दोगलेपन का पर्याय है। असली शांति वही जानता है जिसके बच्चे स्कूल जाते हों, बंकर नहीं।

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एक बर की बात है अक सुरजे नैं बिणा किसी बात के नत्थू के गाल पै खैंच कै रैपटा मार्या। नत्थू गुस्से म्हं लाल-पीला होकै बोल्या- क्यूं रै! मजाक म्हं मार्या अक असल म्हं? सुरजा आंख काढते होये बोल्या- असली का मार्या है। नत्थू बोल्या- फेर ठीक है, क्यूंक मन्नैं मजाक पसंद कोनी।

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