Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

राशन में फिक्स कोटा, फ्री मिले डाटा

तिरछी नज़र
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

अंगूठा छाप होने के बावजूद जनकलाल अंगूठा चलाने में दक्ष है। रील सरका लेता है। व्हाट्सएप चला पाता है। देश लेन-देन के मामले में तेजी से ‘डिजिटलाइज’ हो रहा है। वह अपनी बीवी ‘लाड़ली’ के खाते में जमा-पूंजी, बिना झंझट ‘यूपीआई’ से उड़ा लेता है।

जब आदमी के सपने पूरे होने की संभावना समाप्त हो जाती है, तब उसे सपने में सपना दिखाई देने लगता है। चिंतक मानते हैं कि आदमी को सपने जरूर देखना चाहिए। सपने देखेंगे तो साकार होने की संभावना रहती है। देखेंगे ही नहीं तो साकार क्या ख़ाक होंगे? लोगों ने रोटी के सपने देखे तो राशन मिलने लगा। मकान के सपने देखे और अपना-घर हो गया। बहनों ने सपना देखा और नेताओं की लाड़ली हो गईं। नेता, इंजीनियर और ठेकेदारों ने शहरी विकास का सपना देखा और उनका विकास हो गया। वोट के सपने देखने से जनता के मंसूबे भी साकार हो जाते हैं।

सपने में देखे गए सपनों की एक खासियत है। ये सपने में ही साकार हो पाते हैं। मेरा सपना ज़रा टेढ़े टाइप का है। साकार होने की कोई गुंजाइश नहीं है। इसलिए सपने में सपना देखा कि राशन की दुकान में आटा उंह ‘डाटा’ भी मिल रहा है। मिलना भी चाहिए। यह बहुत जरूरी है। जैसे ‘भूखे भजन न होए गोपाला’ वैसे ही ‘भूखे मोबाइल न चले हो लाला!’ मोबाइल की भूख डाटा से मिटती है। इन दिनों आटा की बजाय ‘डाटा’ की खपत बेइंतिहा बढ़ गई है। ‘हर घर जल’ की माफिक ‘हर घर डाटा योजना’ लाना चाहिए। सभी को डाटा चाहिए। पेट की भूख तो कैसे भी मिटाई जा सकती है। डाटा भीख में भी नहीं मिलता। किसी बच्चे को दूध में पानी मिलाकर बहलाया जा सकता है, लेकिन डाटा निखालिस लगता है।

Advertisement

बहरहाल, सपने में सपना दिखा कि राशन की दुकान में फ्री-डाटा का कोटा फिक्स कर दिया गया है। जनकलाल ग़रीबी की रेखा के नीचे का आदमी है। पर उसके पास मोबाइल एडवांस टाइप का गरीबी की रेखा के बहुत ऊपर वाला है। बेरोजगार बेटे ने उपलब्ध कराया है। अंगूठा छाप होने के बावजूद जनकलाल अंगूठा चलाने में दक्ष है। रील सरका लेता है। व्हाट्सएप चला पाता है। देश लेन-देन के मामले में तेजी से ‘डिजिटलाइज’ हो रहा है। वह अपनी बीवी ‘लाड़ली’ के खाते में जमा-पूंजी, बिना झंझट ‘यूपीआई’ से उड़ा लेता है। दिक्कत बस डाटा की थी सो वह भी राशन में मिल रहा है।

जनकलाल हफ्तेभर से राशन की दुकान के सामने लाइन में खड़ा होता है। पर दुकान नहीं खुलती। वहां अब पहले से अधिक भीड़ रहने लगी है। डाटा सबको चाहिए। आठ-दस मुस्टंडों को साथ लेकर दुकान में बैठा चालाक और मिलावटखोर राशन-वितरक सोशल मीडिया और अनसोशल क्लिक से डाटा गटक जाता है। वितरित किया गया डाटा भी दो नंबर का मिलावटी होता है। कई बार तो बेकार भी निकलता है। चलतई नई!

Advertisement
×