वैसे तो आमतौर पर पाक में अल्पसंख्यकों का जीना दुश्वार है, मगर उसमें भी महिलाओं का इज्जत से जीना और भी मुश्किल है। यही वजह है कि विभाजन के समय पाक में जो हिंदू अल्पसंख्यक बारह फीसदी थे, वे अब सिमटकर दो फीसदी के करीब आ गये हैं। यूं तो पाकिस्तान में बड़े सरकारी ओहदों पर हिंदू चेहरे कम ही नजर आते हैं, मगर महिलाओं की स्थिति तो और भी खराब है। बहरहाल, इधर पाक में हिंदू बेटियों में गजब का उत्साह व जज्बा नजर आ रहा है। उन्होंने कई क्षेत्रों में लीक तोड़कर अपनी जमीन तैयार की है। पिछले दिनों पहली हिंदू सीनेटर के रूप में कृष्णा कोहली का नाम सामने आया था। वे अल्पसंख्यक समुदाय की तरफ से सीनेट की सदस्य बनी थीं। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने उन्हें सिंध क्षेत्र से सामान्य श्रेणी से उम्मीदवार बनाया था। इसी कड़ी में सिंध लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करके सुमन बोदानी पहली हिंदू जज बनी थीं। उन्होंने वरीयता सूची में स्थान पाया और उन्हें सिविल जज और जुडिशियल मजिस्ट्रेट बनाया गया। वे सिंध के शहदादकोट जिले की रहने वाली थीं। इसी कड़ी में अब पाक में पहली हिंदू महिला डीएसपी मनीषा रूपेता ने अपना मुकाम हासिल किया है।
आए दिन ईश निंदा की शिकार होती तथा जबरन धर्म परिवर्तन करके शादी रचाने की तमाम घटनाओं के बीच किसी अल्पसंख्यक लड़की का पहली बार डीएसपी बनना निस्संदेह पाक में रह रहे अल्पसंख्यकों में आत्मविश्वास का संचार करने वाला है। हालांकि, जिस पाक में थाने व कोर्ट में महिलाओं का जाना वर्जित समझा जाता है वहां यदि कोई महिला डीएसपी बनी है तो विश्वास है कि पीड़ित महिलाएं बेधड़क अपनी समस्याओं को रख सकेंगी। हालांकि, मनीषा के रिश्तेदारों को आज भी लगता है कि वह यह नौकरी नहीं कर पायेगी और कुछ दिनों में दूसरी नौकरी तलाश लेगी। लेकिन मनीषा अपने इरादों की पक्की है और बदलाव की वाहक बनना चाहती है। वह न केवल अपनी नौकरी करती है बल्कि संघ लोक सेवा की तैयारी कर रही लड़कियों को एक एकेडमी में कोचिंग भी देती है ताकि उनके जैसी कई और लड़कियां पुलिस अधिकारी बन सकें।
दरअसल, मनीषा का पाक के विषम माहौल में अल्पसंख्यक व महिला होने के साथ-साथ कई तरह मुश्किलों का भी साथ रहा है। सिंध के बेहद पिछड़े इलाके से आने वाली मनीषा का संघर्ष बहुत बड़ा रहा। एक छोटे से इलाके जाकूबाबाद में पिता का व्यापार था, लेकिन किशोर अवस्था में पिता का साया उनके सिर से उठ गया। इन मुश्किल हालात में उनकी मां ने खुद को और मजबूत किया और पांच बच्चों की बेहतर परवरिश के लिये कराची चली आई। दरअसल, उनके मूल शहर में पढ़ने-लिखने का वातावरण ही नहीं था। मां की तपस्या व त्याग का ही फल था कि मनीषा की तीन बहनें डाक्टर बन सकीं और एक भाई भी मेडिकल प्रबंधन के क्षेत्र में आया। मां तो चाहती थी कि मनीषा भी डाक्टर बने। उसने तैयार भी की, लेकिन उसकी किस्मत तो कहीं ओर लिखी थी। संयोगवश मनीषा महज एक अंक से डॉक्टर बनते-बनते रह गई। लेकिन मनीषा अपने मन का करना चाहती थी, उसे पुलिस की वर्दी सुहाती थी। वह सोचती थी कि अन्याय की शिकार महिलाओं को वह वर्दी के जरिये न्याय दिला सकती है। वह घर वालों को बताये बिना ही सिंध लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी करती रही। जब उसका चयन पुलिस अधिकारी की ट्रेनिंग के लिये हुआ तो नाते-रिश्तेदार अचंभित हुए। दोयम दर्जे के माने जाने वाले अल्पसंख्यक परिवारों के लोग सोच भी नहीं सकते थे कि उनकी बिरादरी की कोई महिला डीएसपी बन सकती है। अभी भी उनकी सोच है कि ज्यादा दिन तक मनीषा यह नौकरी नहीं कर पायेगी।
बहरहाल, भले ही पाकिस्तान बनने के 75 साल बाद ही सही, लेकिन हालात बदले हैं। अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से पहली महिला डीएसपी के रूप में मनीषा अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही है। बाकायदा उसने चयन प्रक्रिया की मैरिट में भी सम्मानजनक स्थान हासिल किया। उसकी आगे की राह आसान नहीं थी। पाक में अल्पसंख्यक समुदाय जिस वर्दी को संशय व भय से देखता था, उनके बीच में प्रशिक्षण हासिल करना मनीषा के लिये कम चुनौतीभरा न था। जिस इलाके में उसकी ट्रेनिंग हुई, वहां प्रशिक्षण लेने वाली वह पहली महिला बनी।
दरअसल, दृढ़ विश्वास व पक्के इरादे वाली मनीषा पाक पुलिस से जुड़े तमाम मिथ तोड़ने की कोशिश करने की बात कहती है। वह लोगों को बताना चाहती है कि इस नौकरी में धर्म तथा लिंग का कोई भेद नहीं होता है। वह उस सोच को बदलना चाहती है कि सभ्य परिवारों की बेटियां पुलिस में नहीं जाना चाहतीं। वह उस धारणा को भी बदलना चाहती है जिसमें कहा जाता है कि लड़कियां ये नहीं कर सकतीं, वो नहीं कर सकतीं। वह पितृसत्तात्मक धारणाओं को भी खारिज करना चाहती है। उसका मानना है कि यदि महिलाएं पुलिस में आएंगी तो इससे महिला सशक्तीकरण को बल मिलेगा क्योंकि पाक में महिलाएं सबसे ज्यादा प्रताड़ित रहती हैं और पुलिस-कचहरी जाने से बचती हैं। मनीषा का मानना है कि इससे पाक पुलिस की दागी छवि में भी महिलाओं के आने से सुधार आयेगा। महिला पुलिस अधिकारी होने के कारण महिलाएं बिना भय के अपनी बात रख सकेंगी और निडर होकर गवाही दे सकेंगी।